लखनऊ: चित्रकूट में कैदियों के बीच संघर्ष के दौरान मुकीम काला, मेराज अली और अंशु दीक्षित की हत्या से पहले भी जिला जेलों में खूनी संघर्ष होते रहे हैं. आपको शायद यकीन न हो, लेकिन यूपी के जेल का इतिहास ही कुछ ऐसा रहा है. कई बार ऐसा मौका आया जब जेल अपनी करतूतों को लेकर सुर्खियों में रहा है. चाहे वह बागपत जिला जेल में मुख्तार अंसारी के शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी की हत्या का मामला रहा हो या फिर वाराणसी जेल में मुन्ना बजरंगी के साथ शूटर अन्नू त्रिपाठी की हत्या का. अब चित्रकूट जेल में मुकीम काला सहित तीन कैदियों की हत्या से एक बार फिर जिला जेल चर्चा में है.
जिला जेल में पहली हत्या मुन्ना बजरंगी ने कराई थी
बता दें कि पहली बार वर्ष 13 मार्च 2004 में जिला जेल उस समय चर्चा में आई थी, जब 17 मुन्ना बजरंगी ने पहली बार जेल में हत्या कराई थी. पुलिस सूत्रों की मानें तो बजरंगी के शूटरों अन्नू त्रिपाठी और बाबू यादव ने वाराणसी जेल में सभासद बंसी यादव को गोलियों से छलनी कर दिया था. जेल के भीतर इस सनसनीखेज वारदात ने जरायम की दुनिया में कोहराम मचा दिया था.
वाराणसी जेल में ही हुई अन्नू त्रिपाठी की हत्या
मई 2005 वाराणसी जेल के बैरक के अंदर माफिया अन्नू त्रिपाठी की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. हत्या का आरोप एक अन्य संतोष गुप्ता और बिट्टू पर लगा था. बाद में बिट्टू पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था. इस हत्याकांड में भी जेल प्रशासन पर कई गंभीर आरोप लगे थे.
मुन्ना बजरंगी की हत्या भी जेल में ही हुई
इसी तरह 9 जुलाई 2018 को बागपत जिला जेल में गैंगस्टर सुनील राठी ने बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के शार्प शूटर माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. मुन्ना बजरंगी की हत्या से पूर्वांचल के माफिया गैंग में हलचल मच गई थी. मुन्ना बजरंगी के शरीर में 7 गोलियां दागी गई थी. मौके से 10 खोखे बरामद हुए थे. सनसनीखेज वारदात में जेल प्रशासन पर कई सवाल खड़े हुए थे.
बागपत जिला जेल में ऋषि पाल की हत्या
मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद 2 मई 2020 को बागपत जिला जेल में बंदी ऋषि पाल की हत्या कर दी गई. हत्या में बाथरूम के फ्लश टैंक से लोहे का टुकड़ा निकालकर उसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया था. ऋषि पाल गांव के पूर्व प्रधान ओम प्रकाश की ओर से दर्ज मुकदमें में 16 अप्रैल को हुए संघर्ष में जानलेवा हमले के आरोप में जेल आया था. दूसरे गुट के लोग भी जेल में ही थे. जेल में दोनों पक्षों में संघर्ष हो गया और ऋषिपाल की जान चली गई थी.
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13 सालों में जेल में हुई कई मौतों पर उठे सवाल
- 2008 में गाजियाबाद की डासना जेल में कविता हत्याकांड के आरोपी रविंद्र प्रधान की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई.
- 2009 में डासना जेल में ही बम विस्फोट कांड के आरोपी शकील अहमद की मौत हो गई. जिसके बाद जिला जेल प्रशासन पर कई गंभीर सवाल उठे.
- 2011 में लखनऊ जिला जेल में सीएमओ हत्याकांड के आरोपी डिप्टी सीएमओ डॉ. वाईएस सचान की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. इस मामले में भी जेल प्रशासन पर कई गंभीर आरोप लगे.
- 2012 में मेरठ जिला जेल में अधिकारियों द्वारा तलाशी लेने के दौरान विवाद हो गया. नाराज बंदियों ने जेल कर्मियों पर हमला बोल दिया. पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी, जिसमें एक बंदी मेहरदिन उर्फ बाबू खां की मौके पर मौत हो गई. वहीं, 6 दिन बाद 24 अप्रैल को इलाज के दौरान गंभीर रूप से घायल सोमबीर की भी मौत हो गई.
- 2012 में ही कानपुर देहात की जिला जेल में विवाद के दौरान राम चरण सिंह भदौरिया की मौत हो गई.
- 2014 में गाजीपुर जिला जेल में जेल कर्मियों के बीच खूनी संघर्ष हुआ. हालत काबू में करने के लिए फायरिंग की गई. जिसमें एक बंदी विश्वनाथ प्रजापति की मौत हो गई.
- 2015 में मथुरा जेल में बंदियों के दो गुटों में संघर्ष हुआ. इसमें एक बंदी ने रिवाल्वर से दूसरे बंदी पिंटू अजय सोलंकी की हत्या कर दी. यही नहीं घटना में घायल दूसरे बंदी राजेश टोटा को आगरा मेडिकल ले जाते समय बदमाशों ने रास्ते में हत्या कर दी.
- 2016 की 25 जून को मुजफ्फरनगर जेल में बंदी सूखा ने अपने तीन साथियों के साथ मिलकर कैदी चंद्रहास की पीट-पीटकर हत्या कर दी. इसके बाद जून में सूखा को सहारनपुर जेल शिफ्ट किया गया. यहां अगस्त में सूखा की चम्मच से गला रेत कर हत्या कर दी गई.