लखनऊ : नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (NIOS) ने अपने नए सिलेबस के तहत मदरसों में गीता और रामायण पढ़ाने का फैसला किया है. फिलहाल देश के 100 मदरसों से इसकी शुरुआत करने का निर्णय लिया गया है. हालांकि दारुल उलूम से जुड़े मौलाना ने इस पर ऐतराज जताया है. दारुल उलूम फरंगी महल के प्रवक्ता ने कहा कि दूसरे मज़हब की किताबें मदरसों के बच्चों पर थोपना सही नही है.
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नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के तहत लिया गया यह फैसला
दरअसल, यह फैसला नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के तहत लिया गया है. इसमें 3, 5 और 8वीं क्लास के बच्चों के लिए बेसिक कोर्स शुरू किया जाएगा. पहले इसे देश के 100 मदरसों में लागू किया जाएगा. बाद में संख्या बढ़ाकर 500 की जाएगी. हालांकि मदरसों से जुड़े मौलाना ने इस पर ऐतराज़ जताया है. उनका कहना है कि दूसरे मज़हब की किताबें मदरसों के बच्चों पर जबरदस्ती थोपी जा रहीं हैं.
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दारुल उलूम के प्रवक्ता का ऐतराज
दारुल उलूम फरंगी महल के प्रवक्ता मौलाना सुफियान निज़ामी ने कहा कि यह बिल्कुल भी मुनासिब नही क्योंकि मदरसों में अपना एजुकेशन सिस्टम होता है. यहां उनको अपने मजहब की तालीम दी जाती है. इसलिए अगर संस्कृति के नाम पर दूसरे धर्मों की शिक्षा उन पर जबरदस्ती थोपी जाएगी तो यह मुनासिब नहीं होगा. कहा कि अगर मदरसों अपने यहां इस सिलेबस को लागू करने या न करने का अधिकार दिया जाए तो इस पर किसी को एतराज नहीं होगा. तब अपने यहां इसे लागू करने को मदरसे स्वतंत्र होंगे. लेकिन अगर इसे ज़रूरी करार दिया जाएगा तो यह लोकतांत्रिक सेटअप के लिए अच्छी बात नही होगी.