ETV Bharat / state

कोरोना ने साहित्य जगत को किया वीरान, बुझाए कई दीये - साहित्य जगत को किया वीरान

कोरोना ने साहित्य जगत को ऐसे झटके दिए हैं जिनकी भरपाई कर पाना समय के लिए भी संभव नहीं है. वर्ष 2020 में राहत इंदौरी, खगेंन्द्र ठाकुर को कोरोना के कारण दुनिया ने खोया था. वहीं अब कोरोना की इस दूसरी लहर में कवि वाहिद अली वाहिद, साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र कोहली, इशरत रिजवी लखनवी की मौत हो गई है. देश के ऐसे ही कलमजीवी, कवि, साहित्यकारों पर आधारित है ETV Bharat की यह खास रिपोर्ट.

कोरोना का असर
कोरोना का असर
author img

By

Published : Apr 21, 2021, 6:59 PM IST

Updated : Apr 21, 2021, 7:54 PM IST

लखनऊः कोरोना से इस समय पूरा विश्व परेशान है. कोरोना के कारण देश के कई जाने-माने लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं साहित्य जगत के कई कलमजीवी, कवि, साहित्यकार भी कोरोना के कारण मौत के मुंह में जा चुके हैं. 2020 में जहां राहत इंदौरी, खगेंन्द्र ठाकुर की मौत कोरोना के कारण हो गई थी, वहीं अब कोरोना की इस दूसरी लहर में कवि वाहिद अली वाहिद, साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र कोहली, इशरत रिजवी लखनवी की मौत हो गई है. अभी भी कोरोना का प्रसार थमने का नाम नहीं ले रहा है.

डॉ. नरेन्द्र कोहली.
डॉ. नरेन्द्र कोहली.

साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली

देश के जाने-माने साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली बीते शनिवार को नहीं रहे. हिंदी साहित्‍य में उल्‍लेखनीय योगदान के लिए उन्‍हें साल 2017 में पद्म अलंकरण से नवाजा गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली के निधन पर शोक जताते हुए कहा, 'सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली जी के निधन से अत्यंत दुख पहुंचा है. साहित्य में पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों के जीवंत चित्रण के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे.' उनकी गिनती हिन्‍दी के नामचीन साहित्‍यकारों में होती है. उन्होंने अभ्युदय, युद्ध, वासुदेव, अहिल्या जैसी कई किताबें लिखीं, जो खूब पढ़ी व सराही गईं.

वाहिद अली वाहिद

कौमी एकता के पैरोकार कवि वाहिद अली वाहिद (59) का मंगलवार को देहांत हो गया. वह लखनऊ के रहने वाले थे. द्वंद कहां तक पाला जाए, युद्ध कहां तक टाला जाए, तू भी राणा का वंशज है, फेंक जहां तक भाला जाए...जैसी रचनाएं देने वाले कभी वाहिद अली वाहिद कौमी एकता के पैरोकार थे. जब पूजा अजान में भेद न हो, खिल जाती है भक्ति की प्रेम कली रहमान की, राम की एक सदा, घुलती मुख में मिसरी की डली... जैसी पंक्तियों के सहारे वाहिद कौमी एकता की मिसाल पेश करते रहे. उनके जाने से साहित्य जगत में शोक की लहर है. वाहिद को कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.

शायर इशरत रिजवी लखनवी

राजधानी के मशहूर शायर इशरत रिजवी लखनवी का सोमवार को निधन हो गया. वह 72 वर्ष के थे. लखनवी पिछले कई दिनों से बीमार थे. जिसके बाद सोमवार सुबह उनका निधन हो गया. शायर इशरत रिजवी अंजुमन गुलजारे पंजतन और अंजुमन शब्बीरिया के अलावा शहर की कई अंजुमनों के लिए नौहे और सलाम लिखते थे. साथ ही वह अपने लिखी मर्सियों के लिए भी पहचाने जाते थे.

