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लखनऊ: प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन डॉ. डीके छाबड़ा का निधन

उत्तर प्रदेश में न्यूरो सर्जरी की पहचान दिलाने वाले डाॅ. डीके छाबड़ा का मंगलवार सुबह निधन हो गया. वह काफी दिनों से बीमार चल रहे थे और राजधानी लखनऊ के एसजीपीजीआई में उनका इलाज चल रहा था. वह ट्यूमर की बीमारी से पीड़ित थे.

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न्यूरो सर्जन डॉ. डीके छाबड़ा.
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Published : Jun 30, 2020, 8:01 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में न्यूरो सर्जरी को स्थापित कर एक नई पहचान दिलाने वाले देश के जाने-माने न्यूरो सर्जन डॉ. डीके छाबड़ा का मंगलवार की सुबह निधन हो गया. वह 80 वर्ष के थे और काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. उन्हें ट्यूमर की बीमारी थी और पिछले कई दिनों से उनका इलाज राजधानी लखनऊ के एसजीपीजीआई के क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में चल रहा था. सोमवार की रात उनकी तबीयत ज्यादा खराब होने के बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था.

प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन डॉ. डीके छाबड़ा का निधन.


डॉ. डीके छाबड़ा ने किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस और एमएस की पढ़ाई की थी. इसके बाद 1974 से 1986 तक वह केजीएमयू में ही बतौर न्यूरो सर्जन काम करते रहे. इसके बाद 1987 में वह संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में चले गए. वहां पर उन्होंने न्यूरो सर्जरी विभाग स्थापित किया और उसके डीन व कार्यवाहक निदेशक भी रहे. एसजीपीजीआई में उन्होंने 2003 तक अपनी सेवाएं दी. सेवानिवृत्त होने के बाद वह निराला नगर में स्थित विवेकानंद अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे थे.

वहीं केजीएमयू के न्यूरो सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. बीके ओझा ने बताया कि वह जितने सख्त थे, उतने ही गरीब मरीजों के प्रति नरम भी थे. उन्होंने हमेशा गरीब मरीजों के बीच रहकर उनका इलाज किया है. इतना ही नहीं वह गरीब मरीजों के लेकर हमेशा चिंतित रहते थे और जब इच्छा हो उनका हाल जानने वार्ड में पहुंच जाते थे.


न्यूरो सर्जरी में इजाद की थी नई तकनीक
डॉ. छाबड़ा ने न्यूरो सर्जरी में कई प्रयोग किए और तकनीक इजाद की. उन्होंने दिमाग में भरे फ्लूइड को स्पाइन के जरिए बाहर निकालने की नई तकनीक इजाद की थी. इतना ही नहीं उन्होंने दिमाग में लगाने के लिए एक स्टेंट भी विकसित किया था. इसका नाम उन्होंने अपने नाम पर छाबड़ा वेंट्रीकुलोपेरीटोनियल स्टेंट रखा था. मौजूदा समय में इस स्टेंट का उपयोग दुनिया भर के 28 देशों के डाॅक्टर कर रहे हैं.

प्रकाशित हो चुके हैं 300 से अधिक शोध पत्र

कई किताबों के साथ उनके द्वारा लिखे करीब 300 शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं. विवेकानंद अस्पताल के ट्रस्टी स्वामी मुक्तिनाथानंद ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि 2004 से लगातार वह हमारे साथ कार्यरत थे. यहां पर उन्होंने इस अस्पताल में न्यूरो सर्जरी विभाग की स्थापना की थी. उन्होंने बताया कि यही वजह है कि हमारे अस्पताल में नेपाल से भी मरीज न्यूरो सर्जरी के लिए आते हैं. डॉ. छाबड़ा के निधन से चिकित्सा जगत को एक बड़ी क्षति हुई है.

