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लखनऊ: डायरिया के बढ़ रहे हैं मरीज, कारण जानकर रह जाएंगे हैरान

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में डायरिया के मरीज हर साल बढ़ते चले जा रहे हैं. हर वर्ष बहुत बच्चों की डायरिया के संक्रमण की वजह से मृत्यु हो रही है. केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर ने डायरिया के संक्रमण से बचने के लिए खानपान का बेहद ख्याल रखने कि सलाह दी है.

डायरिया संक्रमण पर बातचीत करती डॉ शीतल वर्मा.
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Published : Sep 24, 2019, 1:18 PM IST

लखनऊ: बदलते मौसम में जहां तमाम संक्रामक रोगों के बढ़ने का खतरा रहता है वहीं बारिश के मौसम में डायरिया के मरीजों की संख्या अचानक काफी तेजी से बढ़ रही है. विशेषज्ञों की मानें तो पिछले कई वर्षों से डायरिया के मरीज साल दर साल बढ़ते चले आ रहे हैं और यह काफी परेशानी की बात है. केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शीतल वर्मा ने डायरिया के मरीजों पर एक शोध किया है. इस विषय पर ईटीवी भारत से असिस्टेंट प्रोफेसर ने खास बातचीत की.

डायरिया संक्रमण पर बातचीत करती डॉ शीतल वर्मा.
हर साल बढ़ते चले जा रहे डायरिया के मरीज असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शीतल वर्मा कहती हैं कि भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में डायरिया के मरीज हर साल बढ़ते चले जा रहे हैं और हर वर्ष बहुत बच्चों की डायरिया के संक्रमण की वजह से मृत्यु हो जाती है औसतन आंकड़ों की बात की जाए तो हर वर्ष 1.7 बिलियन बच्चे इसका शिकार हो जाते हैं. केवल भारत के आंकड़ों को ही देखा जाए तो हर साल तीन लाख बच्चे डायरिया के रोग से ग्रसित होकर अस्पताल में भर्ती होते हैं. डॉक्टर सीधे बताती है कि डायरिया मुख्य रूप से पानी बरसने के बाद फैलने वाला संक्रामक रोग होता है जिसमें कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया पाए जाते हैं और कभी-कभी इनमें पैरासाइट्स भी शामिल होते हैं.

छोटे बच्चों पर किया गया पायलट स्टडी
डायरिया के बढ़ने को लेकर हमने 5 साल से छोटे बच्चों पर एक पायलट स्टडी की थी. जिसमें 100 बच्चों को शामिल किया गया था. जो पूरे प्रदेश भर से किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में भर्ती हुए थे. इस शोध में हमने पाया कि इन बच्चों में डायरिया का मुख्य कारण वायरल था जिसमें रोटावायरस हमें मिला और कुछ अन्य बच्चों में भी ई कोलाई और कुछ अन्य वायरस और बैक्टीरिया हमने पाए. हमने सोशियो एपिडेमियोलॉजिकल स्टडी भी की थी जिसमें हमने यह पाया कि भर्ती बच्चों में निम्न वर्ग के ज्यादातर बच्चे शामिल थे और इसमें भी लड़कों की संख्या ज्यादा थी.

डायरिया से बचाव के लिए रखे खानपान का बेहद ख्याल
शोध में यह बात भी सामने आई है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों पर फर्स्ट लाइन एंटीबायोटिक्स का असर खत्म होता जा रहा है जो कि वाकई चिंताजनक बात है इसका अर्थ यह है कि एंटीबायोटिक्स का दुष्प्रभाव भी हमारे शरीर पर पड़ रहा है और इसकी वजह से हम अपने बच्चों के शरीर को कई तरह की बीमारियों का घर बना रहे हैं. एंटीबायोटिक्स का असर खत्म होना भी साल दर साल डायरिया जैसे संक्रामक रोगों की संख्या को बढ़ावा देने में कहीं न कहीं योगदान देता हुआ नजर आ रहा है.

