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...टेक्नोलॉजी की दुनिया में कहीं खो गए डाकिया चाचा!

जिस तेजी से टेक्नोलॉजी अपना पैर पसार रही है, उसे देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में डाकिया चाचा सिर्फ कहानियों में ही रह जाएंगे. लोगों को कूरियर बॉय ज्यादा सही लगने लगा है. पार्सल कंपनियां भी अब इस काम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं.

देंखे खास रिपोर्ट.
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Published : Jul 27, 2019, 9:15 PM IST

लखनऊ: जैसे-जैसे समय बीता, डाकघर आत्याधुनिक हो गए. ऐसे में पुरानी पद्धति में काम करने वालों में भी बदलाव हो गया. अगर बात करें उत्तर प्रदेश में कितने डाकघर है तो ये जान कर हैरानी होगी कि यह भारत में दूसरी ऐसी संस्था है, जिसमें सबसे ज्यादा कर्मचारी कार्य कर रहे हैं. प्रदेश में लगभग 17,709 पोस्ट ऑफिस हैं. इसमें काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 6 लाख है.

देंखे खास रिपोर्ट.

वाराणसी में आज के समय में परमानेंट कर्मचारियों की संख्या 90 है. साथ ही आउटसोर्सिंग के बल पर 67 डाकियों की तैनाती भी की गई है. फिर भी जिले के डाक घर में 199 डाकियों की पोस्ट खाली हैं. वेतन की बात करें तो ग्रामीण डाकियों को महीने में 12020 रुपये मानदेय मिलता है. वहीं शहरी डाकियों का वेतन करीब 30 हजार रुपये है.

समस्याओं पर क्या कहते हैं डाकिये
डाकिया कपिल मुनि शुक्ला, रजनीकांत राय और जितेंद्र कुमार पाल का कहना है की पहले से अब बहुत अंतर आ गया है. पहले कुछ घरों में ही जाते थे. अब एक ही बिल्डिंग के 10 घरों में जाना पड़ता है. मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनने की वजह से परेशानियां बढ़ गई हैं. जनसंख्या बढ़ी है, लेकिन डाकियों की संख्या कम हो गई है.

टेक्नोलॉजी तो नहीं डाकियों की कमी की वजह
बदलते दौर के साथ डाकघर का स्वरूप भी बदल दिया गया. पोस्ट कार्ड की जगह लोग स्पीड पोस्ट करने लगे है. मनी ऑर्डर अब फोन पे, गूगल पे, भीम एप आदि से हो रहा है. वहीं इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक के जरिए गांव के लोगों का ईपीएस मशीन से खाता खोला जाएगा. इसके जरिए पैसा जमा करना, भुगतान करना आदि सब इसी के माध्यम से हो सकेगा.

आने वाली पीढ़ी क्या डाकिया चाचा को देख पायेगी?

जिस तेजी से टेक्नोलॉजी अपना पैर पसार रही है. उसे देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में डाकिया चाचा सिर्फ कहानियों में ही रह जाएंगे. लोगों को कूरियर बॉय ज्यादा सही लगने लगा है. पार्सल कंपनियां भी अब इस काम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं.

सुबह घर से पोस्ट ऑफिस के लिए निकलते हैं और दिन भर घूम-घूम कर दूर-दूर तक लोगों की चिट्टियां पहुंचाते हैं, लेकिन अब उनका थैला चिट्ठियों से भरता नहीं है. चिट्ठी का दौर खत्म हो गया है. ऐसे में अब बहुत समस्या हो रही है. जिंदगी चलाना मुश्किल हो रहा है. पेट काटकर किसी तरह जिंदगी चलानी पड़ती है. घर में तीन बच्चे हैं, उन्हें पढ़ाना-लिखाना और खिलाना भी होता है, लेकिन क्या करें मजबूरी है. बच्चों की पढ़ाई के लिए अच्छे स्कूल की भी व्यवस्था नहीं कर पाते हैं. सरकार से मांग है कि हमारा वेतन बढ़ाया जाए.
-रामनरेश, डाकिया, लखनऊ

2016 से सातवें पे कमीशन सभी विभागों के कर्मचारियों को मिला है. सेवाकाल के 10 साल बाद सभी कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन का लाभ हमारे पोस्टमैन को भी मिला है. तो मुझे लगता है कि यह पर्याप्त है.
-आरएन यादव, चीफ पोस्ट मास्टर, जीपीओ, लखनऊ

