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स्कूलों में नई शिक्षा नीति लागू, इस साल किताबें 30 प्रतिशत महंगी हुईं

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Published : Apr 7, 2023, 7:14 AM IST

सभी स्कूलों में नई शिक्षा नीति लागू कर दी गयी है. छात्रों को इस साल हर हाल में नई किताबे खरीदनी पढ़ रही है. इस साल किताबों के दामों में 30 फीसदी बढ़ोतरी हुई है.

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लखनऊः इस साल देश में संचालित सभी स्कूलों में नई शिक्षा नीति को लागू किया गया है. नई शिक्षा नीति लागू होने के कारण सभी बोर्ड ने अपने यहां के किताबों के पाठ्यक्रमों में बड़ा बदलाव कर दिया है. ऐसे में कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक के पढ़ाई कर रहे सभी छात्रों को इस साल हर हाल में नई किताबें खरीदनी पढ़ रही हैं. नई शिक्षा नीति के कारण किताबों की मांग बढ़ने व सप्लाई कम होने के कारण इनके दामों में भी अधिक बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. इसका सीधा असर अभिभावकों के जेब पर पढ़ रहा है. सभी बोर्ड के सभी कक्षाओं में नई किताबें लागू हुई है. ऐसे में जो अभिभावक पुरानी किताबें लेकर बच्चों को दे देते थे. उन्हें भी इस साल हर हाल में नई किताबें ही खरीदनी पढ़ रही है.

बीते साल की तुलना में नई किताबों का मूल्य अचानक से बढ़ गया है. नई किताबों का बाजार मूल्य, पिछले साल की किताबों की तुलना में अधिक होने से अभिभावकों पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है. एनसीईआरटी सिलेबस जारी होने के बाद नई शिक्षा नीति के तहत सिलेबस तैयार कर प्राइवेट प्रकाशकों ने किताबें प्रिंट करायी हैं. वहीं एनसीआरटीई की किताबों की मार्केट में काफी कमी है. आलम ये है कि राजधानी लखनऊ में अभिभावकों की जेब पर फीस के बाद कॉपी किताबों का बोझ तीन गुणा तक अधिक बढ़ गया है. स्कूलों ने इस साल अपने फीस में 10% की बढ़ोतरी की है, तो वही प्रकाशकों ने अपने किताबों के दामों में 30 फीसदी बढ़ोतरी कर दी है.

अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि बीते साल जहां प्राइवेट स्कूलों में कक्षा 6 की किताबों का मूल्य अधिकतम 5500 रुपये तक था. वह इस बार बढ़कर 8000 रुपये तक पहुंच गया है. इसके अलावा नौवीं कक्षा में जहां पीते साल लगभग 6500 रुपये में किताबें व स्टेशनरी उपलब्ध करा दी गई थी. वहीं इस सर इसकी कीमत 10,000 रुपये से भी ऊपर पहुंच गई है. उन्होंने बताया कि गोमती नगर के एक बड़े प्राइवेट स्कूल में कक्षा एक की किताबें व स्टेशनरी का रेट 3000 रुपये से ऊपर पहुंच गया है.

उन्होंने कहा कि सिर्फ किताबें ही 2,815 रुपये में मिल रही हैं. वहीं कॉपियों का सेट 677 रुपये व स्टेशनरी का चार्ज अलग से 350 रुपये लिया गया है. प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया कि इसके अलावा स्कूल प्रशासन एक ही दुकान से किताबें खरीदने का दबाव बना रहे हैं शहर में जितने भी बड़े प्राइवेट स्कूल हैं, वहां पर किताबों व स्टेशनरी का रेट का सबसे न्यूनतम दर 5000 रुपये तय किया गया है, जो अब तक के इतिहास में सबसे अधिक है.

प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों पर 10 से 30 फीसदी तक कमीशन मिल रहा है. अमीनाबाद स्थित बुक डिपो के मालिकों का कहना है कि एनसीईआरटी की किताबों का सेट पांच सौ रुपये के अंदर आ जाता है. वहीं, इस साल नई शिक्षा नीति लागू होने के कारण प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें चार हजार रुपये से कम की नहीं मिल रही है. बुक डिपो वालों का कहना है कि एनसीईआरटी की किताबों की भारी कमी है. जबकि प्रकाशकों के पास भी जितनी डिमांड है, उस हिसाब से किताबों की सप्लाई नहीं मिल पा रही है. क्योंकि इस बार सभी नई किताबें लागू हुई है.

ऐसे में डिमांड के अनुसार सप्लाई न होने और कागज के रेट महंगे होने के कारण किताबें पिछले साल की तुलना में 30% महंगी हो चुकी हैं. अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों में किताबें चलाने के लिए इन प्रकाशकों की ओर से प्रबंधकों को कमीशन दिया जाता है. ऐसे में इसकी वसूली के लिए भी किताबों के मूल्य में बढ़ोतरी की गई है. इस तरह स्कूलों को 10 से 30 फीसदी तक कमीशन मिलता है. कई बड़े स्कूल वालों ने अपनी किताबें बेचने के लिए दुकानें तय करती हैं इनकी किताबें उसके अलावा और कहीं नहीं मिल रही हैं.

