लखनऊ : सरकार द्वारा मंडी शुल्क दो प्रतिशत से घटाकर एक प्रतिशत कर दिये जाने के बाद मंडी की आय में कमी आयी है. इस दौरान इसे कम न करने को लेकर दलीलें आनी शुरू हो गयीं हैं. दरअसल, उत्तर प्रदेश कृषि मंडी परिषद एमएसपी पर गेहूं की खरीद करके एफसीआई को उसी दर पर देती है. मंडी परिषद केवल फैसिलिटेटर की भूमिका अदा करती है. पूरे खरीद पर परिषद को इसके एवज में एक फीसदी मंडी शुल्क मिलता है. पहले यह शुल्क दो फीसदी था.
एक फैसिलिटेटर की भूमिका में है मंडी परिषद
मंडी परिषद के निदेशक अंजनी कुमार सिंह बताते हैं कि मंडी परिषद की विपणन शाखा किसी भी कमोडिटी का क्रय नहीं करती है. न ही विक्रय करती है. सराकर एमएसपी का निर्धारण करती है. उसी के तहत किसानों को मूल्य दिलाने में मंडी परिषद एक फैसिलिटेटर की भूमिका अदा करती है. किसानों को उनकी उपज का अच्छा मूल्य मिले इसके लिए एक प्लेटफार्म दिया जाता है.
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मंडी परिषद को हो रहा नुकसान
जानकारों की मानें तो सरकार ने किसानों का हित देखते हुए मंडी शुल्क में एक प्रतिशत की कमी की है. इसका असर सीधे तौर पर मंडी परिषद के मुनाफे पर पड़ेगा. पूर्व के नियमों के मुताबिक नगरीय क्षेत्रों में क्रय और विक्रय पर मंडी परिषद को मंडी शुल्क के रूप में टैक्स मिलता था. सरकार ने इसमें भी तब्दीली की है. अब निर्धारित मंडी परिसर में ही क्रय विक्रय करने पर मंडी परिषद को टैक्स मिलता है. ऐसे में लोगों का मंडियों में आना कम हो गया है. इससे मंडी परिषद को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. पहले उत्तर प्रदेश मंडी परिषद की कमाई प्रतिवर्ष करीब 1500 से 1800 करोड़ रुपये की थी जो अब यह घटकर 300 से 400 करोड़ रह गयी है. हालांकि मंडी परिषद के निदेशक इसे नुकसान के रूप में नहीं देख रहे हैं.
इन एजेंसियों के खरीद केंद्र निर्धारित
खाद्य आयुक्त मनीष चौहान ने बताया कि इस वर्ष खाद्य विभाग व अन्य कई एजेंसियों को मिलाकर कुल छह हजार क्रय केंद्र स्थापित किए गए हैं. इसमें खाद्य विभाग के विपणन शाखा के 1100, उत्तर प्रदेश के राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद के 300, उत्तर प्रदेश राज्य खाद्य आवश्यक वस्तु निगम (एसएफसी) के 200, उत्तर प्रदेश सहकारी संघ (पीसीएफ) के 3500, उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव यूनियन (यूपीपीसीयू) के 500 और उत्तर प्रदेश उपभोक्ता सहकारी संघ यूपीएसएस के 250 एवं भारतीय खाद्य निगम के 150 क्रय केंद्र स्थापित किये जाने हैं. इन केंद्रों पर खरीद की जारी है.