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लखनऊ की कहानी पद्मश्री योगेश प्रवीण के बिना रहेगी अधूरी

अवध और लखनऊ के इतिहास का इनसाइक्लोपीडिया माने जाने वाले पद्मश्री डॉ.योगेश प्रवीण का सोमवार को लखनऊ में निधन हो गया. आधुनिक लखनऊ को उसके इतिहास से पहचान कराने में योगेश प्रवीण का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता.

मशहूर साहित्यकार 'पद्मश्री' योगेश प्रवीण
मशहूर साहित्यकार 'पद्मश्री' योगेश प्रवीण
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Published : Apr 13, 2021, 2:21 AM IST

लखनऊः 'लखनऊविद्' के नाम से मशहूर साहित्यकार 'पद्मश्री' योगेश प्रवीण का 82 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है. योगेश के भाई कामेश श्रीवास्तव ने बताया कि योगेश को आज सुबह हल्का बुखार आया था, जिसके बाद उन्होंने दवा ली थी. उन्हेांने कहा कि वह ठीक भी थे, लेकिन तभी दोपहर करीब दो बजे वह अचानक बेहोश हो गए. उन्हें निजी वाहन से बलरामपुर अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

मशहूर साहित्यकार 'पद्मश्री' योगेश प्रवीण
मशहूर साहित्यकार 'पद्मश्री' योगेश प्रवीण

इतिहासकार योगेश प्रवीन लखनऊ के इतिहास को जानने-समझने का सबसे बड़ा माध्यम थे. बीते वर्ष पद्मश्री सम्मान मिलने पर उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा था कि पद्म पुरस्कार मिलना उनके लिए देर से ही सही मगर बहुत खुशी की बात है. उन्होंने कहा कि अक्सर इंसान को सब कुछ समय पर नहीं मिलता. भावुक हुए इतिहासकार ने कहा था कि अब सुकून से अगली यात्रा पर चल सकूंगा.

हिंदी पढ़ाई पर लखनऊ में थी रूचि

पद्मश्री योगेश प्रवीण वर्ष 2000 में विद्यांत इंटर कॉलेज से सेवानिवृत्त हुए थे. विद्यांत हिंदू पीजी कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री बताते हैं कि वह यहां हिंदी पढ़ाते थे. लेकिन, लखनऊ उनके अंदर इतना रचा बसा था कि वही उनकी पहचान बन गया. वह कहते हैं कि उनके निधन की खबर बेहद दर्द भरी है. यह एक युग के समाप्त होने जैसा है. वह लखनऊ को बेहद करीब से जानते थे. उसे एक अलग पहचान दिलाई.

मुंहजबानी रटा था इतिहास

लखनऊ विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के डॉ. दुर्गेश श्रीवास्तव कहते हैं कि लखनऊ तो जैसे उनकी जुबां पर बसा हुआ था. हर एक छोटी से छोटी इमारत के पीछे का इतिहास उन्हें मुंहजबानी रटा हुआ था. इतिहास पर जब बात करते तो जैसे किस्सा सा सुनाते थे. उनके बताने से ऐसे लगता मानो हम वह युग जी रहे हो. वे इतिहासविद् थे और अवध की लोक संस्कृति के विशेषज्ञ थे. नवाबी शासनकाल को उन्होंने अध्ययन और पर्यवेक्षण के सहारे बहुत प्रामाणिक ढंग से परखा पहचाना था.

कई विधाओं में लिखा साहित्य

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित कहते हैं कि विभिन्न विधाओं में विविध विषयक साहित्य की रचना की है. कई उपन्यास, कहानी संकलन, प्रकाशित किए हैं. कई काव्य और नाटक लिखे. फिल्मों के लिए संवाद और पटकथायें लिखीं और साथ ही विभिन्न विषयों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां की. उन्हें अवध संस्कृति का जीवित ज्ञान विश्वकोष कहा जा सकता है.

इसलिए कभी नहीं भुलाया जा सकता है

  • पद्मश्री योगेश प्रवीण ने लखनऊ को एक अलग पहचान दिलाई. लोगों को यहां की रूमानियत, कला, संस्कृति से रूबरू कराया.
  • योगेश प्रवीण को लखनऊ की एनसाइक्लोपीडिया भी कहा जाता रहा है.
  • लखनऊ नामा के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड भी मिला.
  • मशहूर अभिनेता शशि कपूर की फिल्म 'जुनून' के लिरिक्स योगेश प्रवीण ने ही लिखे थे.
  • योगेश प्रवीण की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर आधारित डॉक्यूमेंट्री लाइफ ऑफ योगेश प्रवीण जल्द ही रिलीज होगी.
  • परमेश्वरी के अलावा उन्हें यश भारती, यूपी रत्न अवॉर्ड, नेशनल टीचर अवार्ड सहित कई सम्मान भी मिले थे.

