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बिन पहियों के बस बेबस, चालक-परिचालकों पर आर्थिक संकट ! - meerut latest news

यूपी के मेरठ बस डिपो का खस्ताहाल है. यहां 123 रोडवेज बसें हैं, जिनमें से कई बसों के टायर ही खराब हैं. इसके कारण पिछले कई दिनों से बसों का संचालन नहीं हो पा रहा है, जिसका खमियाजा आम जनता भुगत रही है. चालक-परिचालकों के सामने भी संकट है. वहीं हर दिन रोडवेज की कमाई भी प्रभावित हो रही है. देखिए ईटीवी भारत की ये रिपोर्ट.

मेरठ बस डिपो
मेरठ बस डिपो
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Published : Sep 29, 2021, 2:16 PM IST

मेरठ: मेरठ डिपो में उत्तर प्रदेश परिवहन निगम (Uttar Pradesh State Road Transport Corporation) की कुल 123 बसें हैं, लेकिन इन बसों में से करीब 40 बसें एक माह से भी अधिक समय से बिना पहियों के वर्कशॉप में खड़ी हैं. निगम के स्थानीय अफसरों का कहना है कि उनके स्तर से लगातार लखनऊ मुख्यालय पर अवगत कराया जा रहा है. चौंकाने वाली बात यह है कि मेरठ डिपो (Meerut Depot) की अधिकतर बसें प्रदेश के जिलों तक तो संचालित होती ही हैं. साथ ही कई अन्य राज्यों के लिए भी मेरठ डिपो (Meerut Depot) से संचालित होती हैं. बावजूद इसके मेरठ डिपो का बुरा हाल है.

मेरठ बस डिपो का खस्ताहाल.

यहां बसों को पहियों की कमी के चलते वर्कशॉप में खड़ा कर दिया जाता है. मैकेनिक और चालक परिचालकों का कहना है कि यहां की स्थिति बहुत खराब है. कुछ बसों का संचालन तो इस तरह से किया जा रहा है कि जो बसें पहले से खड़ी हैं, उसका पहिया दूसरी बसों में फिक्स करके काम चलाया जा रहा है. मैकेनिक बताते हैं कि करीब 40 बसें मेरठ डिपो की इस वक्त पहियों का इंतजार कर रही हैं.

वहीं चालक-परिचालकों का कहना है कि उन्हें भी बसों के पहियों की कमी के चलते दिक्कतें हो रही हैं, तो वहीं जो निगम की बसों पर संविदाकर्मचारी हैं, उनके सामने तो बड़ी समस्या है. रोडवेज चालकों का कहना है कि उन्हें बसें कम संचालित होने की वजह से न चाहकर भी अवकाश लेना पड़ता है.

संविदाकर्मियों की हालत तो और भी खराब होती जा रही है. वो कहते हैं कि उन्हें लगभग 2 रुपया प्रति किलोमीटर की दर से भुगतान होता है, लेकिन बसों में पहिए न होने की वजह से उन्हें हर दिन डिपो से वापिस घर लौटना पड़ता है. वहीं कुछ अन्य ने बताया कि वो लोग इतनी महंगाई में ड्यूटी न कर पाने की वजह से आर्थिक संकट में हैं.

संविदा कर्मचारी सत्यवीर कहते हैं कि वे किराये के मकान में रहते हैं और वह अपना किराया नहीं दे पा रहे हैं. वह मजबूर हैं. वह ड्यूटी करने इस उम्मीद से आते हैं कि बसों में पहिए लग गए होंगे, लेकिन जब वो आते हैं, तो हताश होकर लौटना पड़ता है. संविदाकर्मियों का कहना है कि लगातार आश्वासन की घुट्टी उन्हें दी जा रही है. अधिकारियों का कहना है कि जल्द सब ठीक हो जाएगा.

मेरठ डिपो के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक आरके. वर्मा का कहना है कि करीब 45 दिन से टायरों का अभाव है. उनका कहना है कि मुख्यालय से संपर्क बनाए हुए हैं. इस बारे में मेरठ डिपो के ARM कहते हैं कि पहियों की किल्लत तो है ही, लेकिन प्रयास किया जा रहा है. सुधार जारी है.

