लखनऊ : प्रदेश के तमाम जिलों में औसत से काफी कम बारिश हुई है. स्थिति यह है कि अब किसानों को सूखे की चिंता सताने लगी है. वहीं नौ जिलों में औसत से काफी ज्यादा बारिश दर्ज की गई है. यह दोनों ही स्थितियां किसानों के लिए चिंता वाली हैं. बारिश कम होने से जहां गन्ना, केला, उड़द, चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूंग, मूंगफली और सोयाबीन आदि फसलों को नुकसान होगा. साथ ही किसानों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा. वहीं ज्यादा बारिश से भी दलहन की फसलों को नुकसान होता है.
किसान इन दिनों चिंता में हैं, क्योंकि उनकी खरीफ की फसलों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. मानसून के शुरुआती दिनों में तो प्रदेशभर में बारिश अच्छी हुई, लेकिन यह क्रम ज्यादा दिन नहीं चला. प्रदेश के लगभग आधे हिस्सा में जरूरत से काफी कम बारिश दर्ज की गई है. वहीं नौ जिलों में औसत से चालीस फीसद से भी ज्यादा वर्षा दर्ज की गई है. कम बारिश के कारण फसलों पर नकारात्मक प्रभाव होता है, जिससे पैदावार में कमी हो सकती है. नियमित वर्षा की कमी के कारण मिट्टी का समृद्धिकरण भी नहीं हो पाता है और पौधों को पोषक तत्व मिलने में दिक्कतें होती हैं. इससे फसलों का विकास भी धीमा हो जाता है. फसलों को कीट रोगों जैसे प्राकृतिक खतरों का सामना भी करना पड़ता है.
यदि बारिश के आंकड़ों की बात करें, तो मऊ, मिर्जापुर, कौशांबी, कुशीनगर, देवरिया, पीलीभीत, चंदौली, संत कबीर नगर, भदोही, श्रावस्ती और बस्ती जिलों में औसत से पचास फीसद से भी कम बारिश हुई है. वहीं कन्नौज, मुजफ्फरनगर, एटा, मेरठ, मैनपुरी, सहारनपुर, बिजनौर और बदायूं जिलों में औसत से पचास फीसद से अधिक वर्षा हुई है. इसका मतलब यह हुआ कि प्रदेश के पचहत्तर जिलों में से 40 फीसद में या तो पचास फीसद कम बारिश हुई है अथवा जरूरत से दोगुनी. यह दोनों ही स्थितियां किसानों के लिए संकट वाली हैं.