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...तो इसलिए UP में भाजपा के पक्ष में मतदान कर सकते हैं मुसलमान !

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Published : Nov 3, 2021, 2:35 PM IST

Updated : Nov 3, 2021, 4:17 PM IST

मुस्लिमों को भाजपा विरोधी माना जाता रहा है. लेकिन भाजपा सूत्रों की मानें तो अबकी प्रदेश के मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी उम्मीद से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करने वाली है.

UP में भाजपा के पक्ष में मतदान कर सकते हैं मुसलमान !
UP में भाजपा के पक्ष में मतदान कर सकते हैं मुसलमान !

लखनऊ: ऐसे तो अब तक मुस्लिमों को भाजपा विरोधी माना जाता रहा है. लेकिन भाजपा सूत्रों की मानें तो अबकी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी उम्मीद से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करने वाली है. लेकिन यह तो भाजपा की ओर से दावा किया जा रहा है. लेकिन सूबे की मौजूदा सियासी हालात को देख ऐसा लगता नहीं है कि भाजपा को मुस्लिमों का वोट और वो भी उस अनुपात में मिलेगा, जिसका दावा पार्टी कर रही है. क्योंकि सूबे के सियासी इतिहास में कभी भाजपा और मुस्लिमों के बीच बेहतर तालमेल वाली स्थिति बनी ही नहीं.

वहीं, सूबे के सियासी जानकार प्रोफेसर डॉ. ललित कुचालिया ने कहा कि भाजपा के दांव और दावे दोनों में कुछ खास मजबूती नहीं दिख रही है और अगर मुस्लिमों को साधने की कोई प्लानिंग बनाई भी गई है तो उसके सफल होने उम्मीद कम ही है.

खैर, भाजपा अब सियासी दूरी को पाटने के लिए विशेष रणनीति के तहत केंद्र व राज्य सरकार की सरकारी योजनाओं के साथ-साथ लाभान्वितों की सूची तैयार करने की योजना के साथ आगे बढ़ रही है.

इसे भी पढ़ें- राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रदेशवासियों को दी दीपावली की बधाई


ये है भाजपा की प्लानिंग

बता दें कि सूबे में करीब 115 ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक की भूमिका में हैं. साथ ही इनसे से अधिकांश सीटें पश्चिम उत्तर प्रदेश में हैं. ऐसे में अब भाजपा ने मुस्लिमों को अपने साथ करने को रणनीति बनाने के अलावा सरकारी नीतियों का भी सहारा लिया है. इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का सहारा लिया गया है.

सरकारी आकंड़ों के मुताबिक उज्जवला योजना के लाभार्थियों में 39 फीसद मुस्लिम हैं और आवास योजनाओं के 37 फीसद लाभार्थी मुस्लिम बताए जा रहे हैं. वहीं, सूबे में मुस्लिम मतदाताओं की कुल संख्या करीब 20 फीसद के आसपास है.

हालांकि, मुस्लिम पहले कांग्रेस के साथ थे. लेकिन 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद वो कांग्रेस से दूर होते चले गए. इधर, अब तक वो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के अलावा अन्य छोटे दलों को वोट करते रहे हैं. लेकिन भाजपा ने 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे के साथ अब मुस्लिमों को भी अपने साथ करने की योजना बनाई है.


सूत्रों की मानें तो पार्टी की नजर उन सीटों पर है, जहां 2017 के चुनाव में उसे 5000 से कम वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में माना जा रहा है कि 2017 के चुनाव में करीब दो फीसद मुस्लिमों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था. साथ ही गौर करने वाली बात यह है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को उन इलाकों में बड़ी कामयाबी मिली थी, जहां दंगें हुए थे.


मुस्लिम बहुल इलाकों की करीब 25 ऐसी सीटें हैं, जहां 2017 में भाजपा 5 हजार से कम वोटों के अंतर से हारी थी. सहारनपुर सदर सीट की बात करें तो यहां भाजपा को सपा ने 4 हजार 636 वोटों के अंतर से हराया था. वहीं नजीवाबाद में वह सपा से केवल दो हजार दो वोटों से पीछे थी.

