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Medical News : सरकार नहीं करा रही परमानेंट भर्तियां, मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रहे संविदाकर्मी - संविदा कर्मचारियों की नियुक्ति

यूपी के सरकारी अस्पतालों में तमाम स्थाई पद खाली पड़े हैं. इसके बावजूद सरकार स्थाई पदों पर कर्मचारियों की भर्ती की बजाय संविदा और कांट्रैक्ट पर स्टाफ रख रही है. ऐसे में वेतन और सुविधाओं की तुलना में अस्थाई कर्मचारियों को ज्यादा वर्क लोड झेलना पड़ रहा है.

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Published : Jul 22, 2023, 11:21 PM IST

Medical News : सरकार नहीं करा रही परमानेंट भर्तियां. देखें खबर



लखनऊ : सरकारी अस्पतालों में परमानेंट कर्मचारियों से अधिक आउटसोर्सिंग के द्वारा स्टाफ नर्स, वार्ड बॉय, लैब टेक्नीशियन इत्यादि की भरमार है. जिनको दो या तीन महीने पर एक बाद वेतन मिलता है और इनका वेतन भी 12 हजार लिखित तौर पर है, लेकिन कंपनी पैसा काटकर उन्हें आठ हजार ही देती है. कोरोना काल में इन्हीं आउटसोर्सिंग वाले कर्मचारियों ने अपनी सेवाएं दी थीं. प्रोत्साहन के अलावा इन कर्मचारियों को कुछ भी हासिल नहीं हुआ. एक लंबे समय से संविदा पर काम कर रहे कर्मचारियों की मांग है कि जिस प्रकार अन्य राज्य के अस्पतालों में संविदा कर्मचारियों को परमानेंट नियुक्त किया जा रहा है. उसी तरह यूपी सरकार भी उन्हें परमानेंट नियुक्ति प्रदान करें.

मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रहे संविदाकर्मी.
मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रहे संविदाकर्मी.



चिकित्सा शिक्षाविद् शहनवाज खान ने बताया कि चिकित्सा के क्षेत्र में संविदा पर रखे जाने वाले स्टाफ नर्स वार्ड ब्वाय और लैब टेक्नीशियन को सरकार ने कुछ लीगल इश्यूज से बचने के लिए किया है. दूसरी बात यह है कि परमानेंट सर्विस में समय लगता है, तुरंत कर्मचारी प्राप्त नहीं होते हैं. सच बात यह है कि अस्पतालों में जो कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं उनका शोषण हो रहा है. उनसे काम तो परमानेंट कर्मचारियों के बराबर ही हैं और उनसे ज्यादा ही लिया जाता है, लेकिन सरकारी मूलभूत सुविधाओं और वेतन में जमीन आसमान का अंतर होता है.

सरकार नहीं करा रही परमानेंट भर्तियां.
सरकार नहीं करा रही परमानेंट भर्तियां.

संविदा कर्मचारियों के ऊपर हमेशा यह तलवार लटकी रहती है कि कब वह निकाले जाएंगे. इस तरह से संविदा पर अपनी सेवाएं दे रहे कर्मचारियों का मानसिक प्रताड़ना नहीं होना चाहिए. इसके लिए सीधा उपाय है कि आउटसोर्सिंग के द्वारा संविदा पर कर्मचारियों की नियुक्ति न करके परमानेंट स्टाॅफ की भर्तियों में तेजी लानी चाहिए. उत्तर प्रदेश सरकार पूरी तरह से मजबूत सरकार है. चिकित्सा क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रही है. थोड़ा संविदा कर्मचारियों की समस्याओं का भी सरकार को ध्यान देना चाहिए और कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम को भी बंद करना चाहिए.

शहनवाज खान के अनुसार कई बार ऐसा होता है कि बड़े मेडिकल कॉलेजों में भर्तियां निकलती हैं और पर्याप्त सीट भी रहती हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही पदों पर परमानेंट भर्ती कराई जाती है और अधिकतर संविदा कर्मी रखे जाते हैं. इसका साफ मतलब यह है कि उस अस्पताल में कर्मचारियों के पद खाली हैं, लेकिन उनके ऊपर भी शायद सरकार का दबाव रहता है कि उन्हें कितनी सीटों पर स्टाफ कर्मचारियों को नियुक्त करना है. जितने की परमिशन होती हैं उतने ही परमानेंट कर्मचारियों की नियुक्ति होती है. सरकारी अस्पतालों में काफी काम होता है. अस्पताल में काम सुचारू रूप से चलता रहे इसलिए अस्पताल प्रशासन आउटसोर्सिंग के द्वारा कर्मचारियों को नियुक्त करता है.