हास्य कवि कमलेश द्विवेदी

कानपुर के हास्य कवि कमलेश द्विवेदी का बीते शनिवार को देहांत हो गया. 'रंगभारती' के अध्यक्ष श्याम कुमार ने बताया कि पहली अप्रैल को हुए 'घोंघाबसंत सम्मेलन' में कमलेश द्विवेदी आए थे. उस समय यह कल्पना भी नहीं हो सकती थी कि एक पखवारा बीतते-बीतते कोरोना का काल उन्हें हमसे छीन लेगा और वह सदा-सदा के लिए संसार से विदा हो जाएंगे. कानपुर के लाजपतभवन में 'रंगभारती' के संगीत-आयोजन हुआ करते थे. फिर वहां हास्य कविसम्मेलन 'गदहा सम्मेलन' शुरू किया गया. कमलेश बहुत सक्रिय थे और अपनी नवरचित कविताएं उस पर डाला करते थे. छंद, मात्रा, भाव आदि की दृष्टि से वो कविताएं बिलकुल खरी होती थीं.

राजेंद्र राजन

जीवन-मरण के फर्क में उलझा हुआ था मैं, तुमने बिछड़के मौत का चेहरा दिखा दिया...जैसी रचनाएं देने वाले हिन्दी काव्य मंच के लोकप्रिय गीतकार राजेंद्र राजन (65) का बीते गुरुवार को निधन हो गया. उनके निधन के बाद उनकी कोरोना रिपोर्ट पाजिटिव आई. मूलरूप से वह शामली के कस्बा एलम के रहने वाले थे. राजेंद्र राजन अपने सुमधुर गीतों के लिए जाने जाते थे. हिन्दी काव्य मंच पर पिछले चालीस साल से सक्रिय थे. उनके कई काव्य संग्रह और आडियो जारी हो चुके हैं.

मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल
मंगलेश डबराल.

प्रतिष्ठित कवियों में शुमार मंगलेश डबराल का निधन नौ दिसंबर को हुआ. वे कोरोना से संक्रमित थे. मंगलेश डबराल उत्तराखंड के रहने वाले थे. समकालीन हिंदी कवियों में उन्होंने सबसे ज्यादा ख्याति पायी थी. मंगलेश डबराल के पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए. पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु. वर्ष 2000 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

राहत इंदौरी

राहत इंदौरी.
राहत इंदौरी.

वो बुलाती है मगर जाने का नहीं और किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े ना है...जैसी शायरियों से लोगों के दिलों में घर बनाने वाले शायर राहत इंदौरी 11 अगस्त 2020 को इस दुनिया से अलविदा कह गए. वह भी कोरोना से संक्रमित थे. मुशायरों में उनकी खासी लोकप्रियता थी.

आजाद कानपुरी
गजलों के प्रसिद्ध रचनाकार लालमन आजाद उर्फ आजाद कानपुरी का सितम्बर 2020 में निधन हो गया था. वे 74 वर्ष के थे. उन्होंने अंत तक सामाजिक, राजनैतिक और वैश्विक विसंगतियों पर रचनाएं लिखी हैं. उनका जन्म तीन जून 1946 को कानपुर देहात के रायपुर क्षेत्र में हुआ था.


विष्णुचंद्र शर्मा

कोरोना का असर
विष्णुचंद्र शर्मा.

साहित्यकार विष्णुचंद्र शर्मा का देहांत भी पिछले वर्ष हो गया. काशी में एक अप्रैल 1933 को जन्मे वरिष्ठ साहित्यकार विष्णुचंद्र शर्मा राजनीतिज्ञ व साहित्यकार के साथ ही घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे. विष्णुचंद्र को कवि, कहानीकार व आलोचक के रूप में जाना जाता है. 1957 में चर्चित कवि पत्रिका भी निकाली. हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामदरश मिश्र, नामवर सिंह व विश्वनाथ त्रिपाठी के साथ लेखन की शुरुआत की.

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राहुल पाण्डेय कहते हैं कि यह दौर पूरे साहित्य जगत के लिए मुश्किलों भरा है. बीते कुछ दिनों में न केवल लखनऊ बल्कि देश भर ने जिन साहित्यकारों, कवि और कलमजीवियों को खोया है उनकी कोई भरपाई नहीं की जा सकती. यह साहित्य के एक युग के समाप्त होने जैसा है. डॉ. राहुल पाण्डेय ने कहा कि डॉ. नरेन्द्र कोहली जैसे साहित्यकार अपनी विधा में स्वयं एक संस्थान जैसे थे.