गाजियाबाद की धौलाना सीट पर वो बसपा से 3 हजार 576 वोटों से पीछे थी. ऐसे में अब भाजपा इन सीटों पर कब्जा करने की खास रणनीति बना मुस्लिमों के बीच पार्टी की स्थिति मजबूत और विश्वास बढ़ाने में लग गई है.

बढ़ी राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की सक्रियता

मुस्लिमों में राष्ट्रवाद की भावना विकसित करने को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दिसंबर 2002 में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का गठन किया था. ये मंच मुस्लिमों में भाजपा की पहुंच बनाने का काम भी करता है. वहीं भाजपा ने अपने अल्पसंख्यक मोर्चे को भी मजबूत किया है. अल्पसंख्यक मोर्चा मुस्लिम बहुल इलाकों में बूथ और मंडल स्तर के संगठन को विस्तार देने में लगा हुआ है.


हर विधानसभा सीट पर अल्पसंख्यक मोर्चा के 50 कार्यकर्ताओं को लगाया गया है. वहीं, एक कार्यकर्ता को 100 मतदाताओं से संपर्क करने की जिम्मेदारी दी गई है. इसके अलावा योगी आदित्यनाथ की सरकार ने यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड, फकरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी, उर्दू अकादमी, राज्य हज कमेटी और शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का गठन कर राष्ट्रवादी सोच वाले मुस्लिमों को इसमें शामिल किया है.

अब तक के इतिहास में सबसे कम 23 मुस्लिम 2017 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा पहुंचे थे. इससे पहले 2012 के चुनाव में 64 मुस्लिम पहुंचे थे. इनमें से सपा के टिकट पर 41, बसपा के टिकट पर 15, कांग्रेस के टिकट पर 2 और 6 अन्य दलों के टिकट पर जीते थे.

वहीं, 2006 के चुनाव में 56 मुस्लिम विधानसभा पहुंचे थे. इनमें बसपा के टिकट पर 29, सपा के टिकट पर 21 और 6 अन्य दलों के टिकट पर जीते थे.


हालांकि, 2017 के चुनाव में भाजपा ने किसी मुस्लिम को प्रत्याशी नहीं बनाया था. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा मुस्लिमों में पैठ बनाने को क्या करती है. साथ ही यह भी देखना होगा कि अबकी विधानसभा चुनाव में पार्टी किसी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट देती है या नहीं.

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लखनऊ: ऐसे तो अब तक मुस्लिमों को भाजपा विरोधी माना जाता रहा है. लेकिन भाजपा सूत्रों की मानें तो अबकी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी उम्मीद से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करने वाली है. लेकिन यह तो भाजपा की ओर से दावा किया जा रहा है. लेकिन सूबे की मौजूदा सियासी हालात को देख ऐसा लगता नहीं है कि भाजपा को मुस्लिमों का वोट और वो भी उस अनुपात में मिलेगा, जिसका दावा पार्टी कर रही है. क्योंकि सूबे के सियासी इतिहास में कभी भाजपा और मुस्लिमों के बीच बेहतर तालमेल वाली स्थिति बनी ही नहीं.

वहीं, सूबे के सियासी जानकार प्रोफेसर डॉ. ललित कुचालिया ने कहा कि भाजपा के दांव और दावे दोनों में कुछ खास मजबूती नहीं दिख रही है और अगर मुस्लिमों को साधने की कोई प्लानिंग बनाई भी गई है तो उसके सफल होने उम्मीद कम ही है.

खैर, भाजपा अब सियासी दूरी को पाटने के लिए विशेष रणनीति के तहत केंद्र व राज्य सरकार की सरकारी योजनाओं के साथ-साथ लाभान्वितों की सूची तैयार करने की योजना के साथ आगे बढ़ रही है.

इसे भी पढ़ें- राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रदेशवासियों को दी दीपावली की बधाई


ये है भाजपा की प्लानिंग

बता दें कि सूबे में करीब 115 ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक की भूमिका में हैं. साथ ही इनसे से अधिकांश सीटें पश्चिम उत्तर प्रदेश में हैं. ऐसे में अब भाजपा ने मुस्लिमों को अपने साथ करने को रणनीति बनाने के अलावा सरकारी नीतियों का भी सहारा लिया है. इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का सहारा लिया गया है.

