लखनऊ: देश सहित प्रदेश में इन दिनों कोरोना के आंकड़ों में बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है. राजधानी लखनऊ में तो कोरोना के कारण हाहाकार मचा हुआ है. कोरोना को रोकने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है. इसके बावजूद कोरोना संक्रमण की रफ्तार बढ़ती ही जा रही है. वहीं राजधानी में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपनी सकारात्मक सोच के बल पर कोरोना जैसी महामारी को हराया. ऐसे ही कोरोना से जीतने वालों पर पेश है ईटीवी भारत की यह विशेष रिपोर्ट...
नाम रोशन जहां...उम्र 70 साल...20 मार्च को वह कोरोना संक्रमित हुईं. पूरे परिवार में यह पहला मामला था. कोरोना से संक्रमित होने का पता चलते ही घर में दहशत फैल गई. उन्हें आईसोलेशन में रखा गया. जैसे-तैसे छह दिन गुजरे. 26 मार्च यानी होली के दो दिन पहले अचानक उनकी तबियत बिगड़ गई. आनन-फानन में बेटे नावेद ने उन्हें शहर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. रोशन जहां के बेटे और करामत हुसैन गर्ल्स कॉलेज के प्रबंधक नावेद कहते हैं कि वो बहुत ही मुश्किल दौर था. उस समय लगातार कोरोना से जुड़ी डराने वाली खबरें आने लगी थी. कभी किसी के संक्रमित होने की खबर मिलती तो कभी किसी की मौत की खबर मिलती. अजीब-अजीब ख्याल दिल में आते. नावेद बताते हैं कि वह अस्पताल में एक शीशे की दीवार के बाहर से खड़े होकर मम्मी को देख पाते थे. उन्होंने बताया कि 20 दिन तक अस्पताल में संघर्ष चलता रहा. डॉक्टरों ने भी काफी प्रयास किया. नावेद ने बताया कि दो बार उनकी मां को प्लाज्मा थैरेपी दी गई. इस पूरे इलाज के दौरान मां ने भी हिम्मत नहीं हारी. नतीजा, 17 अप्रैल को वह सही सलामत घर आ गईं.
'कोरोना का नाम सुनकर ही उड़ गए थे होश'
रोशन जहां बताती हैं कि पहली बार जब कोरोना का नाम सुना तो दिल में डर बैठ गया. बुरे ख्याल आने लगे. इन हालातों में परिवार के साथ ने हिम्मत बंधाई. अस्पताल में कई बार हिम्मत टूटने लगती तो बेटे और बच्चों का चेहरा सामना आ जाता. इसी ने कोरोना से लड़ने और जीतने की हिम्मत दी.
नाम प्रो. पूनम टंडन...उम्र 52 साल...लखनऊ विश्वविद्यालय की भौतिक विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. पूनम टंडन बताती हैं कि उन्हें होली के एक दिन पहले पता चला कि वह कोरोना संक्रमित हैं. पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद ही उन्हें एरा हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. तीन दिन बाद भी बुखार न उतरने पर उन्हें राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट में शिफ्ट किया गया. उन्होंने बताया कि वह बहुत ही बुरा दौर था, लेकिन परिवार वालों, बेटी और पति ने लड़ने की हिम्मत दी. प्रो. पूनम ने बताया कि 6 अप्रैल को वह ठीक होकर अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर वापस आ गईं.
सकारात्मक सोच के जरिए बचा जा सकता है कोरोना से
प्रो. पूनम कहती हैं कि 10 दिन तक अस्पताल में रहने के दौरान उन्होंने फोन का इस्तेमाल बंद कर दिया था, सिर्फ परिवारीजनों से बात करने के लिए फोन प्रयोग में लेती थीं. वह कहती हैं कि कोविड संक्रमित मरीज घबरा जाते हैं, लेकिन इस बीमारी के प्रकोप से सकारात्मक सोच रखते हुए शांत भाव से आसानी से निकला जा सकता है.
प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा निदेशालय में 26 मार्च को कोरोना संक्रमण की जांच की गई. जिसमें 20 से ज्यादा लोग संक्रमित पाए गए. उनमें, उप शिक्षा निदेशक विकास श्रीवास्तव भी थे. वह बताते हैं कि रिपोर्ट आने के बाद दिल बैठ-सा गया था. कुछ घंटों के लिए तो कुछ समझ में नहीं आया क्या करें? फिर खुद को संभाला. विकास बताते हैं कि सबसे पहले घर में खुद को आईसोलेट किया. बार-बार आने वाले कॉल परेशान न करें इसके लिए फोन को खुद से दूर किया. मन में नकारात्मक भाव न आएं इसके लिए सबसे पहले न्यूज चैनल और अखबार बंद कर दिया. विकास श्रीवास्तव हंसते हुए कहते हैं कि दो-तीन दिन में समझ में आ गया कि कोरोना सम्मान मांगता है. मैने वह सम्मान दिया था.
'भाप, योग के साथ करता था दिन की शुरुआत'
विकास श्रीवास्तव होम आईसोलेशन में ही ठीक हुए हैं. वह बताते हैं कि उन्होंने डॉक्टरों के सुझाव के हिसाब से अपनी दिनचर्या बदल ली थी. विकास ने बताया कि कोरोना का पता चलने के बाद होम आईसोलेशन में रहते हुए सुबह की शुरुआत गर्म पानी और भाप से शुरू कर दी. योग और हल्के व्यायाम को अपने दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाया. प्राणायाम और सांस से जुड़े आसनों पर ज्यादा जोर दिया. विकास ने बताया कि इन दिनों यह कोशिश रहती कि शरीर का तापमान न बढ़ने पाए, इसके लिए डॉक्टरों की बताई दवाई लेते रहे. फेसबुक और सोशल मीडिया पर लगातार नकारात्मक चीजें आ रही थी, इसलिए उनसे भी दूरी बना ली. वह कहते हैं कि करीब 20-21 दिन के इस पूरे संघर्ष में सिर्फ एक चीज जो साथ देती है वह आपकी सकारात्मक सोच है. इसी के बल पर कोरोना से लड़ाई को आसानी से जीता जा सकता है.