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लखनऊ की सड़कों पर घूम रहे 5 हजार से ज्यादा भिखारी, मुख्य धारा में लाने की कोशिश

लखनऊ की सड़कों पर 5 हजार 284 भिखारी धूम रहे हैं. एक सर्वेक्षण में ये जानकारी मिली है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के निर्देश पर हुए इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य इन भिक्षुओं का पता लगा कर उन्हें फिर से मुख्य धारा में लाना है. लेकिन सर्वेक्षण में इन भिखारियों के नाम और इन्हें किन इलाकों में देखा गया है को लेकर संशय बरकरार है.

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Published : Mar 23, 2022, 2:05 PM IST

लखनऊ: राजधानी लखनऊ की सड़कों पर करीब 5284 भिखारी भटक रहे हैं. इसमें 14 साल की उम्र तक के 264 बालक और 484 बालिकाएं शामिल हैं. नगर निगम की तरफ से कराए गए एक सर्वे में यह आंकड़ा खुलकर सामने आया है.

हालांकि, नगर निगम के आंकड़ों में किसी अधिकारी के बारे में जानकारी नहीं दी गई है. ऐसे में आंकड़ों पर सवाल उठ रहे हैं. बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस आंकड़े पर सवाल उठाते हुए सभी 5284 भिखारियों का ब्यौरा मांगा है. उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ.शुचिता चतुर्वेदी ने पत्र लिख कर सभी भिक्षुओं के नाम उनका पता यानी जहां उन्हें देखा गया है, इस बारे में सूचनाएं मांगी हैं.

यह भी पढ़ें :बच्चों संग मांगती थी भिक्षा, ढाई साल बाद परिवार से मिलेगी बिहार की महिला

भिक्षा से मुक्ति के लिए कराया गया सर्वेक्षण: सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से स्ट्रीट चिल्ड्रेन को लेकर एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई थी. इसके लिए लखनऊ नगर निगम को शहर का सर्वेक्षण करने की जिम्मेदारी दी गई है. लखनऊ नगर निगम ने लखनऊ विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग के तकनीकी सहयोग से शहर का सर्वेक्षण भी कराया. यह सर्वेक्षण उम्मीद संस्था एवं ग्रामीण मानव उत्थान संस्था के सहयोग से भिक्षा मुक्ति अभियान के अंतर्गत किया गया.

सर्वेक्षण की रिपोर्ट में ये जानकारियां मिली:

1. शहर के अलग-अलग स्थानों पर 14 वर्ष तक के 264 बालक और 484 बालिकाओं को भीख मांगते हुए पाया गया.

2. 14 से 18 वर्ष के 152 बालक और 220 बालिका भीख मांगते हुए मिलीं.

3. भिखारियों की सर्वाधिक संख्या वयस्कों की मिली. इनमें 18 से 60 वर्ष के 1824 पुरुष और 1752 महिलाएं भिक्षावृत्ति में शामिल पाई गईं.

4. 60 साल से ऊपर के 308 पुरुष और 280 महिलाएं भीख मांगते हुए मिलीं.

रिपोर्ट पर उठ रहे हैं सवाल: नगर निगम ने भले ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी हो, लेकिन इसकी प्रमाणिकता पर कुछ भी सवाल उठ रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि सर्वे में जिन लोगों को चिन्हित किया गया है, उनके बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है. आंकड़े प्रस्तुत कर रिपोर्ट में खानापूर्ति किए जाने की बात सामने आ रही है. जानकारों का कहना है कि इस पूरे सर्वे का उद्देश्य भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों को मुख्यधारा से जोड़ना है. जब तक सही जानकारी नहीं मिलेगी, तब तक इन्हें मुख्य धारा में लाना संभव ही नहीं हो पाएगा. वहीं नगर निगम के अधिकारी इस सर्वे पर चुप्पी साधे हुए हैं.

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लखनऊ: राजधानी लखनऊ की सड़कों पर करीब 5284 भिखारी भटक रहे हैं. इसमें 14 साल की उम्र तक के 264 बालक और 484 बालिकाएं शामिल हैं. नगर निगम की तरफ से कराए गए एक सर्वे में यह आंकड़ा खुलकर सामने आया है.

हालांकि, नगर निगम के आंकड़ों में किसी अधिकारी के बारे में जानकारी नहीं दी गई है. ऐसे में आंकड़ों पर सवाल उठ रहे हैं. बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस आंकड़े पर सवाल उठाते हुए सभी 5284 भिखारियों का ब्यौरा मांगा है. उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ.शुचिता चतुर्वेदी ने पत्र लिख कर सभी भिक्षुओं के नाम उनका पता यानी जहां उन्हें देखा गया है, इस बारे में सूचनाएं मांगी हैं.

यह भी पढ़ें :बच्चों संग मांगती थी भिक्षा, ढाई साल बाद परिवार से मिलेगी बिहार की महिला

भिक्षा से मुक्ति के लिए कराया गया सर्वेक्षण: सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से स्ट्रीट चिल्ड्रेन को लेकर एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई थी. इसके लिए लखनऊ नगर निगम को शहर का सर्वेक्षण करने की जिम्मेदारी दी गई है. लखनऊ नगर निगम ने लखनऊ विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग के तकनीकी सहयोग से शहर का सर्वेक्षण भी कराया. यह सर्वेक्षण उम्मीद संस्था एवं ग्रामीण मानव उत्थान संस्था के सहयोग से भिक्षा मुक्ति अभियान के अंतर्गत किया गया.

सर्वेक्षण की रिपोर्ट में ये जानकारियां मिली:

1. शहर के अलग-अलग स्थानों पर 14 वर्ष तक के 264 बालक और 484 बालिकाओं को भीख मांगते हुए पाया गया.

2. 14 से 18 वर्ष के 152 बालक और 220 बालिका भीख मांगते हुए मिलीं.

3. भिखारियों की सर्वाधिक संख्या वयस्कों की मिली. इनमें 18 से 60 वर्ष के 1824 पुरुष और 1752 महिलाएं भिक्षावृत्ति में शामिल पाई गईं.

4. 60 साल से ऊपर के 308 पुरुष और 280 महिलाएं भीख मांगते हुए मिलीं.

रिपोर्ट पर उठ रहे हैं सवाल: नगर निगम ने भले ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी हो, लेकिन इसकी प्रमाणिकता पर कुछ भी सवाल उठ रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि सर्वे में जिन लोगों को चिन्हित किया गया है, उनके बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है. आंकड़े प्रस्तुत कर रिपोर्ट में खानापूर्ति किए जाने की बात सामने आ रही है. जानकारों का कहना है कि इस पूरे सर्वे का उद्देश्य भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों को मुख्यधारा से जोड़ना है. जब तक सही जानकारी नहीं मिलेगी, तब तक इन्हें मुख्य धारा में लाना संभव ही नहीं हो पाएगा. वहीं नगर निगम के अधिकारी इस सर्वे पर चुप्पी साधे हुए हैं.

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