लखनऊः 'लखनऊविद्' के नाम से मशहूर साहित्यकार 'पद्मश्री' योगेश प्रवीण का 82 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है. योगेश के भाई कामेश श्रीवास्तव ने बताया कि योगेश को आज सुबह हल्का बुखार आया था, जिसके बाद उन्होंने दवा ली थी. उन्हेांने कहा कि वह ठीक भी थे, लेकिन तभी दोपहर करीब दो बजे वह अचानक बेहोश हो गए. उन्हें निजी वाहन से बलरामपुर अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

मशहूर साहित्यकार 'पद्मश्री' योगेश प्रवीण
मशहूर साहित्यकार 'पद्मश्री' योगेश प्रवीण

इतिहासकार योगेश प्रवीन लखनऊ के इतिहास को जानने-समझने का सबसे बड़ा माध्यम थे. बीते वर्ष पद्मश्री सम्मान मिलने पर उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा था कि पद्म पुरस्कार मिलना उनके लिए देर से ही सही मगर बहुत खुशी की बात है. उन्होंने कहा कि अक्सर इंसान को सब कुछ समय पर नहीं मिलता. भावुक हुए इतिहासकार ने कहा था कि अब सुकून से अगली यात्रा पर चल सकूंगा.

हिंदी पढ़ाई पर लखनऊ में थी रूचि

पद्मश्री योगेश प्रवीण वर्ष 2000 में विद्यांत इंटर कॉलेज से सेवानिवृत्त हुए थे. विद्यांत हिंदू पीजी कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री बताते हैं कि वह यहां हिंदी पढ़ाते थे. लेकिन, लखनऊ उनके अंदर इतना रचा बसा था कि वही उनकी पहचान बन गया. वह कहते हैं कि उनके निधन की खबर बेहद दर्द भरी है. यह एक युग के समाप्त होने जैसा है. वह लखनऊ को बेहद करीब से जानते थे. उसे एक अलग पहचान दिलाई.

मुंहजबानी रटा था इतिहास

लखनऊ विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के डॉ. दुर्गेश श्रीवास्तव कहते हैं कि लखनऊ तो जैसे उनकी जुबां पर बसा हुआ था. हर एक छोटी से छोटी इमारत के पीछे का इतिहास उन्हें मुंहजबानी रटा हुआ था. इतिहास पर जब बात करते तो जैसे किस्सा सा सुनाते थे. उनके बताने से ऐसे लगता मानो हम वह युग जी रहे हो. वे इतिहासविद् थे और अवध की लोक संस्कृति के विशेषज्ञ थे. नवाबी शासनकाल को उन्होंने अध्ययन और पर्यवेक्षण के सहारे बहुत प्रामाणिक ढंग से परखा पहचाना था.

कई विधाओं में लिखा साहित्य

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित कहते हैं कि विभिन्न विधाओं में विविध विषयक साहित्य की रचना की है. कई उपन्यास, कहानी संकलन, प्रकाशित किए हैं. कई काव्य और नाटक लिखे. फिल्मों के लिए संवाद और पटकथायें लिखीं और साथ ही विभिन्न विषयों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां की. उन्हें अवध संस्कृति का जीवित ज्ञान विश्वकोष कहा जा सकता है.

इसलिए कभी नहीं भुलाया जा सकता है

  • पद्मश्री योगेश प्रवीण ने लखनऊ को एक अलग पहचान दिलाई. लोगों को यहां की रूमानियत, कला, संस्कृति से रूबरू कराया.
  • योगेश प्रवीण को लखनऊ की एनसाइक्लोपीडिया भी कहा जाता रहा है.
  • लखनऊ नामा के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड भी मिला.
  • मशहूर अभिनेता शशि कपूर की फिल्म 'जुनून' के लिरिक्स योगेश प्रवीण ने ही लिखे थे.
  • योगेश प्रवीण की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं पर आधारित डॉक्यूमेंट्री लाइफ ऑफ योगेश प्रवीण जल्द ही रिलीज होगी.
  • परमेश्वरी के अलावा उन्हें यश भारती, यूपी रत्न अवॉर्ड, नेशनल टीचर अवार्ड सहित कई सम्मान भी मिले थे.
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