यही नहीं पूरी दुनिया में अब डाकियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन एडवांस टेक्नोलॉजी के साथ आज भी डाकघर अपने आप को बचा कर चलने की कोशिश कर रहे हैं. सिस्टम के साथ डाकियों को एडवांस किया जा रहा है.
-प्रणव कुमार, पोस्टमास्टर जनरल, वाराणसी

लखनऊ: जैसे-जैसे समय बीता, डाकघर आत्याधुनिक हो गए. ऐसे में पुरानी पद्धति में काम करने वालों में भी बदलाव हो गया. अगर बात करें उत्तर प्रदेश में कितने डाकघर है तो ये जान कर हैरानी होगी कि यह भारत में दूसरी ऐसी संस्था है, जिसमें सबसे ज्यादा कर्मचारी कार्य कर रहे हैं. प्रदेश में लगभग 17,709 पोस्ट ऑफिस हैं. इसमें काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 6 लाख है.

देंखे खास रिपोर्ट.

वाराणसी में आज के समय में परमानेंट कर्मचारियों की संख्या 90 है. साथ ही आउटसोर्सिंग के बल पर 67 डाकियों की तैनाती भी की गई है. फिर भी जिले के डाक घर में 199 डाकियों की पोस्ट खाली हैं. वेतन की बात करें तो ग्रामीण डाकियों को महीने में 12020 रुपये मानदेय मिलता है. वहीं शहरी डाकियों का वेतन करीब 30 हजार रुपये है.

समस्याओं पर क्या कहते हैं डाकिये
डाकिया कपिल मुनि शुक्ला, रजनीकांत राय और जितेंद्र कुमार पाल का कहना है की पहले से अब बहुत अंतर आ गया है. पहले कुछ घरों में ही जाते थे. अब एक ही बिल्डिंग के 10 घरों में जाना पड़ता है. मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनने की वजह से परेशानियां बढ़ गई हैं. जनसंख्या बढ़ी है, लेकिन डाकियों की संख्या कम हो गई है.

टेक्नोलॉजी तो नहीं डाकियों की कमी की वजह
बदलते दौर के साथ डाकघर का स्वरूप भी बदल दिया गया. पोस्ट कार्ड की जगह लोग स्पीड पोस्ट करने लगे है. मनी ऑर्डर अब फोन पे, गूगल पे, भीम एप आदि से हो रहा है. वहीं इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक के जरिए गांव के लोगों का ईपीएस मशीन से खाता खोला जाएगा. इसके जरिए पैसा जमा करना, भुगतान करना आदि सब इसी के माध्यम से हो सकेगा.

आने वाली पीढ़ी क्या डाकिया चाचा को देख पायेगी?

जिस तेजी से टेक्नोलॉजी अपना पैर पसार रही है. उसे देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में डाकिया चाचा सिर्फ कहानियों में ही रह जाएंगे. लोगों को कूरियर बॉय ज्यादा सही लगने लगा है. पार्सल कंपनियां भी अब इस काम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं.

सुबह घर से पोस्ट ऑफिस के लिए निकलते हैं और दिन भर घूम-घूम कर दूर-दूर तक लोगों की चिट्टियां पहुंचाते हैं, लेकिन अब उनका थैला चिट्ठियों से भरता नहीं है. चिट्ठी का दौर खत्म हो गया है. ऐसे में अब बहुत समस्या हो रही है. जिंदगी चलाना मुश्किल हो रहा है. पेट काटकर किसी तरह जिंदगी चलानी पड़ती है. घर में तीन बच्चे हैं, उन्हें पढ़ाना-लिखाना और खिलाना भी होता है, लेकिन क्या करें मजबूरी है. बच्चों की पढ़ाई के लिए अच्छे स्कूल की भी व्यवस्था नहीं कर पाते हैं. सरकार से मांग है कि हमारा वेतन बढ़ाया जाए.
-रामनरेश, डाकिया, लखनऊ

2016 से सातवें पे कमीशन सभी विभागों के कर्मचारियों को मिला है. सेवाकाल के 10 साल बाद सभी कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन का लाभ हमारे पोस्टमैन को भी मिला है. तो मुझे लगता है कि यह पर्याप्त है.
-आरएन यादव, चीफ पोस्ट मास्टर, जीपीओ, लखनऊ

यही नहीं पूरी दुनिया में अब डाकियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन एडवांस टेक्नोलॉजी के साथ आज भी डाकघर अपने आप को बचा कर चलने की कोशिश कर रहे हैं. सिस्टम के साथ डाकियों को एडवांस किया जा रहा है.
-प्रणव कुमार, पोस्टमास्टर जनरल, वाराणसी

