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LU की टीम ने खोला वैदिक नदी सरस्वती के गायब होने का राज, आप भी जानिए - सरस्वती नदी का उद्गम स्थल

प्रयागराज को गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का पवित्र संगम माना जाता है. उसे त्रिवेणी भी कहते हैं. दो नदियां तो आज भी अस्तित्व में हैं, लेकिन तीसरी नदी सरस्वती वक्त से साथ गायब होती चली गई. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के डॉ. जीएस श्रीवास्तव और लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. एके कुलश्रेष्ठ ने इससे जुड़ी कई पहेलियों को हल कर दिया है. देखिये ये रिपोर्ट...

यह है इस नदी का सच
यह है इस नदी का सच
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Published : Apr 8, 2021, 2:23 PM IST

लखनऊ: वैदिक नदी सरस्वती के बारे में आपने बहुत कुछ सुना होगा. कई साल पहले यह नदी थी, लेकिन अब विलुप्त है. गंगा, यमुना तो आज भी हैं. ऐसा क्या हुआ कि यह नदी गायब हो गई. इस राज का खुलासा लखनऊ विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की एक टीम ने किया है. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के डॉ. जीएस श्रीवास्तव और लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. एके कुलश्रेष्ठ ने हिमाचल प्रदेश के लघु हिमालयी क्षेत्र में वैदिक सरस्वती नदी के प्रवाह क्रम को रेखांकित किया है.

चित्र के माध्यम से दर्शाया गया.
चित्र के माध्यम से दर्शाया गया.

ऋग्वेद में ऐसे किया गया है सरस्वती का वर्णन
ऋग्वेद के ‘नदी स्तुति’ सूक्त में उत्तर भारत की सभी नदियों, पूर्व में गंगा से लेकर पश्चिम में कुभा (काबुल) नदी तक का क्रमवार वर्णन किया गया है. वैदिक सरस्वती नदी का प्रवाह यमुना और सतलुज नदियों के बीच में बताया गया था. साथ ही यह नदी उस समय (वर्तमान से लगभग 13000 वर्ष पूर्व) हिमालय से समुद्र तक स्वतंत्र रूप से दोनों नदियों के बीच के क्षेत्र से बहती थी. वर्तमान में यह नदी हरियाणा के अंबाला में शिवालिक पहाड़ियों के समीप स्थित अध (आदि) बद्री नामक स्थान से निकलती है. ईस्वी सन् 1874 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के सीएफ ओल्ढम ने ‘विलुप्त सरस्वती’ पर लेख प्रकाशित किया. इसके बाद से इस नदी पर विस्तृत खोज की अनेकानेक कृतियां उपलब्ध हैं, जो प्रमुख रूप से मैदानी क्षेत्र पर केंद्रित है.

इसे भी पढ़ें : नेशनल वैक्सीनेशन डे: संगम तट पर छात्रों ने बनाया 'सैंड आर्ट', दिया ये संदेश

शोध में यह आया सामने
पुरातन समय में वैदिक सरस्वती नदी हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जनपद में स्थित बाता और मरकंडा नदियों की घाटी से प्रवाहित होती थी. गिरी नदी भी पांवटा साहब के समीप स्थित गरीबनाथ पहाड़ी के पश्चिम में अवस्थित पुराघाटी द्वारा वैदिक सरस्वती नदी में मिलती थी. यह क्रम महाभारत काल (वर्तमान से लगभग 5000 वर्ष पूर्व) तक चला.

क्षेत्र में मिले साक्ष्य दर्शाते हैं कि वर्तमान से लगभग 5000 वर्ष पूर्व (महाभारत काल) में हिमाचल प्रदेश के लघु हिमालयी क्षेत्र में गंगा-सिंधु घाटियों के बीच के क्षेत्र में उठान आरंभ हुआ. इसके प्रभाव से बाता व मरकंडा नदियों की घाटी (पूर्ववर्ती सरस्वती) के बीच में भी उठान आरंभ हुआ. फलस्वरूप, सरस्वती घाटी में अवरोध उत्पन्न होकर जलभराव हुआ और कालांतर में अदि बद्री के रास्ते जल प्रवाह होने लगा.

इसे भी पढ़ें : महाशिवरात्रि पर संगम में आस्था की डुबकी लगा रहे श्रद्धालु

बाद में यमुना भ्रंश के प्रभाव से बाता नदी का प्रवाह उलट गया और वह पश्चिम के बजाय पूर्व की ओर बहती हुई यमुना नदी में मिल गई. इसी पर्वतीय संरचना के प्रभाव से गिरी नदी का प्रवाह भी बदल गया. अब यह नदी गरीबनाथ पहाड़ी के पूर्व से बहती हुई यमुना नदी में मिलने लगी. इस तरह वैदिक सरस्वती नदी का ऊपरी जल स्रोत समाप्त हो गया और वह सारा जल यमुना नदी में जाने लगा.