डाक्टरों ने व्यक्त किया शोक

डॉ. डीके छाबड़ा के निधन पर पीजीआई के निदेशक डॉ. आरके धीमान, सीएमएस डॉ. अमित अग्रवाल, न्यूरो सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. संजय बिहारी, डॉ. राकेश कपूर, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. आरके गर्ग समेत चिकित्सा जगत के तमाम डॉक्टरों ने शोक व्यक्त किया है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में न्यूरो सर्जरी को स्थापित कर एक नई पहचान दिलाने वाले देश के जाने-माने न्यूरो सर्जन डॉ. डीके छाबड़ा का मंगलवार की सुबह निधन हो गया. वह 80 वर्ष के थे और काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. उन्हें ट्यूमर की बीमारी थी और पिछले कई दिनों से उनका इलाज राजधानी लखनऊ के एसजीपीजीआई के क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में चल रहा था. सोमवार की रात उनकी तबीयत ज्यादा खराब होने के बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था.

प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन डॉ. डीके छाबड़ा का निधन.


डॉ. डीके छाबड़ा ने किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस और एमएस की पढ़ाई की थी. इसके बाद 1974 से 1986 तक वह केजीएमयू में ही बतौर न्यूरो सर्जन काम करते रहे. इसके बाद 1987 में वह संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में चले गए. वहां पर उन्होंने न्यूरो सर्जरी विभाग स्थापित किया और उसके डीन व कार्यवाहक निदेशक भी रहे. एसजीपीजीआई में उन्होंने 2003 तक अपनी सेवाएं दी. सेवानिवृत्त होने के बाद वह निराला नगर में स्थित विवेकानंद अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहे थे.

वहीं केजीएमयू के न्यूरो सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. बीके ओझा ने बताया कि वह जितने सख्त थे, उतने ही गरीब मरीजों के प्रति नरम भी थे. उन्होंने हमेशा गरीब मरीजों के बीच रहकर उनका इलाज किया है. इतना ही नहीं वह गरीब मरीजों के लेकर हमेशा चिंतित रहते थे और जब इच्छा हो उनका हाल जानने वार्ड में पहुंच जाते थे.


न्यूरो सर्जरी में इजाद की थी नई तकनीक
डॉ. छाबड़ा ने न्यूरो सर्जरी में कई प्रयोग किए और तकनीक इजाद की. उन्होंने दिमाग में भरे फ्लूइड को स्पाइन के जरिए बाहर निकालने की नई तकनीक इजाद की थी. इतना ही नहीं उन्होंने दिमाग में लगाने के लिए एक स्टेंट भी विकसित किया था. इसका नाम उन्होंने अपने नाम पर छाबड़ा वेंट्रीकुलोपेरीटोनियल स्टेंट रखा था. मौजूदा समय में इस स्टेंट का उपयोग दुनिया भर के 28 देशों के डाॅक्टर कर रहे हैं.

प्रकाशित हो चुके हैं 300 से अधिक शोध पत्र

कई किताबों के साथ उनके द्वारा लिखे करीब 300 शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं. विवेकानंद अस्पताल के ट्रस्टी स्वामी मुक्तिनाथानंद ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि 2004 से लगातार वह हमारे साथ कार्यरत थे. यहां पर उन्होंने इस अस्पताल में न्यूरो सर्जरी विभाग की स्थापना की थी. उन्होंने बताया कि यही वजह है कि हमारे अस्पताल में नेपाल से भी मरीज न्यूरो सर्जरी के लिए आते हैं. डॉ. छाबड़ा के निधन से चिकित्सा जगत को एक बड़ी क्षति हुई है.

डाक्टरों ने व्यक्त किया शोक

डॉ. डीके छाबड़ा के निधन पर पीजीआई के निदेशक डॉ. आरके धीमान, सीएमएस डॉ. अमित अग्रवाल, न्यूरो सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. संजय बिहारी, डॉ. राकेश कपूर, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. आरके गर्ग समेत चिकित्सा जगत के तमाम डॉक्टरों ने शोक व्यक्त किया है.

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