लखनऊ: बलरामपुर अस्पताल में करोड़ों की लागत से खरीदे गए वेंटिलेटर अब शोपीस बन गए हैं. इस समय गंभीर हालत में अस्पताल आने वाले मरीजों को अन्य अस्पताल रेफर किया जा रहा है. अधिकारियों का कहना है कि स्पेशलिस्ट टेक्नीशियन और डॉक्टरों की कमी के कारण गिनती के ही वेंटिलेटर काम कर रहे हैं. इसी के चलते गंभीर मरीजों को दूसरे अस्पताल रेफर करना पड़ा रहा है. जिम्मेदारों की लापरवाही से राजधानी के साथ ही दूर- दराज से आने वाले मरीजों को भटकना पड़ रहा है.
बलरामपुर अस्पताल की आईसीयू यूनिट में 28 वेंटिलेटर हैं. इसमें महज 8 पर मरीजों को भर्ती किया जा रहा है. बाकी 20 वेंटिलेटर शोपीस बनकर रह गए हैं. अस्पताल प्रशासन का कहना है कि स्पेशलिस्ट की कमी के कारण सभी वेंटिलेटर संचालन में दिक्कत आ रही है. बलरामपुर अस्पताल में वेंटिलेटर सुविधा फ्री है, जबकि प्राइवेट में एक दिन का चार्ज 15 से 20 हजार रुपये आता है. फ्री सुविधा होने के बावजूद आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को इलाज के लिए निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है. सूत्रों के अनुसार, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के तमाम लोग निजी अस्पतालों का खर्च नहीं उठा पाते और मरीज को जान से हाथ तक धोना पड़ रहा है.
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दरअसल, सड़क हादसे में घायल राहुल को ट्रॉमा सेंटर में वेंटिलेटर नहीं मिल सका. उसे बलरामपुर अस्पताल भेज दिया गया. परिजन किसी तरह मरीज को बलरामपुर अस्पताल की इमरजेंसी लाए, हालांकि यहां से भी वेंटिलेटर खाली न होने की बात कहते हुए लौटा दिया गया. मजबूरी में परिजनों ने राहुल को निजी अस्पताल में भर्ती करवाया.
वहीं बांदा निवासी बुजुर्ग रामचंद्र को सांस लेने में समस्या के साथ ही कई अन्य दिक्कतें थीं. तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर परिवारीजन बुजुर्ग को लेकर केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर पहुंचे. डॉक्टरों ने तत्काल इलाज के साथ ही वेंटिलेटर की जरूरत बताई. आठ घंटे इंतजार करवाने के बाद वेंटिलेटर खाली नहीं होने की बात कहते हुए बलरामपुर भेज दिया गया. बलरामपुर अस्पताल पहुंचने पर भी वेंटिलेटर खाली नहीं होने की बात कहते हुए लौटा दिया गया.
अस्पताल के सीएमएस डॉ. जीपी गुप्ता के अनुसार वेंटिलेटर संचालन के लिए मैन पावर की कमी है. स्पेशलिस्ट टेक्नीशियन के साथ ही बेहोशी के डॉक्टरों की भी कमी है. इसके बावजूद इमरजेंसी में वेंटिलेटर की जरूरत पड़ने पर मरीजों को भर्ती किया जा रहा है.
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