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चीन की नहीं, अब भारत में बनी मिट्टी की मूर्तियों से सजेगा पूजा स्थल - माटी कला बोर्ड उत्तर प्रदेश

प्रदेश की योगी सरकार ने कुम्हारों के लिए माटी कला बोर्ड का गठन किया है. इस बोर्ड के तहत मिट्टी के बर्तन से लेकर मूर्ति के निर्माण और उनके विपणन तक की व्यवस्था की जाएगी.

Formation of Mati Arts Board
माटी कला बोर्ड का गठन
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Published : Jun 22, 2020, 1:16 PM IST

लखनऊ: इस बार दीपावली के अवसर पर चीन की नहीं बल्कि देश की माटी की बनी मूर्तियां हमारे पूजा स्थल पर विराजेंगी. इन मूर्तियों का निर्माण भी प्रदेश के विभन्न कलाकार करेंगे. दरअसल, गलवान घाटी में हुए हिंसक झड़प के बाद देश में चीनी सामान का बहिष्कार किया जा रहा है, जिसको लेकर सूबे के मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में 'माटी कला बोर्ड' का गठन किया है. इस बोर्ड के तहत मिट्टी के बर्तन से लेकर मूर्ति के निर्माण और उनके विपणन तक की व्यवस्था की जाएगी.

इस बोर्ड को मूर्तियों का निर्माण कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. माटी कला बोर्ड कलाकारों के लिए डाई (सांचा) बनवा रहा है. प्रदेश के माटी कलाकार इन्हीं सांचों से गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां बनाएंगे और बाजार में यह मूर्तियां चाइनीज मूर्तियों को कड़ी टक्कर देंगी.

माटी कला बोर्ड का गठन

सरकार ने मूर्तियों के निर्माण को लेकर बड़े पैमाने पर काम करना शुरू कर दिया है. इसके तहत ऑटोमेटिक मशीनों से सांचे में ढली मूर्तियां बनेंगी. मूर्तियां बनाने के लिए माटी कला बोर्ड ने जाने-माने मूर्तिकार को मॉडल तैयार करने के लिए कहा है. कोलकाता से गौरी गणेश और गुजरात से दीपक बनाने की मशीन मंगाई जाएगी. स्थानीय स्तर पर कलाकारों को एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि वे बेहतर मूर्ति बना सकें.

माटी कला बोर्ड ने मूर्तिकार कृष्ण कुमार श्रीवास्तव को आठ इंच और 12 इंच की गणेश लक्ष्मी की मूर्ति का मॉडल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है. इन्हीं मॉडल के आधार पर कोलकाता से सांचे बनवाए जाएंगे.प्लास्टर ऑफ पेरिस के 50- 50 सांचे प्रति जनपद तैयार करा कर चुनिंदा जिलों को दिया जाएगा. माटी कला बोर्ड गोरखपुर, लखनऊ और वाराणसी के जिला उद्योग अधिकारियों के माध्यम से इन सांचों को माटी कला से जुड़े कामगारों को वितरित करेगा. इन जिलों को मॉडल के रूप में इसलिए चुना गया है क्योंकि यहां पहले से ही मूर्ति बनाने का कार्य किया जा रहा है. अगर लखनऊ के बाजार को देखें तो यहां अकेले एक शहर में करीब एक करोड़ रुपये का चीनी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों का बाजार है.