उन्होंने ये भी माना कि चालकों परिचालकों को भी दिक्कत होना स्वाभाविक है. उन्होंने बताया कि पहियों के न होने की वजह से निगम को राजस्व का नुकसान भी हर दिन हो रहा है.

इसे भी पढ़ें- 17 सूत्रीय मांगों को लेकर रोडवेज संविदा कर्मचारियों का प्रदर्शन, MD पर लगाए गंभीर आरोप

मेरठ: मेरठ डिपो में उत्तर प्रदेश परिवहन निगम (Uttar Pradesh State Road Transport Corporation) की कुल 123 बसें हैं, लेकिन इन बसों में से करीब 40 बसें एक माह से भी अधिक समय से बिना पहियों के वर्कशॉप में खड़ी हैं. निगम के स्थानीय अफसरों का कहना है कि उनके स्तर से लगातार लखनऊ मुख्यालय पर अवगत कराया जा रहा है. चौंकाने वाली बात यह है कि मेरठ डिपो (Meerut Depot) की अधिकतर बसें प्रदेश के जिलों तक तो संचालित होती ही हैं. साथ ही कई अन्य राज्यों के लिए भी मेरठ डिपो (Meerut Depot) से संचालित होती हैं. बावजूद इसके मेरठ डिपो का बुरा हाल है.

मेरठ बस डिपो का खस्ताहाल.

यहां बसों को पहियों की कमी के चलते वर्कशॉप में खड़ा कर दिया जाता है. मैकेनिक और चालक परिचालकों का कहना है कि यहां की स्थिति बहुत खराब है. कुछ बसों का संचालन तो इस तरह से किया जा रहा है कि जो बसें पहले से खड़ी हैं, उसका पहिया दूसरी बसों में फिक्स करके काम चलाया जा रहा है. मैकेनिक बताते हैं कि करीब 40 बसें मेरठ डिपो की इस वक्त पहियों का इंतजार कर रही हैं.

वहीं चालक-परिचालकों का कहना है कि उन्हें भी बसों के पहियों की कमी के चलते दिक्कतें हो रही हैं, तो वहीं जो निगम की बसों पर संविदाकर्मचारी हैं, उनके सामने तो बड़ी समस्या है. रोडवेज चालकों का कहना है कि उन्हें बसें कम संचालित होने की वजह से न चाहकर भी अवकाश लेना पड़ता है.

संविदाकर्मियों की हालत तो और भी खराब होती जा रही है. वो कहते हैं कि उन्हें लगभग 2 रुपया प्रति किलोमीटर की दर से भुगतान होता है, लेकिन बसों में पहिए न होने की वजह से उन्हें हर दिन डिपो से वापिस घर लौटना पड़ता है. वहीं कुछ अन्य ने बताया कि वो लोग इतनी महंगाई में ड्यूटी न कर पाने की वजह से आर्थिक संकट में हैं.

संविदा कर्मचारी सत्यवीर कहते हैं कि वे किराये के मकान में रहते हैं और वह अपना किराया नहीं दे पा रहे हैं. वह मजबूर हैं. वह ड्यूटी करने इस उम्मीद से आते हैं कि बसों में पहिए लग गए होंगे, लेकिन जब वो आते हैं, तो हताश होकर लौटना पड़ता है. संविदाकर्मियों का कहना है कि लगातार आश्वासन की घुट्टी उन्हें दी जा रही है. अधिकारियों का कहना है कि जल्द सब ठीक हो जाएगा.

मेरठ डिपो के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक आरके. वर्मा का कहना है कि करीब 45 दिन से टायरों का अभाव है. उनका कहना है कि मुख्यालय से संपर्क बनाए हुए हैं. इस बारे में मेरठ डिपो के ARM कहते हैं कि पहियों की किल्लत तो है ही, लेकिन प्रयास किया जा रहा है. सुधार जारी है.

उन्होंने ये भी माना कि चालकों परिचालकों को भी दिक्कत होना स्वाभाविक है. उन्होंने बताया कि पहियों के न होने की वजह से निगम को राजस्व का नुकसान भी हर दिन हो रहा है.

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