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पॉक्सो कोर्ट ने वरिष्ठ जेल अधीक्षक को किया तलब, ये है मामला - accused vishal bharti granted bail

यूपी की राजधानी में लखनऊ पॉक्सो कोर्ट (Lucknow POCSO Court) ने लखनऊ के वरिष्ठ जेल अधीक्षक को तलब किया है. जज महेश चन्द्र वर्मा ने एक अभियुक्त की न्यायिक हिरासत का वारंट गायब होने व इसके चलते उसकी रिहाई का आदेश वापस भेजने पर कड़ा रवैया अपनाया है.

न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायाधीश लखनऊ
न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायाधीश लखनऊ
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Published : Aug 9, 2021, 9:09 PM IST

लखनऊ: पॉक्सो कोर्ट (POCSO Court) के विशेष जज महेश चन्द्र वर्मा ने एक अभियुक्त की न्यायिक हिरासत का वारंट गायब होने व इसके चलते उसकी रिहाई का आदेश वापस भेजने पर कड़ा रवैया अपनाया है. कोर्ट ने इस मामले में स्पष्टीकरण के लिए वरिष्ठ जेल अधीक्षक को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया है.

कोर्ट ने उनसे पूछा है कि क्या उनके द्वारा अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की गई है? क्या बगैर न्यायिक अभिरक्षा वारंट के अभियुक्त को जेल में प्रवेश में दिया जाता है. कोर्ट ने कहा है कि यदि उनके द्वारा किया गया कथन असत्य है, तो क्यों न उनके विरुद्ध वैधानिक कार्रवाई की जाए.


इसके साथ ही कोर्ट ने अभियुक्त की न्यायिक अभिरक्षा वारंट की दूसरी प्रति जारी करने का भी आदेश दिया है, ताकि उसकी रिहाई हो सके. उनका कहना था कि रिहाई आदेश जारी होने के बावजूद अभियुक्त जेल में निरुद्ध है, जिससे उसके जीवन व स्वतंत्रता के अधिकार का हनन हो रहा है. विगत 4 अगस्त को अभियुक्त विशाल भारती की जमानत मंजूर होने के बाद उसकी रिहाई का आदेश जारी किया गया था, लेकिन वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने रिहाई आदेश वापस भेजते हुए आख्या दिया कि अभियुक्त का न्यायिक अभिरक्षा का वारंट अदालत आने-जाने में पुलिस स्कॉर्ट द्वारा कहीं गुम कर दिया गया है.

अतः इसकी दूसरी प्रति निर्गत की जाए, ताकि उसकी रिहाई की कार्यवाही की जा सके. विशेष जज ने इस पर अदालत के मोहर्रिर से सवाल जवाब किया. मोहर्रिर का कहना था कि न्यायिक अभिरक्षा वारंट के बिना किसी अभियुक्त को जेल में प्रवेश नहीं दिया जाता है. ऐसी स्थिति में यह कथन असत्य प्रतीत होता है.
इसे भी पढ़ें- पॉक्सो से मिल रहा मासूमों को न्याय, बाल शोषण खत्म करने की कवायद तेज

लखनऊ: पॉक्सो कोर्ट (POCSO Court) के विशेष जज महेश चन्द्र वर्मा ने एक अभियुक्त की न्यायिक हिरासत का वारंट गायब होने व इसके चलते उसकी रिहाई का आदेश वापस भेजने पर कड़ा रवैया अपनाया है. कोर्ट ने इस मामले में स्पष्टीकरण के लिए वरिष्ठ जेल अधीक्षक को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया है.

कोर्ट ने उनसे पूछा है कि क्या उनके द्वारा अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की गई है? क्या बगैर न्यायिक अभिरक्षा वारंट के अभियुक्त को जेल में प्रवेश में दिया जाता है. कोर्ट ने कहा है कि यदि उनके द्वारा किया गया कथन असत्य है, तो क्यों न उनके विरुद्ध वैधानिक कार्रवाई की जाए.


इसके साथ ही कोर्ट ने अभियुक्त की न्यायिक अभिरक्षा वारंट की दूसरी प्रति जारी करने का भी आदेश दिया है, ताकि उसकी रिहाई हो सके. उनका कहना था कि रिहाई आदेश जारी होने के बावजूद अभियुक्त जेल में निरुद्ध है, जिससे उसके जीवन व स्वतंत्रता के अधिकार का हनन हो रहा है. विगत 4 अगस्त को अभियुक्त विशाल भारती की जमानत मंजूर होने के बाद उसकी रिहाई का आदेश जारी किया गया था, लेकिन वरिष्ठ जेल अधीक्षक ने रिहाई आदेश वापस भेजते हुए आख्या दिया कि अभियुक्त का न्यायिक अभिरक्षा का वारंट अदालत आने-जाने में पुलिस स्कॉर्ट द्वारा कहीं गुम कर दिया गया है.

अतः इसकी दूसरी प्रति निर्गत की जाए, ताकि उसकी रिहाई की कार्यवाही की जा सके. विशेष जज ने इस पर अदालत के मोहर्रिर से सवाल जवाब किया. मोहर्रिर का कहना था कि न्यायिक अभिरक्षा वारंट के बिना किसी अभियुक्त को जेल में प्रवेश नहीं दिया जाता है. ऐसी स्थिति में यह कथन असत्य प्रतीत होता है.
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