ये भी पढ़ें- उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा संघ ने की सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन की मांग

लखनऊः इस साल देश में संचालित सभी स्कूलों में नई शिक्षा नीति को लागू किया गया है. नई शिक्षा नीति लागू होने के कारण सभी बोर्ड ने अपने यहां के किताबों के पाठ्यक्रमों में बड़ा बदलाव कर दिया है. ऐसे में कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक के पढ़ाई कर रहे सभी छात्रों को इस साल हर हाल में नई किताबें खरीदनी पढ़ रही हैं. नई शिक्षा नीति के कारण किताबों की मांग बढ़ने व सप्लाई कम होने के कारण इनके दामों में भी अधिक बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. इसका सीधा असर अभिभावकों के जेब पर पढ़ रहा है. सभी बोर्ड के सभी कक्षाओं में नई किताबें लागू हुई है. ऐसे में जो अभिभावक पुरानी किताबें लेकर बच्चों को दे देते थे. उन्हें भी इस साल हर हाल में नई किताबें ही खरीदनी पढ़ रही है.

बीते साल की तुलना में नई किताबों का मूल्य अचानक से बढ़ गया है. नई किताबों का बाजार मूल्य, पिछले साल की किताबों की तुलना में अधिक होने से अभिभावकों पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है. एनसीईआरटी सिलेबस जारी होने के बाद नई शिक्षा नीति के तहत सिलेबस तैयार कर प्राइवेट प्रकाशकों ने किताबें प्रिंट करायी हैं. वहीं एनसीआरटीई की किताबों की मार्केट में काफी कमी है. आलम ये है कि राजधानी लखनऊ में अभिभावकों की जेब पर फीस के बाद कॉपी किताबों का बोझ तीन गुणा तक अधिक बढ़ गया है. स्कूलों ने इस साल अपने फीस में 10% की बढ़ोतरी की है, तो वही प्रकाशकों ने अपने किताबों के दामों में 30 फीसदी बढ़ोतरी कर दी है.

अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि बीते साल जहां प्राइवेट स्कूलों में कक्षा 6 की किताबों का मूल्य अधिकतम 5500 रुपये तक था. वह इस बार बढ़कर 8000 रुपये तक पहुंच गया है. इसके अलावा नौवीं कक्षा में जहां पीते साल लगभग 6500 रुपये में किताबें व स्टेशनरी उपलब्ध करा दी गई थी. वहीं इस सर इसकी कीमत 10,000 रुपये से भी ऊपर पहुंच गई है. उन्होंने बताया कि गोमती नगर के एक बड़े प्राइवेट स्कूल में कक्षा एक की किताबें व स्टेशनरी का रेट 3000 रुपये से ऊपर पहुंच गया है.

उन्होंने कहा कि सिर्फ किताबें ही 2,815 रुपये में मिल रही हैं. वहीं कॉपियों का सेट 677 रुपये व स्टेशनरी का चार्ज अलग से 350 रुपये लिया गया है. प्रदीप श्रीवास्तव ने बताया कि इसके अलावा स्कूल प्रशासन एक ही दुकान से किताबें खरीदने का दबाव बना रहे हैं शहर में जितने भी बड़े प्राइवेट स्कूल हैं, वहां पर किताबों व स्टेशनरी का रेट का सबसे न्यूनतम दर 5000 रुपये तय किया गया है, जो अब तक के इतिहास में सबसे अधिक है.

प्राइवेट प्रकाशकों की किताबों पर 10 से 30 फीसदी तक कमीशन मिल रहा है. अमीनाबाद स्थित बुक डिपो के मालिकों का कहना है कि एनसीईआरटी की किताबों का सेट पांच सौ रुपये के अंदर आ जाता है. वहीं, इस साल नई शिक्षा नीति लागू होने के कारण प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें चार हजार रुपये से कम की नहीं मिल रही है. बुक डिपो वालों का कहना है कि एनसीईआरटी की किताबों की भारी कमी है. जबकि प्रकाशकों के पास भी जितनी डिमांड है, उस हिसाब से किताबों की सप्लाई नहीं मिल पा रही है. क्योंकि इस बार सभी नई किताबें लागू हुई है.

ऐसे में डिमांड के अनुसार सप्लाई न होने और कागज के रेट महंगे होने के कारण किताबें पिछले साल की तुलना में 30% महंगी हो चुकी हैं. अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों में किताबें चलाने के लिए इन प्रकाशकों की ओर से प्रबंधकों को कमीशन दिया जाता है. ऐसे में इसकी वसूली के लिए भी किताबों के मूल्य में बढ़ोतरी की गई है. इस तरह स्कूलों को 10 से 30 फीसदी तक कमीशन मिलता है. कई बड़े स्कूल वालों ने अपनी किताबें बेचने के लिए दुकानें तय करती हैं इनकी किताबें उसके अलावा और कहीं नहीं मिल रही हैं.

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