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Lucknow High Court : केजीएमयू कुलपति के खिलाफ जांच की मांग वाली याचिका खारिज

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Published : May 30, 2023, 10:19 PM IST

केजीएमयू कुलपति के खिलाफ जांच की मांग वाली याचिका को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दिया है. नियुक्तियों में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की गई थी.

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लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने केजीएमयू के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. बिपिन पूरी के खिलाफ जांच की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. याचिका में केजीएमयू में नियुक्तियों में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए, जांच की मांग की गई थी. यह आदेश न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने श्रीकांत सिंह की जनहित याचिका पर पारित किया.

याचिका में मांग की गई थी कि नियुक्तियों में कथित अनियमितता के लिए केजीमयू के चांसलर, लोकायुक्त व राज्य सरकार को कुलपति के खिलाफ स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराए जाने का आदेश दिया जाए. याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने याची के विश्वसनीयता के बारे में पूछा तो उसके अधिवक्ता द्वारा बताया गया कि वह एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. हालांकि न्यायालय इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई. न्यायालय ने कहा कि जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए याची की विश्वसनीयता पहली शर्त होती है.

न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बलवंत सिंह मामले में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि एक जनहित याचिका की सुनवाई में याची की अच्छी नियत को परखना आवश्यक होता है, इसके लिए उसकी विश्वसनीयता (क्रेडेंशियल) को परखा जाना जरूरी है. न्यायालय ने आगे कहा कि एक जनहित याचिका की सुनवाई में सावधानी आवश्यक है. न्यायालय ने यह भी कहा कि सेवा सम्बंधी मामलों में जनहित याचिका पोषणीय भी नहीं है, इसके लिए न्यायालय ने हरी बंश लाल मामले का उद्धरण देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत यह स्पष्ट कर चुकी है कि सेवा सम्बंधी मामलों में जनहित याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती. मामले में न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि याची स्वयं कुछ पदों पर नियुक्तियां करवाना चाहता था.

पढ़ेंः Medical facilities at KGMU : पीपीपी मॉडल पर पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी की बढ़ेंगी जांचें

लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने केजीएमयू के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. बिपिन पूरी के खिलाफ जांच की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. याचिका में केजीएमयू में नियुक्तियों में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए, जांच की मांग की गई थी. यह आदेश न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने श्रीकांत सिंह की जनहित याचिका पर पारित किया.

याचिका में मांग की गई थी कि नियुक्तियों में कथित अनियमितता के लिए केजीमयू के चांसलर, लोकायुक्त व राज्य सरकार को कुलपति के खिलाफ स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराए जाने का आदेश दिया जाए. याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने याची के विश्वसनीयता के बारे में पूछा तो उसके अधिवक्ता द्वारा बताया गया कि वह एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. हालांकि न्यायालय इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई. न्यायालय ने कहा कि जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए याची की विश्वसनीयता पहली शर्त होती है.

न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बलवंत सिंह मामले में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि एक जनहित याचिका की सुनवाई में याची की अच्छी नियत को परखना आवश्यक होता है, इसके लिए उसकी विश्वसनीयता (क्रेडेंशियल) को परखा जाना जरूरी है. न्यायालय ने आगे कहा कि एक जनहित याचिका की सुनवाई में सावधानी आवश्यक है. न्यायालय ने यह भी कहा कि सेवा सम्बंधी मामलों में जनहित याचिका पोषणीय भी नहीं है, इसके लिए न्यायालय ने हरी बंश लाल मामले का उद्धरण देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत यह स्पष्ट कर चुकी है कि सेवा सम्बंधी मामलों में जनहित याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती. मामले में न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि याची स्वयं कुछ पदों पर नियुक्तियां करवाना चाहता था.

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