लखनऊ: विख्यात इतिहासकार पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीन का सोमवार को लखनऊ में निधन हो गया. पद्मश्री डाॅ. योगेश प्रवीन के इस संसार से विदा हो जाने से लखनऊ गमगीन हो गया है. लखनऊ की तहजीब, संस्कृति, यहां की इमारतों, बावली, गली-कूंचोंं और नवाबी काल के किस्से-कहानियों से रूबरू कराने वाले योगेश का जाना इस शहर की बहुत बड़ी क्षति है. उनके जाने से साहित्य, संगीत और कला, यूं कहे तो हर विधा के लोग दुःखी हैं. लखनऊ योगेश प्रवीन को हमेशा याद करता रहेगा.
लखनऊ की माटी में रचे-बसे थे डॉ. योगेश
पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीन ने लखनऊ को एक अलग पहचान दिलाई है. उन्होंने लखनऊ के स्वर्णिम इतिहास को दुनिया के सामने रखा. वरिष्ठ लोक एवं शास्त्रीय गायिका प्रो. कमला श्रीवास्तव ने बताया कि योगेश प्रवीन उन्हें जिज्जी कहा करते थे. लखनऊ के संबंध में वह दो लोगों की बहुत कद्र करती हैं. एक अमृतलाल नागर और दूसरे योगेश प्रवीन की. वह लखनऊ की माटी में रचे-बसे थे. लखनऊ पर जब भी चर्चा होगी तो उनका नाम सबसे पहले आएगा.
'मेरी हर किताब की भूमिका लिखते थे'
लोक साहित्यकार डाॅ. विद्या विन्दु सिंह ने बताया कि डॉ. योगेश का जाना उनके लिए बेहद कष्टदायी है. वह हमेशा उनकी किताब की भूमिका लिखते थे. उनका चले जाना लखनऊ की एक अपूर्णीय क्षति है.
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'लखनऊ की है बड़ी क्षति'
साहित्यकार एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की सम्पादक डाॅ. अमिता दुबे कहती हैं कि डाॅ. योगेश प्रवीन के गढ़े पात्र आस्था और विश्वास का नया रंग बिखेरते हैं. प्रेम, सौहार्द, समन्वय का सुंदर रूप उनकी कृतियों में देखने को मिलता है. उनकी रचनाओं में इंद्रधनुषी रंग अपनी पूरी आभा के साथ विराजमान हैं. इंद्रधनुष में केवल सात रंग होते हैं, लेकिन डाॅ. योगेश प्रवीन के सृजन के सोपान में अनेकानेक रंग हैं. यह कहना कठिन है कि कौन सा रंग गहरा है और कौन सा हल्का. उन्होंने अपनी लेखनी से साहित्य को नायाब रत्न दिए हैं. उनका इस प्रकार अचानक जाना निःशब्द कर गया है.
'नवसंवत्सर कार्यक्रम में होने वाले थे शामिल'
शास्त्रीय गायिका डाॅ. पूनम श्रीवास्तव ने बताया कि मंगलवार को नवसंवत्सर के कार्यक्रम में डॉ. योगेश को आना था. वह नवसंवत्सर महोत्सव समिति के संरक्षक थे. वह किसी भी कार्यक्रम में जाते तो लोगों को खूब प्रोत्साहित करते थे. उनका न रहना लखनऊ की बहुत बड़ी क्षति है. राज्य ललित कला अकादमी के वरिष्ठ सहायक राजेन्द्र मिश्रा बताते हैं कि अकादमी में जब भी लखनऊ की ललित कला पर बात होती थी तो पद्मश्री डाॅ. योगेश प्रवीन को बुलाया जाता था. लखनऊ के बारे डॉ. योगेश का ज्ञान अपार था. वह बोलते थे तो लोग तल्लीन होकर सुना करते थे.