यह भी पढ़ें : 'गजनी' अब नहीं भूलेगा अपनी कोई भी बात, शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस का आयुर्वेद में है सटीक इलाज

Medical News : सरकार नहीं करा रही परमानेंट भर्तियां. देखें खबर



लखनऊ : सरकारी अस्पतालों में परमानेंट कर्मचारियों से अधिक आउटसोर्सिंग के द्वारा स्टाफ नर्स, वार्ड बॉय, लैब टेक्नीशियन इत्यादि की भरमार है. जिनको दो या तीन महीने पर एक बाद वेतन मिलता है और इनका वेतन भी 12 हजार लिखित तौर पर है, लेकिन कंपनी पैसा काटकर उन्हें आठ हजार ही देती है. कोरोना काल में इन्हीं आउटसोर्सिंग वाले कर्मचारियों ने अपनी सेवाएं दी थीं. प्रोत्साहन के अलावा इन कर्मचारियों को कुछ भी हासिल नहीं हुआ. एक लंबे समय से संविदा पर काम कर रहे कर्मचारियों की मांग है कि जिस प्रकार अन्य राज्य के अस्पतालों में संविदा कर्मचारियों को परमानेंट नियुक्त किया जा रहा है. उसी तरह यूपी सरकार भी उन्हें परमानेंट नियुक्ति प्रदान करें.

मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रहे संविदाकर्मी.
मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रहे संविदाकर्मी.



चिकित्सा शिक्षाविद् शहनवाज खान ने बताया कि चिकित्सा के क्षेत्र में संविदा पर रखे जाने वाले स्टाफ नर्स वार्ड ब्वाय और लैब टेक्नीशियन को सरकार ने कुछ लीगल इश्यूज से बचने के लिए किया है. दूसरी बात यह है कि परमानेंट सर्विस में समय लगता है, तुरंत कर्मचारी प्राप्त नहीं होते हैं. सच बात यह है कि अस्पतालों में जो कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं उनका शोषण हो रहा है. उनसे काम तो परमानेंट कर्मचारियों के बराबर ही हैं और उनसे ज्यादा ही लिया जाता है, लेकिन सरकारी मूलभूत सुविधाओं और वेतन में जमीन आसमान का अंतर होता है.

सरकार नहीं करा रही परमानेंट भर्तियां.
सरकार नहीं करा रही परमानेंट भर्तियां.

संविदा कर्मचारियों के ऊपर हमेशा यह तलवार लटकी रहती है कि कब वह निकाले जाएंगे. इस तरह से संविदा पर अपनी सेवाएं दे रहे कर्मचारियों का मानसिक प्रताड़ना नहीं होना चाहिए. इसके लिए सीधा उपाय है कि आउटसोर्सिंग के द्वारा संविदा पर कर्मचारियों की नियुक्ति न करके परमानेंट स्टाॅफ की भर्तियों में तेजी लानी चाहिए. उत्तर प्रदेश सरकार पूरी तरह से मजबूत सरकार है. चिकित्सा क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रही है. थोड़ा संविदा कर्मचारियों की समस्याओं का भी सरकार को ध्यान देना चाहिए और कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम को भी बंद करना चाहिए.

शहनवाज खान के अनुसार कई बार ऐसा होता है कि बड़े मेडिकल कॉलेजों में भर्तियां निकलती हैं और पर्याप्त सीट भी रहती हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही पदों पर परमानेंट भर्ती कराई जाती है और अधिकतर संविदा कर्मी रखे जाते हैं. इसका साफ मतलब यह है कि उस अस्पताल में कर्मचारियों के पद खाली हैं, लेकिन उनके ऊपर भी शायद सरकार का दबाव रहता है कि उन्हें कितनी सीटों पर स्टाफ कर्मचारियों को नियुक्त करना है. जितने की परमिशन होती हैं उतने ही परमानेंट कर्मचारियों की नियुक्ति होती है. सरकारी अस्पतालों में काफी काम होता है. अस्पताल में काम सुचारू रूप से चलता रहे इसलिए अस्पताल प्रशासन आउटसोर्सिंग के द्वारा कर्मचारियों को नियुक्त करता है.




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