लखनऊ: सशस्त्र-बल अधिकरण लखनऊ के न्यायमूर्ति उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और अभय रघुनाथ कार्वे की खण्ड-पीठ ने गुरुवार को 30 वर्ष से भगोड़ा घोषित अंबेडकरनगर निवासी सिपाही दिलीप कुमार सिंह को सेना के सामने समर्पण करने का आदेश जारी किया. दिलीप कुमार 1996 में आर्मी सप्लाई कोर में भर्ती हुआ था और वर्ष 2011 में 15 दिन के आकस्मिक अवकाश पर घर आया था. व्यक्तिगत समस्याओं की वजह से वह समय से ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर सका. समस्याओं से निजात पाया तो ड्यूटी ज्वाइन करने का प्रयास किया, लेकिन ड्यूटी जॉइन नहीं कराई गई. वजह थी कि वह पेंशन योग्य 15 साल की सैन्य-सेवा पूरी कर चुका था.
सिपाही दिलीप ने यह कहते हुए अपील की थी कि या तो उसे सर्विस पर रखा जाए या सर्विस पेंशन दी जाए, लेकिन उसकी अपील को खारिज कर दिया गया. अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से वादी ने 2017 में सेना कोर्ट लखनऊ में वाद दायर किया जिसमें 30 अक्टूबर 2017 को न्यायालय ने सेना को आदेशित किया कि याची को नौकरी जॉइन कराई जाए, लेकिन सेना ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वादी सेना से भगोड़ा घोषित है. वह निर्धारित सेवा शर्त की अवधि पूर्ण कर चुका है. न तो हम उसे सेवा से डिसमिस कर सकते हैं और न डिस्चार्ज, क्योंकि भगोड़ा घोषित होने के 10 वर्ष बाद ही ऐसा किया जा सकता है, लेकिन वादी के मामले में सेना 10 साल बाद भी ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि उसने अपनी सेवा शर्त पूरी कर ली है.
वादी का पक्ष रखते हुए वादी के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि नौकरी से भगोड़ा घोषित होने मात्र से “मास्टर” और “सर्वेंट” का संबंध स्वतः समाप्त नहीं हो जाता, इसे कानूनी आदेश के बगैर समाप्त नहीं किया जा सकता, जबकि भारत सरकार और सेना की तरफ से अभी तक मेरे मुवक्किल को न तो सेना से डिसमिस किया गया है और न डिस्चार्ज, इसलिए वह संबंध अब भी बना हुआ है. दूसरी तरफ यदि पुलिस अधीक्षक अम्बेडकरनगर घर पर मौजूद सैनिक को कागजी कार्रवाई में लापता दिखा रहे हैं तो इसके लिए वादी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
सेना और वादी को दिया आदेश
अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय ने बताया कि दोनों पक्ष की दलीलों और दस्तावेजों के अवलोकन के बाद खण्ड-पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह साबित हो कि वादी द्वारा ड्यूटी ज्वाइन करने का प्रयास किया गया, यदि उसे कोई बीमारी थी तो उसे प्राईवेट अस्पताल में इलाज कराने के बजाय मिलिट्री हास्पिटल में इलाज कराना चाहिए था, इसलिए उसे दोबारा ड्यूटी जॉइन कराने का आदेश नहीं दिया जा सकता, लेकिन सेना और वादी को निर्देशित करते हुए आदेश जारी किया कि वादी एक महीने के अंदर वादी आर्मी रूल 123 के तहत आत्म-समर्पण कर दे. सेना वादी का स्वतंत्र और निष्पक्ष ट्रायल जल्दी से जल्दी करने के लिए स्वतंत्र होगी.