लखनऊ: राजधानी में हिंदी दिवस के अवसर पर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग द्वारा एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम "वेब पत्रकारिता में हिंदी भाषा का अनुप्रयोग" विषय पर आयोजित किया गया.
वेबिनार के मुख्य अतिथि प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने इस अवसर पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि नई तकनीक के आ जाने से पत्रकारिता का कलेवर बदला है. पहले अखबार-पत्रों में शब्दों की शुद्धता और चयन पर विशेष ध्यान दिया जाता था. अब वेब पत्रकारिता में भाषाई शुद्धता पर ध्यान नहीं दिया जाता. न ही खबरों की पुष्टि होती है, जिसका एक मुख्य कारण यह भी है कि वहां लोगों को आज़ादी है अपने मन के विचार रखने की. उस पर कोई नियंत्रण नहीं है. मगर अधिक चिंता का विषय अखबार पत्र और चैनल हैं, जहां दूषित भाषा का प्रयोग हो रहा है. ये वेब पत्रकारिता से भी ज्यादा गंभीर विषय है. इन संस्थानों द्वारा विधिवत खबरों का प्रकाशन किया जाता है. ऐसे में विशुद्ध शब्दावली और भाषा का प्रयोग चिंतनीय है, जो पूरे संपादन मंडल पर सवाल खड़े करता है.
हिंदी दिवस मनाने की जरूरत क्यों?
कार्यक्रम के संरक्षक विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य संजय सिंह ने कहा कि हिंदी दिवस मनाने की जरूरत क्यों पड़ रही है. इस पर विचार करने की आवश्यकता है. वेब पत्रकारिता के आने से हिंदी खबरों और हिंदी भाषा के प्रयोग को गति अवश्य मिली है. मगर कुछ विशेष क्षेत्रों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने की आवश्यकता है, जैसे की विज्ञान, तकनीकी और प्रौद्योगिकी. उन्होंने वेब माध्यम से सकारात्मक और ऊर्जावान विचार साझा करने का सुझाव भी दिया.
राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजीव भनावत ने कहा कि यह तकनीकी का युग है, जिसने भौगोलिक दूरियां खत्म कर हमें एक ऐसा प्लेटफॉर्म दिया है. यहां हम सभी खुलकर अपने विचार रख सकते हैं. वेब पत्रकारिता के आ जाने से यकीनन हिंदी भाषा के विकास को बल मिला है. आगे आने वाले समय में भी इसका और विकास होगा. मगर वेब माध्यम से हम पढ़ने के लिए पाठकों तक अच्छा विषय, शुद्ध भाषा और पुष्ट खबरे पहुंचा सकें, यह एक चुनौती है. इस पर विचार करने की आवश्यकता है.
वेब पत्रकारिता विविधता की पत्रकारिता
विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि वेब जर्नलिज्म का यह 25वां वर्ष है. यूनिकोड के आ जाने के बाद से हिंदी वेब पत्रकारिता को काफी बढ़ावा मिला है. वेब पत्रकारिता विविधता की पत्रकारिता है. आगे आने वाले समय में इसके स्वरूप में और बदलाव आएंगे. आज हर व्यक्ति पत्रकार है. तकनीकी ने सभी को सूचनाएं साझा करने में सक्षम बना दिया है. मगर इन सभी बदलावों के साथ आज हमारे सामने कंटेंट की समस्या भी उत्पन्न हुई है. साथ ही शब्दों का प्रयोग पहले जिस सावधानी से होता था आज वह सतर्कता नहीं देखने को मिलती है. आज की चुनौती यह है कि हम वेब के जरिए हिंदी साहित्य को लोगों तक अधिक से अधिक संख्या में पहुंचा सके. हिंदी में ई-बुक की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित कर सकें. उन्होंने कहा कि दुनिया में सिर्फ 51 ध्वनियां हैं. अन्य किसी भी भाषा में सिर्फ 26 या 30 ध्वनियां ही हैं. मगर हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसमें 51 ध्वनियां हैं. इसलिए हमें अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए. यकीनन आगे आने वाले वक्त में यह भाषा और मजबूती के साथ उभरेगी.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनुराग दवे ने कहा कि वेब पत्रकारिता के आने के बाद से हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ा है. विभिन्न ई-कंपनियां अब हिंदी भाषा का विकल्प दे रही हैं, जोकि अपने आप में हिंदी की बढ़ती शक्ति को दर्शाता है. इसके आने से सिटीजन जर्नलिज्म की शुरुआत भी हुई है, जिससे मीडिया का लोकतांत्रिकरण भी हुआ है. मगर इसके साथ ही सूचना की पुष्टि एक बड़ी समस्या हमारे सामने खड़ी हो गई है. हम सभी फ़ेक न्यूज़ की समस्या से परिचित हैं. इस पर हमें विचार करने की आवश्यकता है.
कार्यक्रम के आयोजन समिति के सदस्य डॉ. महेंद्र कुमार पाढ़ी, डॉ. रचना गंगवार, डॉ. सुरेंद्र बहादुर कार्यक्रम में शामिल रहे. कार्यक्रम के अंत में मीडिया एवं जनसंचार विद्यापीठ के संकाय अध्यक्ष प्रोफ़ेसर गोपाल सिंह ने सभी शिक्षकों, अतिथियों और विद्यार्थियों का कार्यक्रम में शामिल होने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया.