लखनऊ: बदलते मौसम में जहां तमाम संक्रामक रोगों के बढ़ने का खतरा रहता है वहीं बारिश के मौसम में डायरिया के मरीजों की संख्या अचानक काफी तेजी से बढ़ रही है. विशेषज्ञों की मानें तो पिछले कई वर्षों से डायरिया के मरीज साल दर साल बढ़ते चले आ रहे हैं और यह काफी परेशानी की बात है. केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शीतल वर्मा ने डायरिया के मरीजों पर एक शोध किया है. इस विषय पर ईटीवी भारत से असिस्टेंट प्रोफेसर ने खास बातचीत की.
छोटे बच्चों पर किया गया पायलट स्टडी
डायरिया के बढ़ने को लेकर हमने 5 साल से छोटे बच्चों पर एक पायलट स्टडी की थी. जिसमें 100 बच्चों को शामिल किया गया था. जो पूरे प्रदेश भर से किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में भर्ती हुए थे. इस शोध में हमने पाया कि इन बच्चों में डायरिया का मुख्य कारण वायरल था जिसमें रोटावायरस हमें मिला और कुछ अन्य बच्चों में भी ई कोलाई और कुछ अन्य वायरस और बैक्टीरिया हमने पाए. हमने सोशियो एपिडेमियोलॉजिकल स्टडी भी की थी जिसमें हमने यह पाया कि भर्ती बच्चों में निम्न वर्ग के ज्यादातर बच्चे शामिल थे और इसमें भी लड़कों की संख्या ज्यादा थी.
डायरिया से बचाव के लिए रखे खानपान का बेहद ख्याल
शोध में यह बात भी सामने आई है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों पर फर्स्ट लाइन एंटीबायोटिक्स का असर खत्म होता जा रहा है जो कि वाकई चिंताजनक बात है इसका अर्थ यह है कि एंटीबायोटिक्स का दुष्प्रभाव भी हमारे शरीर पर पड़ रहा है और इसकी वजह से हम अपने बच्चों के शरीर को कई तरह की बीमारियों का घर बना रहे हैं. एंटीबायोटिक्स का असर खत्म होना भी साल दर साल डायरिया जैसे संक्रामक रोगों की संख्या को बढ़ावा देने में कहीं न कहीं योगदान देता हुआ नजर आ रहा है.
डॉ शीतल कहती हैं कि डायरिया से बचाव के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चों के खानपान का बेहद ख्याल रखा जाए. उन्हें बारिश के मौसम में खाना और पानी उबाल कर दिए जाएं. बरसात के मौसम में बाहर का खाना खाने से बचाया जाए और जो भी बच्चा डायरिया से ग्रसित है उसके आसपास के बच्चों और लोगों को भी इस बात की जानकारी दे दी जाए. ताकि वह अपना बचाव कर सकें.
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