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जैसे-जैसे समय बीता, डाकघर आत्याधुनिक हो गए. ऐसे में पुरानी पद्धति में काम करने वालों में भी बदलाव हो गया. अगर बात करें उत्तर प्रदेश में कितने डाकघर है तो ये जान कर हैरानी होगी की यह भारत में दूसरी ऐसी संस्था है जिसमें सबसे ज्यादा कर्मचारी कार्यकर रहे हैं. प्रदेश में लगभग 17,709 पोस्ट ऑफिस हैं. इसमें काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या 6 लाख है.

 वाराणसी में आज के समय में परमानेंट कर्मचारियों की संख्या 90 है. साथ ही आउटसोर्सिंग के बल पर 67 डाकियों की तैनाती भी की गई है. फिर भी जिले के डाक घर में 199 डाकियों को पोस्ट खाली है. वेतन की बात करें तो ग्रामीण डाकियों को महीने में 12020 रुपये मानदेय मिलता है. वहीं शहरी डाकियों का वेतन करीब 30 हजार रूपये है.



समस्याओं पर क्या कहते है डाकिये

डाकिया कपिल मुनि शुक्ला, रजनीकांत राय और जितेंद्र कुमार पाल का कहना है की पहले से अब बहुत अंतर आ गया है. पहले कुछ घरों में ही जाते थे. अब एक ही बिल्डिंग के 10 घरों में जाना पड़ता है. मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनने की वजह से परेशानियां बढ़ गई हैं. जनसंख्या बढ़ी है, लेकिन डाकियों की संख्या कम हो गई है.

सुबह घर से पोस्ट ऑफिस के लिए निकलते हैं और दिन भर घूम-घूम कर दूर-दूर तक लोगों की चिट्टियां पहुंचाते हैं, लेकिन अब उनका थैला चिट्ठियों से भरता नहीं है.

चिट्ठी का दौर खत्म हो गया है. ऐसे में अब बहुत समस्या हो रही है. जिंदगी चलाना मुश्किल हो रहा है. पेट काटकर किसी तरह जिंदगी चलानी पड़ती है. घर में तीन बच्चे हैं, उन्हें पढ़ाना-लिखाना और खिलाना भी होता है, लेकिन क्या करें मजबूरी है. बच्चों की पढ़ाई के लिए अच्छे स्कूल की भी व्यवस्था नहीं कर पाते हैं. सरकार से मांग है कि हमारा वेतन बढ़ाया जाए.

-रामनरेश, डाकिया, लखनऊ

क्या कहते हैं अधिकारीः

2016 से सातवें पे कमीशन सभी विभागों के कर्मचारियों को मिला है. सेवाकाल के 10 साल बाद सभी कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन का लाभ हमारे पोस्टमैन को भी मिला है. तो मुझे लगता है कि यह पर्याप्त है.

-आरएन यादव, चीफ पोस्ट मास्टर, जीपीओ, लखनऊ

यही नहीं पूरी दुनिया में अब डाकियों की संख्या कम हो रही है, लेकिन एडवांस टेक्नोलॉजी के साथ आज भी डाकघर अपने आप को बचा कर चलने की कोशिश कर रहे हैं. सिस्टम के साथ डाकियों को एडवांस किया जा रहा है.

-प्रणव कुमार, पोस्टमास्टर जनरल, वाराणसी

टेक्नोलॉजी तो नहीं डाकियों की कमी की वजह

बदलते दौर के साथ डाकघर का स्वरूप भी बदल दिया गया. पोस्ट कार्ड की जगह लोग स्पीड पोस्ट करने लगे है. मनी ऑर्डर अब फोन पे, गूगल पे, भीम एप आदि से हो रहा है. वहीं इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक के जरिए गांव के लोगों का ईपीएस मशीन से खाता खोला जाएगा. इसके जरिए पैसा जमा करना, भुगतान करना आदि सब इसी के माध्यम से हो सकेगा.



आने वाली पीढ़ी क्या देख पायेगी डाकिया चाचा को?

जिस तेजी से टेक्नोलॉजी अपना पैर पसार रहा है. उसे देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में डाकिया चाचा सिर्फ कहानियों में ही रह जायेंगे. लोगों को कोरियर बॉय ज्यादा सही लगने लगा है. पार्सल कंपनियां भी अब इस काम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं. 

      


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