जानकारों का मानना है कि इससे स्थानीय कलाकारों के साथ व्यापारियों को इससे बेहद लाभ होगा.एमएसएमई के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल ने बताया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे कलाकार, हमारे मूर्तिकार अच्छी मूर्तियां क्यों नहीं बना पा रहे हैं. उनका रोजगार बृहद रूप क्यों नहीं ले पा रहा है. इस पर विभाग ने कलाकारों से बात की. उनकी कुछ समस्याएं सामने आईं. एक तो यह कि उनके पास मूर्तियां बनाने के अच्छे से सांचे नहीं थे तो सांचों के निर्माण के लिए कलाकारों को चिन्हित कर लिया गया है. उन्हें सांचे बनाने के लिए ऑर्डर दे दिया गया है. करीब 100 सांचे बनाए जाएंगे. इन्हें गोरखपुर, लखनऊ और वाराणसी में कलाकरों को दिया जाएगा. इसके साथ अन्य जिलों में भी जहां पर मूर्तियों का काम होता है, उन्हें भी सांचे उपलब्ध कराए जाएंगे.
मिट्टी से जुड़े 50 हजार कलाकारों को मिलेगा रोजगार
प्रमुख सचिव नवनीत सहगल ने बताया कि माटी कला बोर्ड ने मिट्टी से जुड़े करीब 50 हजार कलाकारों को चिन्हित कर लिया है. उन्हें किसी न किसी माध्यम से रोजगार से जोड़ा जाएगा. उन्होंने बताया कि दिया बनाने के लिए इलेक्ट्रिक मशीन आने लगी है. उसका भी ऑर्डर कर दिया गया है. अब हमारे कलाकार अच्छी संख्या में और बेहतर मिट्टी का दिया (दीपक) का भी निर्माण कर सकेंगे. कुम्हारों को मिट्टी के लिए भूमि का पट्टा दिलवाया जा रहा है. उन्हें इलेक्ट्रिक चाक दिलवा रहे हैं.
इस प्रकार से करीब 50 हजार मिट्टी के कलाकारों को चिन्हित किया गया है. इन्हें किसी न किसी माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा.मूर्तिकार कृष्ण कुमार श्रीवास्तव सरकार के इस कदम से बेहद खुश हैं. उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से मुझे लक्ष्मी गणेश के 100 डाई बनाने की जिम्मेदारी दी गई है. वर्तमान समय में सबसे बड़ी समस्या है कि माटी कला से जुड़े कलाकारों के पास डाई (सांचे) नहीं हैं, जिससे वह मूर्तियों का प्रोडक्शन करते हैं. एक ही प्रकार के सांचे से बहुत सारे लोग मूर्तियां बना रहे हैं. जब एक ही सांचे से मूर्तियों का निर्माण होता है तो कलाकारों को उसका कुछ ज्यादा लाभ नहीं मिल पाता. हम इसी पर केंद्रित हैं कि ज्यादा से ज्यादा प्रकार के सांचे बनाए जाएं. वह नए डिजाइन के होंगे. तीन से चार दिनों में यह कार्य पूरा कर देंगे.
मूर्तिकार अमरपाल कहते हैं कि हमारे और चाइनीज मूर्तियों में महत्वपूर्ण अंतर यह है कि भगवान गणेश और माता लक्ष्मी हमारे आराध्य हैं. चीन के लोग उन्हें अपना नहीं मानते, इसलिए वे कमर्शियल भाव रखते हैं इसलिए मूर्तियों में जो भाव भंगिमा होनी चाहिए वह बेहतर तरीके से हम ही ला सकेंगे. हम लोग जिस प्रकार से अपने मां बाप के बारे में जानते हैं, उनके प्रति श्रद्धा भाव रखते हैं उसी तरह से अपने आराध्य भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी के प्रति भी श्रद्धा रखते हैं. इसलिए हम बेहतर स्वरूप दे सकेंगे. साथ ही यह जरूरी है क्योंकि इसके साथ ही हमारा भरण-पोषण भी जुड़ा हुआ है.

लखनऊ: इस बार दीपावली के अवसर पर चीन की नहीं बल्कि देश की माटी की बनी मूर्तियां हमारे पूजा स्थल पर विराजेंगी. इन मूर्तियों का निर्माण भी प्रदेश के विभन्न कलाकार करेंगे. दरअसल, गलवान घाटी में हुए हिंसक झड़प के बाद देश में चीनी सामान का बहिष्कार किया जा रहा है, जिसको लेकर सूबे के मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में 'माटी कला बोर्ड' का गठन किया है. इस बोर्ड के तहत मिट्टी के बर्तन से लेकर मूर्ति के निर्माण और उनके विपणन तक की व्यवस्था की जाएगी.

इस बोर्ड को मूर्तियों का निर्माण कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. माटी कला बोर्ड कलाकारों के लिए डाई (सांचा) बनवा रहा है. प्रदेश के माटी कलाकार इन्हीं सांचों से गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां बनाएंगे और बाजार में यह मूर्तियां चाइनीज मूर्तियों को कड़ी टक्कर देंगी.

माटी कला बोर्ड का गठन

सरकार ने मूर्तियों के निर्माण को लेकर बड़े पैमाने पर काम करना शुरू कर दिया है. इसके तहत ऑटोमेटिक मशीनों से सांचे में ढली मूर्तियां बनेंगी. मूर्तियां बनाने के लिए माटी कला बोर्ड ने जाने-माने मूर्तिकार को मॉडल तैयार करने के लिए कहा है. कोलकाता से गौरी गणेश और गुजरात से दीपक बनाने की मशीन मंगाई जाएगी. स्थानीय स्तर पर कलाकारों को एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि वे बेहतर मूर्ति बना सकें.

