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राजधानी में सिटी बस से जब लगा डर, ई-रिक्शा बने हमसफर - ऑटो और ई-रिक्शा से लोग कर रहे सफर

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कोरोना कहर के कारण सिटी बसों में सन्नाटा पसरा है. लोग बाहर तो निकल रहे हैं, मगर सिटी बस की जगह ऑटो और ई-रिक्शा से सफर करते दिख रहे हैं. लोगों की मानें तो अब उन्हें सिटी बसों में सफर करने से डर लग रहा है.

सिटी बसों में पसरा सन्नाटा
सिटी बसों में पसरा सन्नाटा
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Published : Jul 6, 2020, 3:27 PM IST

लखनऊ: कोरोना के चलते यात्रियों को सिटी बसों में सफर करने से डर लग रहा है. बस से यात्रा करने में वे सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं. लिहाजा, वे सिटी बस छोड़कर ऑटो और ई-रिक्शा को अपने सफर का साथी बना रहे हैं. सिटी बस और ऑटो से यात्रा करने वाले मुसाफिरों के जो आंकड़े हैं, उनसे साफ जाहिर हो रहा है कि सिटी बस की यात्रा लोगों को पसंद नहीं आ रही है. इसके चलते सुरक्षित सफर के लिए लोगों को ऑटो और ई-रिक्शा ज्यादा बेहतर विकल्प लग रहे हैं.

सिटी बसों में पसरा सन्नाटा
तीन माह के लॉकडाउन के बाद एक जून से राजधानी में सिटी बसों का संचालन फिर से शुरू हुआ, लेकिन अब लखनऊ वाले सिटी बसों से यात्रा करने से अपना मुंह मोड़ चुके हैं. इसकी जगह ऑटो और ई-रिक्शा को कहीं ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं. यात्रियों से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उनका कहना है कि कोरोना में सिटी बसों की तुलना में ऑटो या ई-रिक्शा से सफर करना ज्यादा सुरक्षित है.

यह हाल तब है जब सिटी बस के अधिकारी कोरोना में यात्रियों की सुरक्षा के लिए सभी बेहतर इंतजाम होने की गारंटी दे रहे हैं. फिर चाहे बसों को सैनिटाइज करने की बात हो या फिर ड्राइवर-कंडक्टर के मास्क पहनकर ही बस पर चलने की क्यों न हो. सोशल डिस्टेंसिंग की भी सिटी बस के अधिकारी गारंटी दे रहे हैं. हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग बसों में खुद-ब-खुद मेंटेन है क्योंकि सिटी बसों को सवारियां जो नहीं मिल रही हैं, इसके चलते भी सीटें खाली पड़ी हैं.

वहीं गौर करने वाली बात ये भी है कि सिटी बसों का किराया ऑटो, ई-रिक्शा और रिक्शा से कम है, इसके बाद भी लोग सिटी बसों से दूरी बनाए हुए हैं. ऑटो रिक्शा से सफर करने वाले यात्रियों का कहना है कि बस की तुलना में ऑटो, ई-रिक्शा से सफर ज्यादा सुरक्षित है. इसमें कम सवारियां होती हैं और ये जल्दी पहुंचाते भी हैं. बस में जब सवारियां पूरी हो जाती हैं तभी चलती है, इसलिए भी देर हो जाती है.

सिटी बस में सवारियों का टोटा
सामान्य दिनों में शहर की सड़कों पर 180 सिटी बसों का संचालन किया जाता था. इनमें रोज 25 हजार मुसाफिर सफर करते थे. इस समय तकरीबन 60 से 80 सिटी बसें चल रही हैं और इनमें रोज नौ हजार यात्री भी सफर नहीं कर रहे हैं. कुछ बसें तो सड़क पर बिना यात्री लिए ही दौड़ती नजर आ रही हैं. एक ओर जहां सिटी बसों में सवारियों का टोटा है तो वहीं दूसरी तरफ 90 फीसद ऑटो सड़क पर उतर चुके हैं. हर रोज 30 से 35000 यात्री अपने सफर के लिए ऑटो को ही पसंद कर रहे हैं.

