लखनऊ: उपभोक्ता परिषद का आरोप है कि उत्तर प्रदेश में लगभग 25 हजार करोड़ के स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर का भविष्य देश के चुनिंदा उद्योगपति तय कर रहे हैं. एक माह पहले 65 प्रतिशत ऊंची दर वाले अडाणी के न्यूनतम दर वाले टेंडर को मध्यांचल विद्युत वितरण निगम ने कैंसिल किया और फिर से टेंडर निकाला है. जहां उद्योगपतियों ने साठगांठ कर इस टेंडर में हिस्सा नहीं लिया.
उपभोक्ता परिषद के मुताबिक पूर्वांचल जीएमआर न्यूनतम निविदादाता है. पश्चिमांचल इन टेली स्मार्ट न्यूनतम निविदादाता और दक्षिणांचल अडाणी न्यूनतम निविदादाता है. जहां पर स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर की दरें 48 प्रतिशत से लेकर 64 प्रतिशत तक अधिक आई हैं. उन टेंडरों को आज तक कैंसिल नहीं किया गया. पिछले सप्ताह केंद्रीय उर्जा सचिव आलोक कुमार की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार को एक पत्र लिखकर यह अनुरोध किया गया था कि उत्तर प्रदेश में लंबित स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर पर तुरंत निर्णय लिया जाए, क्योंकि पूरी योजना में विलंब होता जा रहा है. ऐसा पहली बार हो रहा है जब 6 हजार रुपए ऐस्टीमेटेड कॉस्ट वाले टेंडर की दरें 9 हजार रुपए से लेकर 10 हजार रुपए प्रति मीटर तक सामने आई और उसके टेंडर को कैंसिल करने के लिए बिजली कंपनियां चुप्पी साधे हुए हैं. यहां देश के कुछ चुनिंदा उद्योगपति प्रदेश के उपभोक्ताओं के घरों में लगने वाले स्मार्ट प्रीपेड मीटर को अपने अनुसार लगवाना चाहते हैं. जो उपभोक्ता परिषद कभी भी सफल नहीं होने देगा.
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि स्मार्ट मीटर व स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर को लेकर जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश में खेल चल रहा है. उस पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराया जाना बहुत ही जरूरी है. क्योंकि पहले पावर कारपोरेशन ने 40 लाख स्मार्ट मीटर का काम बिना टेंडर के ऊर्जा मंत्रालय के अधीन काम कर रही एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड को दिया जो प्रोजेक्ट वर्तमान में बंद पडा है. एनर्जी एफिशिएंसी लिमिटेड दर बढाने के चक्कर में ब्लैकमेलिंग पर आमादा है. वहीं, दूसरी तरफ स्मार्ट प्रीपेड मीटर का टेंडर ऊंची दर पर आया है. उसे कैंसिल नहीं किया जा रहा है. इसके पीछे क्या खेल है. इसकी जांच होना बहुत जरूरी है.
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने पावर कारपोरेशन प्रबंधन व उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की है कि प्रदेश की 3 बिजली कंपनियों पूर्वांचल, दक्षिणांचल व पश्चिमांचल हैं. जिनमें देश के चुनिंदा उद्योगपतियों के टेंडर की दरें 64 प्रतिशत तक अधिक आई हैं. उन टेंडरों को होल्ड पर क्यों रखा गया है. उनके खिलाफ उच्चस्तरीय जांच कराई जाए. वह किसके दबाव में काम कर रहे हैं. अगर प्रदेश में प्रचलित कानून के तहत बिजली कंपनियां काम कर रही हैं. उन्हें पता होना चाहिए कि जब केवल 10 से 12 प्रतिशत ऊंची दर वाले इसी योजना के पार्ट वन के आरडीएसएस टेंडर को पिछले दिनों कैंसिल कर दिया गया था. तो ऐसे में इतनी ऊंची दर वाले टेंडर को न कैंसिल करने के लिए उनके ऊपर किसका दबाव आ रहा है. इसका खुलासा जनहित में होना चाहिए. इसके लिए जो भी उच्च अधिकारी दोषी हैं, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए.
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने एक बार फिर जनहित में उत्तर प्रदेश सरकार व पावर कॉर्पोरशन प्रबंधन से यह मांग की है कि देश के दूसरे राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में भी टेंडर की लागत को कम करने के लिए 4 क्लस्टर में निकाले गए टेंडर को कम से कम 8 क्लस्टर में फिर से निकाला जाए. जिससे स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर में देश की मीटर निर्माता कंपनियां भाग ले पाएं.
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