शायद पूर्वज जानते थे ये बात

हमारे पूर्वज संभवतः यह बात जानते थे, तभी यमुना नदी के बायें किनारे पर स्थित प्रयागराज किले में एक कुएं के जल को सरस्वती नदी का जल मानकर पूजा करते थे. यह परिपाटी अभी भी विद्यमान है. यही कारण है कि प्रयाग को गंगा, यमुना व विलुप्त सरस्वती नदियों का पवित्र संगम माना जाता है और उसे त्रिवेणी भी कहा जाता है.

लखनऊ: वैदिक नदी सरस्वती के बारे में आपने बहुत कुछ सुना होगा. कई साल पहले यह नदी थी, लेकिन अब विलुप्त है. गंगा, यमुना तो आज भी हैं. ऐसा क्या हुआ कि यह नदी गायब हो गई. इस राज का खुलासा लखनऊ विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की एक टीम ने किया है. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के डॉ. जीएस श्रीवास्तव और लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ. एके कुलश्रेष्ठ ने हिमाचल प्रदेश के लघु हिमालयी क्षेत्र में वैदिक सरस्वती नदी के प्रवाह क्रम को रेखांकित किया है.

चित्र के माध्यम से दर्शाया गया.
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ऋग्वेद में ऐसे किया गया है सरस्वती का वर्णन
ऋग्वेद के ‘नदी स्तुति’ सूक्त में उत्तर भारत की सभी नदियों, पूर्व में गंगा से लेकर पश्चिम में कुभा (काबुल) नदी तक का क्रमवार वर्णन किया गया है. वैदिक सरस्वती नदी का प्रवाह यमुना और सतलुज नदियों के बीच में बताया गया था. साथ ही यह नदी उस समय (वर्तमान से लगभग 13000 वर्ष पूर्व) हिमालय से समुद्र तक स्वतंत्र रूप से दोनों नदियों के बीच के क्षेत्र से बहती थी. वर्तमान में यह नदी हरियाणा के अंबाला में शिवालिक पहाड़ियों के समीप स्थित अध (आदि) बद्री नामक स्थान से निकलती है. ईस्वी सन् 1874 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के सीएफ ओल्ढम ने ‘विलुप्त सरस्वती’ पर लेख प्रकाशित किया. इसके बाद से इस नदी पर विस्तृत खोज की अनेकानेक कृतियां उपलब्ध हैं, जो प्रमुख रूप से मैदानी क्षेत्र पर केंद्रित है.

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शोध में यह आया सामने
पुरातन समय में वैदिक सरस्वती नदी हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जनपद में स्थित बाता और मरकंडा नदियों की घाटी से प्रवाहित होती थी. गिरी नदी भी पांवटा साहब के समीप स्थित गरीबनाथ पहाड़ी के पश्चिम में अवस्थित पुराघाटी द्वारा वैदिक सरस्वती नदी में मिलती थी. यह क्रम महाभारत काल (वर्तमान से लगभग 5000 वर्ष पूर्व) तक चला.

क्षेत्र में मिले साक्ष्य दर्शाते हैं कि वर्तमान से लगभग 5000 वर्ष पूर्व (महाभारत काल) में हिमाचल प्रदेश के लघु हिमालयी क्षेत्र में गंगा-सिंधु घाटियों के बीच के क्षेत्र में उठान आरंभ हुआ. इसके प्रभाव से बाता व मरकंडा नदियों की घाटी (पूर्ववर्ती सरस्वती) के बीच में भी उठान आरंभ हुआ. फलस्वरूप, सरस्वती घाटी में अवरोध उत्पन्न होकर जलभराव हुआ और कालांतर में अदि बद्री के रास्ते जल प्रवाह होने लगा.

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बाद में यमुना भ्रंश के प्रभाव से बाता नदी का प्रवाह उलट गया और वह पश्चिम के बजाय पूर्व की ओर बहती हुई यमुना नदी में मिल गई. इसी पर्वतीय संरचना के प्रभाव से गिरी नदी का प्रवाह भी बदल गया. अब यह नदी गरीबनाथ पहाड़ी के पूर्व से बहती हुई यमुना नदी में मिलने लगी. इस तरह वैदिक सरस्वती नदी का ऊपरी जल स्रोत समाप्त हो गया और वह सारा जल यमुना नदी में जाने लगा.

शायद पूर्वज जानते थे ये बात

हमारे पूर्वज संभवतः यह बात जानते थे, तभी यमुना नदी के बायें किनारे पर स्थित प्रयागराज किले में एक कुएं के जल को सरस्वती नदी का जल मानकर पूजा करते थे. यह परिपाटी अभी भी विद्यमान है. यही कारण है कि प्रयाग को गंगा, यमुना व विलुप्त सरस्वती नदियों का पवित्र संगम माना जाता है और उसे त्रिवेणी भी कहा जाता है.

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