आधे रास्ते से डिपो में वापस लौटती हैं बसें
यात्री कम होने से कई बार बसें आधे रास्ते से डिपो में वापस लौट रही हैं. लंबी दूरी की बसों में भी सिर्फ 2-4 यात्री ही मिल रहे हैं. पहले जिन चौराहों पर सिटी बस पकड़ने के लिए लोगों की भीड़ जुटी रहती थी, वहां अब भीड़ तो रहती है, लेकिन यात्री ऑटो और ई-रिक्शा में ही सफर करना ज्यादा पसंद करते हैं. सिटी बसें यहां कुछ देर खड़ी रहने के बाद खाली ही रवाना हो जाती है.

सिटी बसों में किस दिन कितनों ने किया सफर:

तारीख संख्या
1 जून793
2 जून2780
3 जून3319
4 जून3985
5 जून2536
6 जून3033
7 जून2137
8 जून4294
9 जून5438
10 जून4965
11 जून6115
12 जून5971
13 जून5156
14 जून4611
15 जून6002
16 जून6636
17 जून7250
18 जून7093
19 जून7182
20 जून6824
21 जून5050
22 जून7663
23 जून8033
24 जून8146
25 जून8172
26 जून8597
27 जून8502
28 जून8413
29 जून8011



-राजधानी में पहले 160 सिटी बसें चलती थी.
-25 हजार मुसाफिर तब रोज करते थे सफर.
-इन दिनों 60 के करीब बसें चल रही हैं.
-साढ़े आठ हजार मुसाफिर ही अब कर रहे सफर
-पहले की तुलना में सिटी बसों को नहीं मिल रहे 20 फीसद यात्री.
-शहर में हैं चार हजार से अधिक ऑटो.
-20 हजार से अधिक ई-रिक्शा.

सिटी बसों को बिल्कुल सवारिया ही नहीं मिल रही हैं. पहले हजरतगंज, सिकंदरबाग में सवारियां सिटी बस का इंतजार करती थी, अब सवारियां ही नहीं है. अब कोरोना का डर है या फिर लोग घर से नहीं निकल रहे हैं... यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन सिटी बस की स्थिति बहुत खराब है. पहले जहां बस की इनकम 5 हजार होती थी, वहीं अब 1000 भी नहीं होती है. दो-चार सवारियां ही मिल रही हैं.
-वीरेंद्र कुमार परिचालक सिटी बस

हालांकि कोरोना के बाद सवारियां तो कम मिल रही हैं. किसी तरह खर्चा चल जा रहा है, लेकिन बात अगर सिटी बस और ऑटो की करें तो सिटी बस से ज्यादा लोग ऑटो में चल रहे हैं. सिटी बस में लोगों को सुरक्षित महसूस नहीं होता है. उन्हें डर लगता है. हम ऑटो में एक या दो सवारियां ही बिठाते हैं वह भी मास्क लगाने के बाद. सुबह और दोपहर को ऑटो सैनिटाइज करते हैं, इसलिए सवारियां सुरक्षित महसूस करती हैं. उन्हें सिटी बस में सोशल डिस्टेंसिंग का खतरा लगता है. सिटी बस से ज्यादा सवारियां ऑटो को मिलती हैं.
-अनिल कुमार पाठक: ऑटो चालक

सिटी बस के बजाय ई रिक्शा या ऑटो में सफर करना ज्यादा सही है. ई-रिक्शा और भी ज्यादा सुरक्षित है. इसमें दोनों सीटों पर दो-दो सवारियां बैठती हैं. इसमें खतरा नहीं रहता है. सिटी बस में कोई सुविधा नहीं मिलती है. न ही सैनिटाइजर की कोई व्यवस्था है. उसमें भीड़ हो जाती है तो लोगों को खड़े होकर सफर करना पड़ सकता है. ऐसे में लोग ई-रिक्शा से ही चलना पसंद कर रहे हैं. सिटी बस में सफर करने से डर लगता है.
-सुशील कुमार: यात्री, ई-रिक्शा

