लखनऊ : भारत के किसी भी सरकारी संस्थान में होने वाली पहली ऐसी सर्जरी की गई, जिसमें किसी बच्चे की एड्रेनल ग्रंथि के ट्यूमर को पोस्टीरियर रेट्रो पेरिटोनियो स्कॉपिक विधि से रोबोट द्वारा निकाला गया है. लखनऊ निवासी आठ वर्षीय विशाल (काल्पनिक नाम) के दाहिनी एड्रिनल ग्रंथि में ट्यूमर हो गया था जो लगातार बढ़ रहा था और जांच करने पर पता चला उससे कोर्टिसोल नामक हार्मोन अधिक मात्रा में स्रावित हो रहा था. जिसे कुशिंग सिंड्रोम कहते हैं. जिसके कारण बच्चे का ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ गया था. इसके लिए उसे ब्लड प्रेशर की दो से ज्यादा दवाएं लेनी पड़ रही थीं. इसके अलावा इस हॉर्मोन की अधिकता से उसका चेहरा सूज गया था. गर्दन में कूबड़ निकल आया था. पेट मोटा हो गया था तथा चेहरे पर बाल व मुहांसे निकल आए थे. सीटी स्कैन कराने पर पता चला कि बच्चे की दाहिने एड्रेनल ग्रंथि, जो गुर्दे के ऊपर होती है में ट्यूमर है.
बच्चे के परिजन उसे लेकर पीजीआई पहुंचे. जहां जांचों के बाद पता चला कि सारी तकलीफ ट्यूमर से निकलने वाले कोर्टिसोल नामक हॉर्मोन की वजह से है. परिस्थितियों को देखते हुए बच्चे को डॉ. ज्ञान चंद, एंडोक्राइन सर्जन के पास पीजीआई रेफर किया गया. डॉ. ज्ञान चंद ने मरीज को भर्ती करके एंडोक्रिनोलोजिस्ट की मदद से पहले बच्चे का ब्लड प्रेशर नियंत्रित किया. फिर अन्य जांचें करा कर उसका उपचार तय किया. जांचों से पता चला की ट्यूमर बहुत ही जटिल और आस पास के अंगों से चिपका हुआ है. परिजनों की सहमति के बाद बीते शुक्रवार को विशाल के पेट से रोबोटिक विधि द्वारा सफलता पूर्वक एड्रेनल टयूमर को पीठ की तरफ छोटे से छेद द्वारा निकल दिया. ऑपरेशन में डॉ. ज्ञान चंद के साथ उनकी टीम में डॉ. अभिषेक कृष्णा, डॉ. दिव्या व डॉ. रीनेल शामिल रहे. साथ ही एनेस्थीसिया में डॉ. अमित रस्तोगी, डॉ. संजय धिराज और उनकी टीम ने सहयोग किया.
डॉ. ज्ञान चंद ने बताया कि रोबोटिक पोस्टीरियर रेट्रो पेरिटोनियो स्कॉपिक अड्रेनलेक्टोमी विधि द्वारा एड्रेनल ट्यूमर की सर्जरी में बिना पेट में गए. पीठ की तरफ से बहार से ही रोबोटिक सर्जरी द्वारा छोटे से छेद से एड्रेनल ट्यूमर को निकाला जाता है. पूरी प्रक्रिया बेहद जटिल है, लेकिन मरीज को भविष्य में आने वाली कठिनाइयों से राहत देने वाली है, क्योंकि कुशिंग सिंड्रोम में अमूमन मरीज़ को शल्य चिकित्सा के बाद इन्फेक्शन होने का तथा हर्निया बनाने का खतरा अधिक रहता है. जिससे मरीज़ को लम्बे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ जाता है या उसे बार बार ऑपरेशन कराने की आवश्यकता पड़ जाती है. रोबोटिक पोस्टीरियर रेट्रो पेरिटोनियो स्कॉपिक विधि द्वारा ऑपरेशन करने पर ऐसा नहीं होता. डॉ ज्ञान ने बताया कि ऐसी कठिन रोबोटिक सर्जरी करने की प्रेरणा उन्हें एसजीपीजीआई के निदेशक डॉ. आरके धीमन से मिली. डॉ ज्ञान ने अपने विभागाध्यक्ष डॉ गौरव अग्रवाल के मार्गदर्शन को भी सराहा.
बलरामपुर अस्पताल के डाॅक्टरों ने किडनी से निकाला ट्यूमर
हरदोई निवासी दीपक के 8.5 महीने के बेटे अर्जुन की दाहिनी किडनी में ढाई किलो का ट्यूमर धीरे-धीरे पूरे शरीर को अपनी जद में ले रहा था. बलरामपुर अस्पताल के डाक्टरों ने 3 घंटे की सर्जरी कर बच्चे का न केवल जीवन बचाया बल्कि कई दूसरे अंग भी खराब होने से बचा लिया. अर्जुन अब स्वस्थ है और चिकित्सकों की निगरानी में है. बलरामपुर अस्पताल के पीडियाट्रिक सर्जन अखिलेश कुमार ने बताया कि 20 जून को बच्चा उनकी ओपीडी में आया था. जांच में पता चला कि दाहिनी किडनी में हुए ट्यूमर ने पेट, लिवर और आंत समेत शरीर का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा ढक लिया है. आठ किलो के बच्चे को में लगभग ढाई किलो का ट्यूमर होने के कारण वह कुछ भी खा पी नहीं रहा था. डाक्टरों की टीम ने 29 जून को बच्चे की सर्जरी का निर्णय लिया और ट्यूमर समेत दाहिनी किडनी को पूरी तरह निकाला गया. 72 घंटे तक पीडियाट्रिक आईसीयू में रहने के बाद बच्चा अभी स्वस्थ है और सामान्य रूप से दूर और खाना खा रहा है.
एक किडनी पर रहेगा पूरा जीवन : डॉ. अखिलेश ने बताया कि बच्चे की बाई किडनी निकल जाने की वजह से अब वह सिर्फ एक किडनी पर जीवन भर रहेगा. अभी उसकी कीमोथेरेपी की जानी है. साथ ही लगभग 5 वर्षों तक उसे नियमित फालोअप में आना पड़ेगा ताकि उसकी बाई किडनी की जांच की जा सके. डाॅ. अखिलेश ने बताया कि इस तरह का ट्यूमर 10 हजार बच्चों में एक को होता है. इसका सही समय पर पता चल पाना बहुत जरूरी है, क्योंकि नौ माह की उम्र बहुत कम होती है और यह भी देरी की जाए तो बच्चे को बचा पाना मुश्किल होता है.
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