लखनऊ: उत्तर प्रदेश में करीब 6.46 करोड़ महिला मतदाता हैं, जिनके बीच समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश की अच्छी छवि है. बावजूद इसके पार्टी में डिंपल यादव को छोड़कर अन्य कोई भी ऐसा बड़ा चेहरा नहीं है, जो महिला मतदाताओं को अपनी ओर खींचने का माद्दा रखता हो. इन्हीं सभी समस्याओं के समाधान को जारी मंथन के बाद अब पार्टी ने एक तीर से दो निशाना लगाने का मन बना लिया है. सियासी हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी अब खुलकर अखिलेश यादव के साथ मंच साझा करेंगी. ऐसे में ममता का साथ अखिलेश के लिए दोहरे लाभ से कम नहीं है.
हाल ही पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में ममता को मिली ऐतिहासिक विजय से उनकी पूरे देश में एक मजबूत साख बनी है और उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रबल सियासी प्रतिद्वंद्वी माना जा रहा है. वहीं, कुछ सियासी जानकारों का कहना है कि आगामी 2024 का लोकसभा चुनाव मोदी बनाम ममता के बीच तय है. वहीं, समाजवादी पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात देने और कांग्रेस के 40 फीसद महिलाओं को टिकट देने के दांव की काट निकाल ली है.
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जहां एक ओर पूरे प्रदेश में रथयात्रा निकाल रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर सपा महिला मतदाताओं को अपने पाले में करने को ममता, जया बच्चन और डिंपल यादव की जोड़ी उतारने की तैयारी कर रही है. ये तीनों सूबे में सपा के लिए एक ही रथ से प्रचार कर सकती हैं. वहीं, तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी की रैली उन स्थानों पर आयोजित की जाएगी, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली को संबोधित करेंगे.
जल्द तृणमूल संग गठजोड़ की हो सकती है घोषणा
अब विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच जल्द ही गठबंधन का एलान हो सकता है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो दोनों पार्टियों के बीच बातचीत अब पूरी हो चुकी है. साथ ही गठबंधन की घोषणा के बाद ममता बनर्जी यूपी के विधानसभा चुनावों में सक्रिय रूप से सपा के लिए प्रचार करती दिखेंगी.
पूर्वांचल और अवध क्षेत्र पर जोर
सूत्रों की मानें तो अभी जिले तय नहीं हुए हैं, बावजूद इसके पूर्वांचल और अवध के जिलों में दीदी के अधिक से अधिक दौरे करने की योजना है. वहीं, इसके पीछे की दलील यह दी गई है कि भाजपा यहां इन क्षेत्रों में अधिक मजबूत है. हालांकि, पश्चिम में किसान आंदोलन के कारण भाजपा की पकड़ कमजोर हुई है. इसके अलावा तराई के क्षेत्र में लखीमपुर हिंसा के बाद लोगों में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ी है. ऐसे में इन स्थानों पर किसान आंदोलन को ही आगे रखा जा सकता है.
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