किसी तरह काम चल जाता है. दो से तीन सवारियां मिलती रहती हैं. खर्चा निकल आता है. ई-रिक्शा और ऑटो को तो सवारियां मिलती हैं, लेकिन सिटी बस से लोग यात्रा करने से डर रहे हैं.
-चिक्का, चालक, ई-रिक्शा

सिटी बस और ऑटो में काफी अंतर है. ऑटो को लोग बुक कराकर भी ले जाते हैं. उसमें तीन सवारियां बैठाने की इजाजत है. वहीं सवारियां बिठाकर ऑटो चला जाता है जबकि सिटी बस के बारे में लोगों ने इमेज बना रखी है कि उसमें भीड़भाड़ होगी, धक्का-मुक्की होगी, इसलिए कोरोना में सिटी बसों से सफर करने से लोग कतरा रहे हैं. अब लगभग 90 परसेंट ऑटो सड़क पर आ गए हैं. हर रोज 30 से 35 हजार लोग ऑटो से सफर कर रहे हैं. हालांकि कोरोना से 35 परसेंट सवारियों का घाटा अभी ऑटो को हो रहा है, लेकिन सिटी बस से कहीं ज्यादा लोग ऑटो या अन्य विकल्प अपने सफर के लिए अपना रहे हैं.
-पंकज दीक्षित, अध्यक्ष, लखनऊ ऑटो रिक्शा थ्री व्हीलर संघ

पूर्व की तुलना में सिटी बसों में काफी कम यात्री सफर कर रहे हैं. पहले जहां हर रोज 25 हजार यात्री सफर करते थे, वहीं एक जून से जब सिटी बसें संचालित हुईं तो 800 सवारियों से सफर शुरू हुआ. अब तो पिछले तीन-चार दिन में साढ़े आठ हजार के करीब यात्री हो गए हैं, लेकिन पूर्व की तुलना में बसों की संख्या में कमी की गई है. वजह है कि सवारियां नहीं मिल रही हैं. ऑटो और रिक्शा भी काफी कम संख्या में हैं. सवारियां उन्हें भी नहीं मिल रही हैं, जहां तक कोरोना में बसों से सफर में सुरक्षा की बात है तो वर्कशॉप से बस निकालने से पहले उसको सैनिटाइज किया जाता है. साथ ही ड्राइवर-कंडक्टर को भी सैनिटाइजर और मास्क दिए गए हैं.
-आरके मंडल, एमडी, लखनऊ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड

लखनऊ: कोरोना के चलते यात्रियों को सिटी बसों में सफर करने से डर लग रहा है. बस से यात्रा करने में वे सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं. लिहाजा, वे सिटी बस छोड़कर ऑटो और ई-रिक्शा को अपने सफर का साथी बना रहे हैं. सिटी बस और ऑटो से यात्रा करने वाले मुसाफिरों के जो आंकड़े हैं, उनसे साफ जाहिर हो रहा है कि सिटी बस की यात्रा लोगों को पसंद नहीं आ रही है. इसके चलते सुरक्षित सफर के लिए लोगों को ऑटो और ई-रिक्शा ज्यादा बेहतर विकल्प लग रहे हैं.

सिटी बसों में पसरा सन्नाटा
तीन माह के लॉकडाउन के बाद एक जून से राजधानी में सिटी बसों का संचालन फिर से शुरू हुआ, लेकिन अब लखनऊ वाले सिटी बसों से यात्रा करने से अपना मुंह मोड़ चुके हैं. इसकी जगह ऑटो और ई-रिक्शा को कहीं ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं. यात्रियों से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उनका कहना है कि कोरोना में सिटी बसों की तुलना में ऑटो या ई-रिक्शा से सफर करना ज्यादा सुरक्षित है.

यह हाल तब है जब सिटी बस के अधिकारी कोरोना में यात्रियों की सुरक्षा के लिए सभी बेहतर इंतजाम होने की गारंटी दे रहे हैं. फिर चाहे बसों को सैनिटाइज करने की बात हो या फिर ड्राइवर-कंडक्टर के मास्क पहनकर ही बस पर चलने की क्यों न हो. सोशल डिस्टेंसिंग की भी सिटी बस के अधिकारी गारंटी दे रहे हैं. हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग बसों में खुद-ब-खुद मेंटेन है क्योंकि सिटी बसों को सवारियां जो नहीं मिल रही हैं, इसके चलते भी सीटें खाली पड़ी हैं.

