लखनऊः भीख मांगने की कुप्रथा आजादी के बाद से अब तक देश में चली आ रही है. हर शहर में चौराहों से लेकर धार्मिक स्थलों तक ऐसे लोगों की भरमार देखने को मिलती है, जो भीख मांगकर अपना गुजारा कर रहे हैं. भिखारियों के लिए काम करने वाले सामाजिक संगठनों का कहना है कि मादक पदार्थों का नशा एक ऐसी बड़ी समस्या है, जो भिखारियों के पुनर्वास में आड़े आती है.
क्या है पूरा मामलाः
- राजधानी लखनऊ में भी ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है, जो भीख मांगकर गुजर-बसर करते हैं.
- एक निजी सामाजिक संस्था के सर्वे के अनुसार 6 साल पहले लखनऊ में वयस्क भिखारियों की तादाद साढ़े चार हजार से ज्यादा थी.
- नगर निगम प्रशासन इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए बड़ी पहल करने जा रहा है.
- इसके लिए भिखारियों की एक सूची तैयार की जा रही है.
- प्रथम चरण में भिखारियों को नगर निगम के आश्रय स्थल तकरोही में रखा जाएगा.
- उन्हें कार्य क्षमता के अनुसार नगर निगम में सफाई या अन्य कार्य पूरा करने का अवसर भी दिया जाएगा.
भिखारियों को पुनर्वास के लिहाज से उन्हें रोजगार दिया जाना जरूरी है. केवल आश्रय स्थल ही नहीं, उन्हें विभिन्न कार्यों से जोड़ने की भी योजना पर काम किया जा रहा है. इस योजना पर अगले महीने से अमल किया जाएगा.
-डॉ. इंद्रमणि त्रिपाठी, नगर आयुक्त लखनऊ