लखनऊः बुद्ध के अनुयायियों और सम्राट अशोक के खिलाफ कथित तौर पर टिप्पणी करने के आरोपों को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत समेत 3 के खिलाफ दाखिल याचिका को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दिया है. इसके पूर्व इस मामले में दाखिल परिवाद भी निचली अदालत द्वारा खारिज किया जा चुका है.
यह आदेश न्यायमूर्ति सुरेश कुमार गुप्ता की एकल पीठ ने ब्रहमेन्द्र प्रताप सिंह मौर्या की याचिका पर पारित किया. न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याची ने मात्र ओछी लोकप्रियता पाने के लिए परिवाद दाखिल किया. न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को सही मानते हुए कहा कि याची ने अपने परिवाद में अपनी तथा समाज के बड़े तबके की भावनाएं आहत होने, राष्ट्रद्रोह का अपराध होने और कार्यवाही न होने पर हिंसक संघर्ष होने की सम्भावना जताई है. लेकिन ऐसी परिस्थिति में बिना सक्षम प्राधिकारी द्वारा अभियोजन स्वीकृति लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.
न्यायालय ने प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 (1) के तहत आईपीसी की धारा 153 -ए व 505 में अभियोजन की स्वीकृति केंद्र अथवा राज्य सरकार से लेने के बाद ही संज्ञान लिया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि परिवादी ने अपना परिवाद दाखिल करते समय यह स्पष्ट नहीं किया है कि उसने परिवाद पेश करने के लिए आवश्यक अनुमति ली है या नहीं.
पत्रावली के अनुसार बंथरा निवासी ब्रह्मेन्द्र सिंह मौर्य ने सीजेएम की कोर्ट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संचालक मोहन भागवत, संघ के तत्कालीन सचिव और डॉ राधिका लढ़ा के खिलाफ परिवाद दायर करके बताया था कि 24 जून 2022 को उसके व्हाट्सएप पर समाचार आया कि 23 जून को उदयपुर के एक समाचार पत्र में एक खबर प्रकाशित हुई थी कि "संघ परिवार की नजर में अकबर के बाद अब सम्राट अशोक खलनायक और बौद्ध राष्ट्रद्रोही". कहा गया कि इस समाचार को पढ़कर परिवादी को धक्का लगा.
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