कवयित्री वत्सला पाण्डेय कहती हैं कि वाहिद अली वाहिद जैसे कवियों की लेखनी है कि तमाम फासलों के बाद हम एक हैं, इनकी कलम से निकली एक-एक रचना अमर और अमिट हैं.

लखनऊः कोरोना से इस समय पूरा विश्व परेशान है. कोरोना के कारण देश के कई जाने-माने लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं साहित्य जगत के कई कलमजीवी, कवि, साहित्यकार भी कोरोना के कारण मौत के मुंह में जा चुके हैं. 2020 में जहां राहत इंदौरी, खगेंन्द्र ठाकुर की मौत कोरोना के कारण हो गई थी, वहीं अब कोरोना की इस दूसरी लहर में कवि वाहिद अली वाहिद, साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र कोहली, इशरत रिजवी लखनवी की मौत हो गई है. अभी भी कोरोना का प्रसार थमने का नाम नहीं ले रहा है.

डॉ. नरेन्द्र कोहली.
डॉ. नरेन्द्र कोहली.

साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली

देश के जाने-माने साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली बीते शनिवार को नहीं रहे. हिंदी साहित्‍य में उल्‍लेखनीय योगदान के लिए उन्‍हें साल 2017 में पद्म अलंकरण से नवाजा गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली के निधन पर शोक जताते हुए कहा, 'सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली जी के निधन से अत्यंत दुख पहुंचा है. साहित्य में पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों के जीवंत चित्रण के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे.' उनकी गिनती हिन्‍दी के नामचीन साहित्‍यकारों में होती है. उन्होंने अभ्युदय, युद्ध, वासुदेव, अहिल्या जैसी कई किताबें लिखीं, जो खूब पढ़ी व सराही गईं.

वाहिद अली वाहिद

कौमी एकता के पैरोकार कवि वाहिद अली वाहिद (59) का मंगलवार को देहांत हो गया. वह लखनऊ के रहने वाले थे. द्वंद कहां तक पाला जाए, युद्ध कहां तक टाला जाए, तू भी राणा का वंशज है, फेंक जहां तक भाला जाए...जैसी रचनाएं देने वाले कभी वाहिद अली वाहिद कौमी एकता के पैरोकार थे. जब पूजा अजान में भेद न हो, खिल जाती है भक्ति की प्रेम कली रहमान की, राम की एक सदा, घुलती मुख में मिसरी की डली... जैसी पंक्तियों के सहारे वाहिद कौमी एकता की मिसाल पेश करते रहे. उनके जाने से साहित्य जगत में शोक की लहर है. वाहिद को कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.

शायर इशरत रिजवी लखनवी

राजधानी के मशहूर शायर इशरत रिजवी लखनवी का सोमवार को निधन हो गया. वह 72 वर्ष के थे. लखनवी पिछले कई दिनों से बीमार थे. जिसके बाद सोमवार सुबह उनका निधन हो गया. शायर इशरत रिजवी अंजुमन गुलजारे पंजतन और अंजुमन शब्बीरिया के अलावा शहर की कई अंजुमनों के लिए नौहे और सलाम लिखते थे. साथ ही वह अपने लिखी मर्सियों के लिए भी पहचाने जाते थे.

हास्य कवि कमलेश द्विवेदी

कानपुर के हास्य कवि कमलेश द्विवेदी का बीते शनिवार को देहांत हो गया. 'रंगभारती' के अध्यक्ष श्याम कुमार ने बताया कि पहली अप्रैल को हुए 'घोंघाबसंत सम्मेलन' में कमलेश द्विवेदी आए थे. उस समय यह कल्पना भी नहीं हो सकती थी कि एक पखवारा बीतते-बीतते कोरोना का काल उन्हें हमसे छीन लेगा और वह सदा-सदा के लिए संसार से विदा हो जाएंगे. कानपुर के लाजपतभवन में 'रंगभारती' के संगीत-आयोजन हुआ करते थे. फिर वहां हास्य कविसम्मेलन 'गदहा सम्मेलन' शुरू किया गया. कमलेश बहुत सक्रिय थे और अपनी नवरचित कविताएं उस पर डाला करते थे. छंद, मात्रा, भाव आदि की दृष्टि से वो कविताएं बिलकुल खरी होती थीं.