वहीं गौर करने वाली बात ये भी है कि सिटी बसों का किराया ऑटो, ई-रिक्शा और रिक्शा से कम है, इसके बाद भी लोग सिटी बसों से दूरी बनाए हुए हैं. ऑटो रिक्शा से सफर करने वाले यात्रियों का कहना है कि बस की तुलना में ऑटो, ई-रिक्शा से सफर ज्यादा सुरक्षित है. इसमें कम सवारियां होती हैं और ये जल्दी पहुंचाते भी हैं. बस में जब सवारियां पूरी हो जाती हैं तभी चलती है, इसलिए भी देर हो जाती है.

सिटी बस में सवारियों का टोटा
सामान्य दिनों में शहर की सड़कों पर 180 सिटी बसों का संचालन किया जाता था. इनमें रोज 25 हजार मुसाफिर सफर करते थे. इस समय तकरीबन 60 से 80 सिटी बसें चल रही हैं और इनमें रोज नौ हजार यात्री भी सफर नहीं कर रहे हैं. कुछ बसें तो सड़क पर बिना यात्री लिए ही दौड़ती नजर आ रही हैं. एक ओर जहां सिटी बसों में सवारियों का टोटा है तो वहीं दूसरी तरफ 90 फीसद ऑटो सड़क पर उतर चुके हैं. हर रोज 30 से 35000 यात्री अपने सफर के लिए ऑटो को ही पसंद कर रहे हैं.

आधे रास्ते से डिपो में वापस लौटती हैं बसें
यात्री कम होने से कई बार बसें आधे रास्ते से डिपो में वापस लौट रही हैं. लंबी दूरी की बसों में भी सिर्फ 2-4 यात्री ही मिल रहे हैं. पहले जिन चौराहों पर सिटी बस पकड़ने के लिए लोगों की भीड़ जुटी रहती थी, वहां अब भीड़ तो रहती है, लेकिन यात्री ऑटो और ई-रिक्शा में ही सफर करना ज्यादा पसंद करते हैं. सिटी बसें यहां कुछ देर खड़ी रहने के बाद खाली ही रवाना हो जाती है.

सिटी बसों में किस दिन कितनों ने किया सफर:

तारीख संख्या
1 जून793
2 जून2780
3 जून3319
4 जून3985
5 जून2536
6 जून3033
7 जून2137
8 जून4294
9 जून5438
10 जून4965
11 जून6115
12 जून5971
13 जून5156
14 जून4611
15 जून6002
16 जून6636
17 जून7250
18 जून7093
19 जून7182
20 जून6824
21 जून5050
22 जून7663
23 जून8033
24 जून8146
25 जून8172
26 जून8597
27 जून8502
28 जून8413
29 जून8011



-राजधानी में पहले 160 सिटी बसें चलती थी.
-25 हजार मुसाफिर तब रोज करते थे सफर.
-इन दिनों 60 के करीब बसें चल रही हैं.
-साढ़े आठ हजार मुसाफिर ही अब कर रहे सफर
-पहले की तुलना में सिटी बसों को नहीं मिल रहे 20 फीसद यात्री.
-शहर में हैं चार हजार से अधिक ऑटो.
-20 हजार से अधिक ई-रिक्शा.

