लखनऊ : राजधानी के सरकारी व निजी अस्पतालों में इलाज में लापरवाही के मामले आए दिन सामने आ रहे हैं. तीमारदारों की शिकायत पर उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ऐसे केसों में सख्ती बरत रहे हैं. इसके बावजूद कार्रवाई के नाम पर जांच ठंडे बस्ते में चली जाती है. जिला अस्पतालों में एक दो नहीं बल्कि इस तरह के कई केस होते है. जबकि निजी अस्पतालों की संख्या कई गुना है. आए दिन कोई न कोई निजी अस्पतालों के फेर में फंसकर जान गवां रहे हैं. यह उनकी जान चली गई. अप्रशिक्षित डॉक्टरों द्वारा इलाज की पुष्टि होने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई सिर्फ नोटिस तक ही समिति रहती है. वहीं, बीते नवंबर महीने में सिविल और लोकबंधु पर लगे आरोपों का मामला भी ठंडे बस्ते में है.
केस-1: सरोजनीनगर हाइडिल कॉलोनी की आरती (38) को प्रसव पीड़ा होने पर ससुरालवालों ने गत 24 नवंबर की रात को लोकबंधु अस्पताल में भर्ती कराया था. भाई कुलदीप का आरोप है कि ससुरालीजन व स्टॉफ ने पहले प्रसव समय से नहीं कराया. इससे उसकी हालत बिगड़ गई. बाद में नार्मल प्रसव कराया गया. प्रसव के कुछ ही देर बाद बच्चे की मौत हो गई. जबकि प्रसूता की मौत अगले दिन हो गई. इस मामले में परिजनों ने लापरवाही का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की. उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी मामले का संज्ञान लेकर जांच कर तीन दिनों में रिपोर्ट सौंपने का अस्पताल प्रशासन को निर्देश दिए. 26 नवंबर को अस्पताल प्रशासन ने पांच सदस्यीय टीम गठित कर दी. वहीं, अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अजय शंकर त्रिपाठी का कहना है कि जांच रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेज दी गई है. |
केस-2 : पारा के काशीराम कॉलोनी निवासी रीता सोनकर के गर्भाशय में गांठ थी. इलाज के लिए परिजनों ने सिविल अस्पताल में दिखाया था. आरोप है कि डॉक्टर ने इलाज के नाम पर पांच हजार रूपये की मांग की. रुपये देने के बाद सर्जरी की. इस पूरे मामले की मरीज ने शिकायत की. उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के निर्देश पर अस्पताल प्रशासन ने 23 नवंबर को इस मामले में जांच समिति का गठन कर दिया. हालांकि बाद में मरीज ने एक डॉक्टर पर शिकायत वापस लेने के लिए धमकाने का भी आरोप लगाया था इस मामले में भी अस्पताल के निदेशक डॉ. नरेंद्र अग्रवाल ने जांच रिपोर्ट शासन को भेजने की बात कही है. |
केस-3 : आलमबाग के गढ़ी कनौरा निवासी कृष्णनंद उपाध्याय (75) आठ नवंबर सड़क हादसे में घायल हो गए. उन्हें 108 एंबुलेंस से सिविल लाया गया. साथ मे परिजन न होने से वार्ड ब्वॉय ने मृत बताकर उन्हें इमरजेंसी से बाहर निकाल दिया. स्ट्रेचर पर घायल को तड़पता देख लोगों ने विरोध जताया. जिसके बाद उसका इलाज शुरू हुआ. आईसीयू में भर्ती न करने और देरी से इलाज शुरू होने से उसकी मौत हो गई. इस मामले में भी उपमुख्यमंत्री ने जांच के आदेश दिए लेकिन मामला आज भी ठंडे बस्ते में है. |
केस-4 : निशातगंज की रहने वाली 27 वर्षीय महिला का प्रसव हजरतगंज स्थित वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल में करने के लिए तीमारदार लेकर आए प्रसव से पहले भी एक बार जांच हो चुकी थी. तब तक जांच में जुड़वा बच्चे की बात सामने ही नहीं आई थी. लेकिन, जब महिला प्रसव के लिए ओटी में गई पहला बच्चा पैदा हुआ. फिर उसके बाद महिला को प्रसव पीड़ा हो ही रही थी. डॉक्टर ने ध्यान दिया तो देखा गर्भ में एक और बच्चा भी है. उसका भी प्रसव कराया गया. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि प्रसव के एक महीना पहले और प्रसव से पहले झलकारी बाई में ही अल्ट्रासाउंड कराया था तो जुड़वा बच्चों की बात अल्ट्रासाउंड में क्यों सामने नहीं आई. यह मामला सितंबर महीने का है. लेकिन अब तक इस मामले में कोई भी कार्रवाई नहीं हुई है. झलकारी बाई महिला अस्पताल में सिर्फ एक ही रेडियोलॉजिस्ट है. जो की रोजाना 45 से 50 अल्ट्रासाउंड करते हैं. |
लोकबंधु की होगी होगी विभागीय जांच : महानिदेशक स्वास्थ्य डॉ. दीपा त्यागी का कहना है कि लोकबंधु अस्पताल में प्रसव के दौरान हुई जच्चा-बच्चा की मौत मामले में सख्त कार्रवाई होगी. प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि शिफ्ट बदलने के लिए महिला को इलाज नहीं दिया गया. वहीं जिस डॉक्टर ने प्रसव कराया वह रात के दो बजे गंभीर अवस्था में मरीज को छोड़कर चली गई. महानिदेशक के मुताबिक मामले में कार्रवाई के तहत विभागीय जांच होगी. वहीं, अस्पताल की प्रबंधन को लेकर महानिदेशक की ओर से प्रमुख सचिव को पत्र लिखा गया है.
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