डॉ शीतल कहती हैं कि डायरिया से बचाव के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चों के खानपान का बेहद ख्याल रखा जाए. उन्हें बारिश के मौसम में खाना और पानी उबाल कर दिए जाएं. बरसात के मौसम में बाहर का खाना खाने से बचाया जाए और जो भी बच्चा डायरिया से ग्रसित है उसके आसपास के बच्चों और लोगों को भी इस बात की जानकारी दे दी जाए. ताकि वह अपना बचाव कर सकें.
इसे भी पढ़ें-लखनऊ: महिला ने पति पर लगाया दहेज उत्पीड़न और मारपीट का आरोप

लखनऊ: बदलते मौसम में जहां तमाम संक्रामक रोगों के बढ़ने का खतरा रहता है वहीं बारिश के मौसम में डायरिया के मरीजों की संख्या अचानक काफी तेजी से बढ़ रही है. विशेषज्ञों की मानें तो पिछले कई वर्षों से डायरिया के मरीज साल दर साल बढ़ते चले आ रहे हैं और यह काफी परेशानी की बात है. केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शीतल वर्मा ने डायरिया के मरीजों पर एक शोध किया है. इस विषय पर ईटीवी भारत से असिस्टेंट प्रोफेसर ने खास बातचीत की.

डायरिया संक्रमण पर बातचीत करती डॉ शीतल वर्मा.
हर साल बढ़ते चले जा रहे डायरिया के मरीज असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शीतल वर्मा कहती हैं कि भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में डायरिया के मरीज हर साल बढ़ते चले जा रहे हैं और हर वर्ष बहुत बच्चों की डायरिया के संक्रमण की वजह से मृत्यु हो जाती है औसतन आंकड़ों की बात की जाए तो हर वर्ष 1.7 बिलियन बच्चे इसका शिकार हो जाते हैं. केवल भारत के आंकड़ों को ही देखा जाए तो हर साल तीन लाख बच्चे डायरिया के रोग से ग्रसित होकर अस्पताल में भर्ती होते हैं. डॉक्टर सीधे बताती है कि डायरिया मुख्य रूप से पानी बरसने के बाद फैलने वाला संक्रामक रोग होता है जिसमें कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया पाए जाते हैं और कभी-कभी इनमें पैरासाइट्स भी शामिल होते हैं.

छोटे बच्चों पर किया गया पायलट स्टडी
डायरिया के बढ़ने को लेकर हमने 5 साल से छोटे बच्चों पर एक पायलट स्टडी की थी. जिसमें 100 बच्चों को शामिल किया गया था. जो पूरे प्रदेश भर से किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में भर्ती हुए थे. इस शोध में हमने पाया कि इन बच्चों में डायरिया का मुख्य कारण वायरल था जिसमें रोटावायरस हमें मिला और कुछ अन्य बच्चों में भी ई कोलाई और कुछ अन्य वायरस और बैक्टीरिया हमने पाए. हमने सोशियो एपिडेमियोलॉजिकल स्टडी भी की थी जिसमें हमने यह पाया कि भर्ती बच्चों में निम्न वर्ग के ज्यादातर बच्चे शामिल थे और इसमें भी लड़कों की संख्या ज्यादा थी.

डायरिया से बचाव के लिए रखे खानपान का बेहद ख्याल
शोध में यह बात भी सामने आई है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों पर फर्स्ट लाइन एंटीबायोटिक्स का असर खत्म होता जा रहा है जो कि वाकई चिंताजनक बात है इसका अर्थ यह है कि एंटीबायोटिक्स का दुष्प्रभाव भी हमारे शरीर पर पड़ रहा है और इसकी वजह से हम अपने बच्चों के शरीर को कई तरह की बीमारियों का घर बना रहे हैं. एंटीबायोटिक्स का असर खत्म होना भी साल दर साल डायरिया जैसे संक्रामक रोगों की संख्या को बढ़ावा देने में कहीं न कहीं योगदान देता हुआ नजर आ रहा है.

डॉ शीतल कहती हैं कि डायरिया से बचाव के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चों के खानपान का बेहद ख्याल रखा जाए. उन्हें बारिश के मौसम में खाना और पानी उबाल कर दिए जाएं. बरसात के मौसम में बाहर का खाना खाने से बचाया जाए और जो भी बच्चा डायरिया से ग्रसित है उसके आसपास के बच्चों और लोगों को भी इस बात की जानकारी दे दी जाए. ताकि वह अपना बचाव कर सकें.
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Intro:लखनऊ। बदलते मौसम में जहां तमाम संक्रामक रोग बढ़ने का खतरा रहता है वहीं बारिश के मौसम में डायरिया के मरीजों की संख्या अचानक काफी तेजी से बढ़ रही है विशेषज्ञों की मानें तो पिछले कई वर्षों से डायरिया के मरीज साल दर साल बढ़ते चले आ रहे हैं और यह काफी चिंताजनक बात है। केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शीतल वर्मा ने डायरिया के मरीजों, जिनमें बच्चे शामिल होते हैं, उन पर एक शोध किया है। इस सिलसिले में ईटीवी भारत ने उनसे बातचीत की।