सरकारी आकंड़ों के मुताबिक उज्जवला योजना के लाभार्थियों में 39 फीसद मुस्लिम हैं और आवास योजनाओं के 37 फीसद लाभार्थी मुस्लिम बताए जा रहे हैं. वहीं, सूबे में मुस्लिम मतदाताओं की कुल संख्या करीब 20 फीसद के आसपास है.

हालांकि, मुस्लिम पहले कांग्रेस के साथ थे. लेकिन 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद वो कांग्रेस से दूर होते चले गए. इधर, अब तक वो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के अलावा अन्य छोटे दलों को वोट करते रहे हैं. लेकिन भाजपा ने 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे के साथ अब मुस्लिमों को भी अपने साथ करने की योजना बनाई है.


सूत्रों की मानें तो पार्टी की नजर उन सीटों पर है, जहां 2017 के चुनाव में उसे 5000 से कम वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में माना जा रहा है कि 2017 के चुनाव में करीब दो फीसद मुस्लिमों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था. साथ ही गौर करने वाली बात यह है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को उन इलाकों में बड़ी कामयाबी मिली थी, जहां दंगें हुए थे.


मुस्लिम बहुल इलाकों की करीब 25 ऐसी सीटें हैं, जहां 2017 में भाजपा 5 हजार से कम वोटों के अंतर से हारी थी. सहारनपुर सदर सीट की बात करें तो यहां भाजपा को सपा ने 4 हजार 636 वोटों के अंतर से हराया था. वहीं नजीवाबाद में वह सपा से केवल दो हजार दो वोटों से पीछे थी.

गाजियाबाद की धौलाना सीट पर वो बसपा से 3 हजार 576 वोटों से पीछे थी. ऐसे में अब भाजपा इन सीटों पर कब्जा करने की खास रणनीति बना मुस्लिमों के बीच पार्टी की स्थिति मजबूत और विश्वास बढ़ाने में लग गई है.

बढ़ी राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की सक्रियता

मुस्लिमों में राष्ट्रवाद की भावना विकसित करने को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दिसंबर 2002 में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का गठन किया था. ये मंच मुस्लिमों में भाजपा की पहुंच बनाने का काम भी करता है. वहीं भाजपा ने अपने अल्पसंख्यक मोर्चे को भी मजबूत किया है. अल्पसंख्यक मोर्चा मुस्लिम बहुल इलाकों में बूथ और मंडल स्तर के संगठन को विस्तार देने में लगा हुआ है.


हर विधानसभा सीट पर अल्पसंख्यक मोर्चा के 50 कार्यकर्ताओं को लगाया गया है. वहीं, एक कार्यकर्ता को 100 मतदाताओं से संपर्क करने की जिम्मेदारी दी गई है. इसके अलावा योगी आदित्यनाथ की सरकार ने यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड, फकरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी, उर्दू अकादमी, राज्य हज कमेटी और शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का गठन कर राष्ट्रवादी सोच वाले मुस्लिमों को इसमें शामिल किया है.

अब तक के इतिहास में सबसे कम 23 मुस्लिम 2017 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा पहुंचे थे. इससे पहले 2012 के चुनाव में 64 मुस्लिम पहुंचे थे. इनमें से सपा के टिकट पर 41, बसपा के टिकट पर 15, कांग्रेस के टिकट पर 2 और 6 अन्य दलों के टिकट पर जीते थे.

वहीं, 2006 के चुनाव में 56 मुस्लिम विधानसभा पहुंचे थे. इनमें बसपा के टिकट पर 29, सपा के टिकट पर 21 और 6 अन्य दलों के टिकट पर जीते थे.


हालांकि, 2017 के चुनाव में भाजपा ने किसी मुस्लिम को प्रत्याशी नहीं बनाया था. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा मुस्लिमों में पैठ बनाने को क्या करती है. साथ ही यह भी देखना होगा कि अबकी विधानसभा चुनाव में पार्टी किसी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट देती है या नहीं.

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Last Updated : Nov 3, 2021, 4:17 PM IST
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