लखनऊ : मौसम में उतार-चढ़ाव होने पर चिकन पॉक्स होने का खतरा रहता है. राजधानी के सरकारी अस्पतालों में चिकन पॉक्स के मरीजों के आने का सिलसिला शुरू भी हो गया है. बलरामपुर एवं केजीएमयू में दो-दो मरीज भर्ती कराए गए हैं.
- संक्रमित होने के बाद व्यक्ति को बेचैनी महसूस होने लगती है.
- मांसपेशियों में दर्द रहता है और शरीर पर छोटे-छोटे लाल चकत्ते या छाले पड़ जाते हैं.
- छालों में असहनीय खुजली होती है और 2 दिन बाद इनमें पानी भर जाता है.
- बुखार के साथ शरीर में ऐठन और सांस लेने में तकलीफ होती है.
- भूख नहीं लगती है और जी मचलता है.
बीमारी को आस्था से ना जोड़ें इलाज कराएं
- वेरीसेल्ला जोस्टर वायरस वीजेडवी के कारण चिकन पॉक्स होता है.
- इसे लेकर ग्रामीण इलाकों में लोग भ्रमित रहते हैं
- इसे आस्था से भी जोड़कर देखा जाता है.
- झाड़-फूंक की बजाय बीमारी का तत्काल इलाज शुरु कराएं
- साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें.
- बच्चों से ज्यादा बड़ों में संक्रमण फैलने का खतरा अधिक रहता है .
रोकथाम के उपाय
- मरीज को अलग कमरे में रखे साथ ही उसके बिस्तर और बर्तन की भी अलग व्यवस्था रखें
- शरीर पर पड़े छालों में खुजली होगी लेकिन उन्हें फोड़ना नहीं चाहिए.
- छालों का सूखना बीमारी के खत्म होने का संकेत है.
- चिकन पॉक्स से ग्रसित व्यक्ति को स्नान करते समय नीम युक्त पानी का इस्तेमाल करना चाहिए.
- संक्रमित व्यक्ति को भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाने से बचना चाहिए.
- 1 वर्ष से कम उम्र के शिशु और गर्भवती महिलाओं को इसका टीका नहीं लगवाना चाहिए.
इस बीमारी के होने पर तत्काल इलाज शुरू कराना चाहिए. झाड़-फूंक के चक्कर में देरी नहीं करनी चाहिए. बच्चों में एंटीबॉडीज अधिक बनती है इसलिए उनकी रिक्वरी तेजी से हो जाती है. वहीं दूसरी ओर व्यसकों में एंटीबॉडीज कम बनते हैं इसलिए बच्चों से ज्यादा बड़े इस बीमारी से प्रभावित होते हैं. अगर संक्रमण से प्रभावित व्यक्ति किसी वस्तु का स्पर्श करता है तो वहां चिकन पॉक्स के वायरस रह जाते हैं. ऐसे में दूसरा व्यक्ति वहां पहुंचने पर संपर्क में आ जाता है यही वजह है कि संक्रमित व्यक्ति को अलग कमरे में रखा जाता है. इस बीमारी का असर 15 दिन तक रहता है.
- डॉ. डी हिमांशु, प्रभारी-संक्रमण रोग नियंत्रण, केजीएमयू