राजेंद्र राजन

जीवन-मरण के फर्क में उलझा हुआ था मैं, तुमने बिछड़के मौत का चेहरा दिखा दिया...जैसी रचनाएं देने वाले हिन्दी काव्य मंच के लोकप्रिय गीतकार राजेंद्र राजन (65) का बीते गुरुवार को निधन हो गया. उनके निधन के बाद उनकी कोरोना रिपोर्ट पाजिटिव आई. मूलरूप से वह शामली के कस्बा एलम के रहने वाले थे. राजेंद्र राजन अपने सुमधुर गीतों के लिए जाने जाते थे. हिन्दी काव्य मंच पर पिछले चालीस साल से सक्रिय थे. उनके कई काव्य संग्रह और आडियो जारी हो चुके हैं.

मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल
मंगलेश डबराल.

प्रतिष्ठित कवियों में शुमार मंगलेश डबराल का निधन नौ दिसंबर को हुआ. वे कोरोना से संक्रमित थे. मंगलेश डबराल उत्तराखंड के रहने वाले थे. समकालीन हिंदी कवियों में उन्होंने सबसे ज्यादा ख्याति पायी थी. मंगलेश डबराल के पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए. पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु. वर्ष 2000 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

राहत इंदौरी

राहत इंदौरी.
राहत इंदौरी.

वो बुलाती है मगर जाने का नहीं और किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े ना है...जैसी शायरियों से लोगों के दिलों में घर बनाने वाले शायर राहत इंदौरी 11 अगस्त 2020 को इस दुनिया से अलविदा कह गए. वह भी कोरोना से संक्रमित थे. मुशायरों में उनकी खासी लोकप्रियता थी.

आजाद कानपुरी
गजलों के प्रसिद्ध रचनाकार लालमन आजाद उर्फ आजाद कानपुरी का सितम्बर 2020 में निधन हो गया था. वे 74 वर्ष के थे. उन्होंने अंत तक सामाजिक, राजनैतिक और वैश्विक विसंगतियों पर रचनाएं लिखी हैं. उनका जन्म तीन जून 1946 को कानपुर देहात के रायपुर क्षेत्र में हुआ था.


विष्णुचंद्र शर्मा

कोरोना का असर
विष्णुचंद्र शर्मा.

साहित्यकार विष्णुचंद्र शर्मा का देहांत भी पिछले वर्ष हो गया. काशी में एक अप्रैल 1933 को जन्मे वरिष्ठ साहित्यकार विष्णुचंद्र शर्मा राजनीतिज्ञ व साहित्यकार के साथ ही घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे. विष्णुचंद्र को कवि, कहानीकार व आलोचक के रूप में जाना जाता है. 1957 में चर्चित कवि पत्रिका भी निकाली. हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामदरश मिश्र, नामवर सिंह व विश्वनाथ त्रिपाठी के साथ लेखन की शुरुआत की.

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राहुल पाण्डेय कहते हैं कि यह दौर पूरे साहित्य जगत के लिए मुश्किलों भरा है. बीते कुछ दिनों में न केवल लखनऊ बल्कि देश भर ने जिन साहित्यकारों, कवि और कलमजीवियों को खोया है उनकी कोई भरपाई नहीं की जा सकती. यह साहित्य के एक युग के समाप्त होने जैसा है. डॉ. राहुल पाण्डेय ने कहा कि डॉ. नरेन्द्र कोहली जैसे साहित्यकार अपनी विधा में स्वयं एक संस्थान जैसे थे.

कवयित्री वत्सला पाण्डेय कहती हैं कि वाहिद अली वाहिद जैसे कवियों की लेखनी है कि तमाम फासलों के बाद हम एक हैं, इनकी कलम से निकली एक-एक रचना अमर और अमिट हैं.

Last Updated : Apr 21, 2021, 7:54 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.