सिटी बसों को बिल्कुल सवारिया ही नहीं मिल रही हैं. पहले हजरतगंज, सिकंदरबाग में सवारियां सिटी बस का इंतजार करती थी, अब सवारियां ही नहीं है. अब कोरोना का डर है या फिर लोग घर से नहीं निकल रहे हैं... यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन सिटी बस की स्थिति बहुत खराब है. पहले जहां बस की इनकम 5 हजार होती थी, वहीं अब 1000 भी नहीं होती है. दो-चार सवारियां ही मिल रही हैं.
-वीरेंद्र कुमार परिचालक सिटी बस

हालांकि कोरोना के बाद सवारियां तो कम मिल रही हैं. किसी तरह खर्चा चल जा रहा है, लेकिन बात अगर सिटी बस और ऑटो की करें तो सिटी बस से ज्यादा लोग ऑटो में चल रहे हैं. सिटी बस में लोगों को सुरक्षित महसूस नहीं होता है. उन्हें डर लगता है. हम ऑटो में एक या दो सवारियां ही बिठाते हैं वह भी मास्क लगाने के बाद. सुबह और दोपहर को ऑटो सैनिटाइज करते हैं, इसलिए सवारियां सुरक्षित महसूस करती हैं. उन्हें सिटी बस में सोशल डिस्टेंसिंग का खतरा लगता है. सिटी बस से ज्यादा सवारियां ऑटो को मिलती हैं.
-अनिल कुमार पाठक: ऑटो चालक

सिटी बस के बजाय ई रिक्शा या ऑटो में सफर करना ज्यादा सही है. ई-रिक्शा और भी ज्यादा सुरक्षित है. इसमें दोनों सीटों पर दो-दो सवारियां बैठती हैं. इसमें खतरा नहीं रहता है. सिटी बस में कोई सुविधा नहीं मिलती है. न ही सैनिटाइजर की कोई व्यवस्था है. उसमें भीड़ हो जाती है तो लोगों को खड़े होकर सफर करना पड़ सकता है. ऐसे में लोग ई-रिक्शा से ही चलना पसंद कर रहे हैं. सिटी बस में सफर करने से डर लगता है.
-सुशील कुमार: यात्री, ई-रिक्शा

किसी तरह काम चल जाता है. दो से तीन सवारियां मिलती रहती हैं. खर्चा निकल आता है. ई-रिक्शा और ऑटो को तो सवारियां मिलती हैं, लेकिन सिटी बस से लोग यात्रा करने से डर रहे हैं.
-चिक्का, चालक, ई-रिक्शा

सिटी बस और ऑटो में काफी अंतर है. ऑटो को लोग बुक कराकर भी ले जाते हैं. उसमें तीन सवारियां बैठाने की इजाजत है. वहीं सवारियां बिठाकर ऑटो चला जाता है जबकि सिटी बस के बारे में लोगों ने इमेज बना रखी है कि उसमें भीड़भाड़ होगी, धक्का-मुक्की होगी, इसलिए कोरोना में सिटी बसों से सफर करने से लोग कतरा रहे हैं. अब लगभग 90 परसेंट ऑटो सड़क पर आ गए हैं. हर रोज 30 से 35 हजार लोग ऑटो से सफर कर रहे हैं. हालांकि कोरोना से 35 परसेंट सवारियों का घाटा अभी ऑटो को हो रहा है, लेकिन सिटी बस से कहीं ज्यादा लोग ऑटो या अन्य विकल्प अपने सफर के लिए अपना रहे हैं.
-पंकज दीक्षित, अध्यक्ष, लखनऊ ऑटो रिक्शा थ्री व्हीलर संघ

पूर्व की तुलना में सिटी बसों में काफी कम यात्री सफर कर रहे हैं. पहले जहां हर रोज 25 हजार यात्री सफर करते थे, वहीं एक जून से जब सिटी बसें संचालित हुईं तो 800 सवारियों से सफर शुरू हुआ. अब तो पिछले तीन-चार दिन में साढ़े आठ हजार के करीब यात्री हो गए हैं, लेकिन पूर्व की तुलना में बसों की संख्या में कमी की गई है. वजह है कि सवारियां नहीं मिल रही हैं. ऑटो और रिक्शा भी काफी कम संख्या में हैं. सवारियां उन्हें भी नहीं मिल रही हैं, जहां तक कोरोना में बसों से सफर में सुरक्षा की बात है तो वर्कशॉप से बस निकालने से पहले उसको सैनिटाइज किया जाता है. साथ ही ड्राइवर-कंडक्टर को भी सैनिटाइजर और मास्क दिए गए हैं.
-आरके मंडल, एमडी, लखनऊ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड

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