माटी कला बोर्ड ने मूर्तिकार कृष्ण कुमार श्रीवास्तव को आठ इंच और 12 इंच की गणेश लक्ष्मी की मूर्ति का मॉडल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है. इन्हीं मॉडल के आधार पर कोलकाता से सांचे बनवाए जाएंगे.प्लास्टर ऑफ पेरिस के 50- 50 सांचे प्रति जनपद तैयार करा कर चुनिंदा जिलों को दिया जाएगा. माटी कला बोर्ड गोरखपुर, लखनऊ और वाराणसी के जिला उद्योग अधिकारियों के माध्यम से इन सांचों को माटी कला से जुड़े कामगारों को वितरित करेगा. इन जिलों को मॉडल के रूप में इसलिए चुना गया है क्योंकि यहां पहले से ही मूर्ति बनाने का कार्य किया जा रहा है. अगर लखनऊ के बाजार को देखें तो यहां अकेले एक शहर में करीब एक करोड़ रुपये का चीनी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों का बाजार है.

जानकारों का मानना है कि इससे स्थानीय कलाकारों के साथ व्यापारियों को इससे बेहद लाभ होगा.एमएसएमई के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल ने बताया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे कलाकार, हमारे मूर्तिकार अच्छी मूर्तियां क्यों नहीं बना पा रहे हैं. उनका रोजगार बृहद रूप क्यों नहीं ले पा रहा है. इस पर विभाग ने कलाकारों से बात की. उनकी कुछ समस्याएं सामने आईं. एक तो यह कि उनके पास मूर्तियां बनाने के अच्छे से सांचे नहीं थे तो सांचों के निर्माण के लिए कलाकारों को चिन्हित कर लिया गया है. उन्हें सांचे बनाने के लिए ऑर्डर दे दिया गया है. करीब 100 सांचे बनाए जाएंगे. इन्हें गोरखपुर, लखनऊ और वाराणसी में कलाकरों को दिया जाएगा. इसके साथ अन्य जिलों में भी जहां पर मूर्तियों का काम होता है, उन्हें भी सांचे उपलब्ध कराए जाएंगे.
मिट्टी से जुड़े 50 हजार कलाकारों को मिलेगा रोजगार
प्रमुख सचिव नवनीत सहगल ने बताया कि माटी कला बोर्ड ने मिट्टी से जुड़े करीब 50 हजार कलाकारों को चिन्हित कर लिया है. उन्हें किसी न किसी माध्यम से रोजगार से जोड़ा जाएगा. उन्होंने बताया कि दिया बनाने के लिए इलेक्ट्रिक मशीन आने लगी है. उसका भी ऑर्डर कर दिया गया है. अब हमारे कलाकार अच्छी संख्या में और बेहतर मिट्टी का दिया (दीपक) का भी निर्माण कर सकेंगे. कुम्हारों को मिट्टी के लिए भूमि का पट्टा दिलवाया जा रहा है. उन्हें इलेक्ट्रिक चाक दिलवा रहे हैं.
इस प्रकार से करीब 50 हजार मिट्टी के कलाकारों को चिन्हित किया गया है. इन्हें किसी न किसी माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा.मूर्तिकार कृष्ण कुमार श्रीवास्तव सरकार के इस कदम से बेहद खुश हैं. उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से मुझे लक्ष्मी गणेश के 100 डाई बनाने की जिम्मेदारी दी गई है. वर्तमान समय में सबसे बड़ी समस्या है कि माटी कला से जुड़े कलाकारों के पास डाई (सांचे) नहीं हैं, जिससे वह मूर्तियों का प्रोडक्शन करते हैं. एक ही प्रकार के सांचे से बहुत सारे लोग मूर्तियां बना रहे हैं. जब एक ही सांचे से मूर्तियों का निर्माण होता है तो कलाकारों को उसका कुछ ज्यादा लाभ नहीं मिल पाता. हम इसी पर केंद्रित हैं कि ज्यादा से ज्यादा प्रकार के सांचे बनाए जाएं. वह नए डिजाइन के होंगे. तीन से चार दिनों में यह कार्य पूरा कर देंगे.
मूर्तिकार अमरपाल कहते हैं कि हमारे और चाइनीज मूर्तियों में महत्वपूर्ण अंतर यह है कि भगवान गणेश और माता लक्ष्मी हमारे आराध्य हैं. चीन के लोग उन्हें अपना नहीं मानते, इसलिए वे कमर्शियल भाव रखते हैं इसलिए मूर्तियों में जो भाव भंगिमा होनी चाहिए वह बेहतर तरीके से हम ही ला सकेंगे. हम लोग जिस प्रकार से अपने मां बाप के बारे में जानते हैं, उनके प्रति श्रद्धा भाव रखते हैं उसी तरह से अपने आराध्य भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी के प्रति भी श्रद्धा रखते हैं. इसलिए हम बेहतर स्वरूप दे सकेंगे. साथ ही यह जरूरी है क्योंकि इसके साथ ही हमारा भरण-पोषण भी जुड़ा हुआ है.
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