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एलिवेटेड फ्लाई ओवर के निर्माण के लिए भूखंड मालिकों को राजी करेगा जिला प्रशासन

राजधानी लखनऊ में एलिवेटेड फ्लाई ओवर के निर्माण के लिए भूखंड मालिकों को जिला प्रशासन राजी करेगा. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इसको लेकर 10 सितम्बर को अधिकारियों को पुनः तलब किया है.

एलिवेटेड फ्लाई ओवर के निर्माण के लिए भूखंड मालिकों को राजी करेगा जिला प्रशासन
एलिवेटेड फ्लाई ओवर के निर्माण के लिए भूखंड मालिकों को राजी करेगा जिला प्रशासन
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Published : Aug 25, 2021, 10:46 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच को अमर शहीद पथ से चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट के बीच प्रस्तावित एलिवेटेड फ्लाई ओवर के निर्माण मामले में जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने भरोसा दिया है कि निर्माण के रास्ते में आ रहे भूखंड मालिकों को जमीन देने के लिए राजी करने का प्रयास किया जाएगा. वहीं न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई तक सम्बंधित अधिकारियों से प्रगति रिपोर्ट तलब की है. साथ ही न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 10 सितम्बर की तिथि तय करते हुए, जिलाधिकारी, एलडीए वीसी, एमडी सेतु निगम समेत दूसरे अधिकारियों को पुनः हाजिर होने को कहा है.

यह आदेश न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने सुनील कुमार सिंह की ओर से दाखिल एक जनहित याचिका पर पारित किया. न्यायालय ने कहा कि निर्माण कार्य में कोई खास प्रगति नहीं हो सही है. पिछली सुनवाई पर बताया गया था कि 73 फीसदी काम पूरा हो गया है और इस बार बताया जा रहा है कि 76 फीसदी काम हो चुका है. वहीं सुनवाई के दौरान जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश, एलडीए वीसी अक्षय त्रिपाठी, नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी, यूपी सेतु निगम के एमडी योगेश पवार व विशेष सचिव महेश कुमार उपस्थित रहे.

एमडी सेतु निगम का कहना था कि वह बहुत जल्द एयरपोर्ट की तरफ से भी निर्माण शुरू करने जा रहे हैं. वहीं एलडीए की ओर से जानकारी दी गई कि फ्लाईओवर के रास्ते में जो 14 प्राईवेट लोगों के प्लॉट आ रहे हैं, उनमें से एक का आवंटन निरस्त कर दिया गया है. चार लोगों को दूसरी जगह समायोजित किया जा चुका है व चार ने यह रजामंदी दी है कि उनके भूखंडों का जितना हिस्सा फ्लाईओवर के निर्माण में आ रहा है, उसे अधिग्रहित कर लिया जाए, शेष को छोड दिया जाए.

इसे भी पढ़ें-शुरू हुआ राजधानी की अदालतों में काम-काज, वादकारियों ने ली राहत की सांस

हालांकि पांच लोग अब भी एलडीए के प्रस्ताव से राजी नहीं हैं. वहीं जिलाधिकारी ने बताया कि इस सम्बंध में उन्हें एलडीए से पत्र मिल चुका है. उन्होंने 6 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है जो प्रयास करेगी कि ये पांच लोग सेल डीड के जरिए जमीन दे दें. लेकिन यदि वे नहीं राजी होते तो अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू करना ही एकमात्र रास्ता है. इस पर न्यायालय ने दो सप्ताह का समय अधिकारियों के अनुरोध पर दे दिया.

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच को अमर शहीद पथ से चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट के बीच प्रस्तावित एलिवेटेड फ्लाई ओवर के निर्माण मामले में जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने भरोसा दिया है कि निर्माण के रास्ते में आ रहे भूखंड मालिकों को जमीन देने के लिए राजी करने का प्रयास किया जाएगा. वहीं न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई तक सम्बंधित अधिकारियों से प्रगति रिपोर्ट तलब की है. साथ ही न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 10 सितम्बर की तिथि तय करते हुए, जिलाधिकारी, एलडीए वीसी, एमडी सेतु निगम समेत दूसरे अधिकारियों को पुनः हाजिर होने को कहा है.

यह आदेश न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने सुनील कुमार सिंह की ओर से दाखिल एक जनहित याचिका पर पारित किया. न्यायालय ने कहा कि निर्माण कार्य में कोई खास प्रगति नहीं हो सही है. पिछली सुनवाई पर बताया गया था कि 73 फीसदी काम पूरा हो गया है और इस बार बताया जा रहा है कि 76 फीसदी काम हो चुका है. वहीं सुनवाई के दौरान जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश, एलडीए वीसी अक्षय त्रिपाठी, नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी, यूपी सेतु निगम के एमडी योगेश पवार व विशेष सचिव महेश कुमार उपस्थित रहे.

एमडी सेतु निगम का कहना था कि वह बहुत जल्द एयरपोर्ट की तरफ से भी निर्माण शुरू करने जा रहे हैं. वहीं एलडीए की ओर से जानकारी दी गई कि फ्लाईओवर के रास्ते में जो 14 प्राईवेट लोगों के प्लॉट आ रहे हैं, उनमें से एक का आवंटन निरस्त कर दिया गया है. चार लोगों को दूसरी जगह समायोजित किया जा चुका है व चार ने यह रजामंदी दी है कि उनके भूखंडों का जितना हिस्सा फ्लाईओवर के निर्माण में आ रहा है, उसे अधिग्रहित कर लिया जाए, शेष को छोड दिया जाए.

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हालांकि पांच लोग अब भी एलडीए के प्रस्ताव से राजी नहीं हैं. वहीं जिलाधिकारी ने बताया कि इस सम्बंध में उन्हें एलडीए से पत्र मिल चुका है. उन्होंने 6 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है जो प्रयास करेगी कि ये पांच लोग सेल डीड के जरिए जमीन दे दें. लेकिन यदि वे नहीं राजी होते तो अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू करना ही एकमात्र रास्ता है. इस पर न्यायालय ने दो सप्ताह का समय अधिकारियों के अनुरोध पर दे दिया.

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