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डॉ शीतल कहती हैं कि भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में डायरिया के मरीज हर साल बढ़ते चले जा रहे हैं और हर वर्ष बहुत बच्चों की डायरिया के संक्रमण की वजह से मृत्यु हो जाती है औसतन आंकड़ों की बात की जाए तो हर वर्ष 1.7 बिलियन बच्चे इसका शिकार हो जाते हैं केवल भारत के आंकड़ों को ही देखा जाए तो हर साल तीन लाख बच्चे डायरिया के रोग से ग्रसित होकर अस्पताल में भर्ती होते हैं। डॉक्टर सीधे बताती है कि डायरिया मुख्य रूप से पानी बरसने के बाद फैलने वाला संक्रामक रोग होता है जिसमें कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया पाए जाते हैं और कभी-कभी इनमें पैरासाइट्स भी शामिल होते हैं।

डॉ शीतल बताती है कि डायरिया के बढ़ने को लेकर हमने 5 साल से छोटे बच्चों पर एक पायलट स्टडी की थी जिसमें 100 बच्चों को शामिल किया गया था जो पूरे प्रदेश भर से किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में भर्ती हुए थे। इस शोध में हमने पाया कि इन बच्चों में डायरिया का मुख्य कारण वायरल था जिसमें रोटावायरस हमें मिला और कुछ अन्य बच्चों में भी ई कोलाई और कुछ अन्य वायरस और बैक्टीरिया हमने पाए। डॉक्टर वर्मा कहती है कि सबसे बड़ी बात यह है कि हमने सोशियो एपिडेमियोलॉजिकल स्टडी भी की थी जिसमें हमने यह पाया कि भर्ती बच्चों में निम्न वर्ग के ज्यादातर बच्चे शामिल थे और इसमें भी लड़कों की संख्या ज्यादा थी फलक किया है स्टडी 5 साल से कम बच्चों में की गई थी।
डॉ शीतल कहती है कि हमारे शोध में यह बात भी सामने आई है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों पर फर्स्ट लाइन एंटीबायोटिक्स का असर खत्म होता जा रहा है जोकि वाकई चिंताजनक बात है इसका अर्थ यह है कि एंटीबायोटिक्स का दुष्प्रभाव भी हमारे शरीर पर पड़ रहा है और इसकी वजह से हम अपने बच्चों के शरीर को कई तरह की बीमारियों का घर बना रहे हैं। एंटीबायोटिक्स का असर खत्म होना भी साल दर साल डायरिया जैसे संक्रामक रोगों की संख्या को बढ़ावा देने में कहीं न कहीं योगदान देता हुआ नजर आ रहा है।

डॉ शीतल कहते हैं कि डायरिया से बचाव के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चों के खानपान का बेहद ख्याल रखा जाए उन्हें बारिश के मौसम में खाना और पानी उबाल कर दिए जाए बरसात के मौसम में बाहर का खाना खाने से बचाया जाए और जो भी बच्चा डायरिया से ग्रसित है उसके आसपास के बच्चों और लोगों को भी इस बात की जानकारी दे दी जाए ताकि वह अपना बचाव कर सकें।

शीतल कहती है कि जब कभी भी बच्चे को डायरिया हो जाए तो इस बात को हल्के में ना लें बल्कि जल्द से जल्द अपने आसपास के डॉक्टर से परामर्श लें। डायरिया के दौरान बच्चे को ओआरएस का घोल पिलाया जाए और साथ ही एक बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि बच्चे को किसी भी तरह के एंटीबायोटिक्स न दिया जाए।


Conclusion:डॉ शीतल कहती है कि डायरिया जैसे संक्रामक रोगों से बच्चों को बचाने के लिए हम सरकार से अपील करना चाहते हैं कि इसके प्रति जागरूकता ज्यादा से ज्यादा फैलाए। इसके अलावा साफ सफाई का ध्यान ज्यादा रखा जाए। सरकार द्वारा उठाए गए कदम लोगों में जागरूकता का काम भी करते हैं और असरदार भी साबित होते हैं। साथ ही एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल के बारे में भी आम जनता को सतर्क किए जाने की आवश्यकता है।

केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ शीतल वर्मा का इंटरव्यू।

रामांशी मिश्रा
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