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लखनऊ विश्वविद्यालय ने ODOP योजना की भूमिका के बारे में दी जानकारी

ओडीओपी योजना में पूर्वी यूपी के चार एस्पिरेशनल जिलों को चुना गया है. हर जिले का अपना विशिष्ट उत्पाद है, इन जिलों को यूपी सरकार ने अपनी ओडीओपी योजना के तहत वर्गीकृत किया है.

लखनऊ विश्वविद्यालय.
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Published : Oct 4, 2020, 12:13 PM IST

लखनऊ: पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन दूर करने के लिए ओडीओपी योजना किस तरह से काम आ सकती है, इसको समझने के लिए पूर्वी यूपी के चार एस्पिरेशनल जिलों को चुना गया है. इस जिलों में संभावनाओं को तलाश कर स्थानीय लोगों के हुनर को न सिर्फ बढ़ाने बल्कि इससे उनको आर्थिक मजबूती देने की भी योजना है. इस प्रमुख परियोजना को ICSSR, नई दिल्ली द्वारा IMPRESS स्कीम के तहत संयुक्त रूप से डॉ. रोली मिश्रा, अर्थशास्त्र विभाग और डॉ. नागेंद्र कुमार मौर्य ने एप्लाइड इकोनॉमिक्स, लखनऊ विश्वविद्यालय के विभाग से प्रायोजित किया.

इस परियोजना में पूर्वी यूपी के चार एस्पिरेशनल जिलों को चुना गया है. हर जिले का अपना विशिष्ट उत्पाद है, जिसे यूपी सरकार ने अपनी ओडीओपी योजना के तहत वर्गीकृत किया है. इस परियोजना का उद्देश्य इन जिलों के पिछड़ेपन के कारणों को समझना है. साथ ही यह जानना है कि क्या ओडीओपी योजना उन क्षेत्रों में आय और रोजगार बढ़ाने के लिए गेम चेंजर तथा पलायन को कम करने में सहायक होगी.


श्रावस्ती और बलरामपुर के प्रतिनिधि उत्पाद के रूप में सरकार द्वारा घोषित उत्पादों की व्यवहार्यता का परीक्षण करने पर हरैया गांव, तुलसीपुर ब्लॉक और भगवतीगंज में अपने क्षेत्र के दौरे के दौरान अनुसंधान दल ने पाया कि बलरामपुर के मामले में लाल मसूर (मसूर दाल) जो कि जिले का उत्पाद घोषित है, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से आयातित दाल से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है. क्योंकि किसान जागरूक नहीं हैं और उन्हें लाल मसूर के उत्पादन के लिए सब्सिडी नहीं मिल रही है.

एक अन्य जिले श्रावस्ती के मामले में जहां थारू के जनजातीय शिल्प को जिले के प्रतिनिधि उत्पाद के रूप में घोषित किया गया है. सिरसिया ब्लॉक के बच्छाही, कटकुइयां, रानीपुर गांवों में टीम ने पाया कि कला का व्यवसायीकरण नहीं किया गया है. अधिकांश थारू ओडीओपी योजना के बारे में अनभिज्ञ हैं. जबकि उत्पादित आदिवासी कला अपने स्वयं के उपभोग के लिए हैं न कि बाजार के लिए.


सर्वेक्षण टीम द्वारा आयोजित प्रश्नावली और फोकस समूह चर्चाओं के माध्यम से डोर-टू-डोर संग्रह से निष्कर्ष निकला है. जिसमें बताया गया है कि दोनों उत्पादों के मामले में जो जिले के प्रतिनिधि उत्पाद बनाए गए हैं, उनको फैलाने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. जिससे किसानों को लाभार्थियों की सूची में शामिल किया जा सके. थारू उत्पाद के बारे में उन्हें उचित प्रशिक्षण और टूल किट देने की आवश्यकता है. तभी उनके उत्पाद को जिले की विशेषता के रूप में सफलतापूर्वक शीर्षक दिया जा सकता है.

लखनऊ: पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन दूर करने के लिए ओडीओपी योजना किस तरह से काम आ सकती है, इसको समझने के लिए पूर्वी यूपी के चार एस्पिरेशनल जिलों को चुना गया है. इस जिलों में संभावनाओं को तलाश कर स्थानीय लोगों के हुनर को न सिर्फ बढ़ाने बल्कि इससे उनको आर्थिक मजबूती देने की भी योजना है. इस प्रमुख परियोजना को ICSSR, नई दिल्ली द्वारा IMPRESS स्कीम के तहत संयुक्त रूप से डॉ. रोली मिश्रा, अर्थशास्त्र विभाग और डॉ. नागेंद्र कुमार मौर्य ने एप्लाइड इकोनॉमिक्स, लखनऊ विश्वविद्यालय के विभाग से प्रायोजित किया.

इस परियोजना में पूर्वी यूपी के चार एस्पिरेशनल जिलों को चुना गया है. हर जिले का अपना विशिष्ट उत्पाद है, जिसे यूपी सरकार ने अपनी ओडीओपी योजना के तहत वर्गीकृत किया है. इस परियोजना का उद्देश्य इन जिलों के पिछड़ेपन के कारणों को समझना है. साथ ही यह जानना है कि क्या ओडीओपी योजना उन क्षेत्रों में आय और रोजगार बढ़ाने के लिए गेम चेंजर तथा पलायन को कम करने में सहायक होगी.


श्रावस्ती और बलरामपुर के प्रतिनिधि उत्पाद के रूप में सरकार द्वारा घोषित उत्पादों की व्यवहार्यता का परीक्षण करने पर हरैया गांव, तुलसीपुर ब्लॉक और भगवतीगंज में अपने क्षेत्र के दौरे के दौरान अनुसंधान दल ने पाया कि बलरामपुर के मामले में लाल मसूर (मसूर दाल) जो कि जिले का उत्पाद घोषित है, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से आयातित दाल से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है. क्योंकि किसान जागरूक नहीं हैं और उन्हें लाल मसूर के उत्पादन के लिए सब्सिडी नहीं मिल रही है.

एक अन्य जिले श्रावस्ती के मामले में जहां थारू के जनजातीय शिल्प को जिले के प्रतिनिधि उत्पाद के रूप में घोषित किया गया है. सिरसिया ब्लॉक के बच्छाही, कटकुइयां, रानीपुर गांवों में टीम ने पाया कि कला का व्यवसायीकरण नहीं किया गया है. अधिकांश थारू ओडीओपी योजना के बारे में अनभिज्ञ हैं. जबकि उत्पादित आदिवासी कला अपने स्वयं के उपभोग के लिए हैं न कि बाजार के लिए.


सर्वेक्षण टीम द्वारा आयोजित प्रश्नावली और फोकस समूह चर्चाओं के माध्यम से डोर-टू-डोर संग्रह से निष्कर्ष निकला है. जिसमें बताया गया है कि दोनों उत्पादों के मामले में जो जिले के प्रतिनिधि उत्पाद बनाए गए हैं, उनको फैलाने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. जिससे किसानों को लाभार्थियों की सूची में शामिल किया जा सके. थारू उत्पाद के बारे में उन्हें उचित प्रशिक्षण और टूल किट देने की आवश्यकता है. तभी उनके उत्पाद को जिले की विशेषता के रूप में सफलतापूर्वक शीर्षक दिया जा सकता है.

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