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सहभागिता ने दिखाई लॉकडाउन में किसानों को राह, ऐसे कर रहे कमाई

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Published : Apr 11, 2020, 7:43 AM IST

मुर्गी पालन अच्छे मुनाफे वाले व्यवसायों में से एक है. राजधानी में लॉकडाउन के समय स्वयं सहायता समूह से जुड़े किसान वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में मुर्गी पालन कर कमा रहे हैं. साथ ही समूह से जुड़े किसान कोविड19 से जुड़े निर्देशों का पालन भी कर रहे हैं.

स्वयं सहायता समूह से जुड़े किसान कमा रहे आजीविका.
स्वयं सहायता समूह से जुड़े किसान कमा रहे आजीविका.

लखनऊ: देश इस समय कोरोना वायरस (कोविड19) महामारी से जूझ रहा है. लॉकडाउन के बाद किसानों की आजीविका बुरी तरह से प्रभावित हुई है. ऐसे में किसानों के स्वयं सहायता समूह वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में मुर्गी पालन कर आजीविका कमा रहे हैं. साथ ही समूह कोविड19 से जुड़े निर्देशों का पालन भी कर रहा है.

मुर्गियों की दुर्लभ प्रजातियों को किसान दे रहे तवज्जो

स्वयं सहायता समूह से जुड़े डॉ. राजन ने बताया कि आम बागवानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से मलिहाबाद में दो वर्ष पूर्व आम आधारित मुर्गी पालन की शुरुआत फार्मर फर्स्ट परियोजना के अंतर्गत की गई थी. इसके जरिए किसानों को भारतीय पक्षी अनुसंधान संस्थान बरेली से निर्भीक, अशील, कारी देवेन्द्र, कड़कनाथ इत्यादि दुर्लभ एवं विलुप्त हो रही मुर्गियों की प्रजातियां लाकर दी गईं थी.

lockdown in lucknow
मुर्गी पालन से किसानों को हो रहा फायदा.

किसानों ने स्वयं सहायता समूह में की भागेदारी

किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये संस्थान ने एक स्वयं सहायता समूह सहभागिता बनाया, जिसमें 25 किसानों ने भागीदारी की. संस्थान की ओर से उन्हें एक सामुदायिक हैचरी दी गई. जहां एक ओर ब्रायलर चिकन उद्योग लॉकडाउन में बुरी तरह प्रभावित हो चुका है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में देसी मुर्गियों का व्यवसाय ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है. वैज्ञानिकों के अनुसार देसी मुर्गी का वजन धीरे-धीरे बढ़ता है. यह प्रजाति अपना भोजन कीटों, खरपतवार के बीजों, एवं सड़े गले अनाज एवं सब्जियों से प्राप्त करते हैं, जिससे किसानों पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ रहा है.

संकट में है ब्रायलर प्रजाति के मुर्गियों का व्यवसाय

लॉकडाउन के दौरान किसान कडकनाथ और निर्भीक जैसी किस्मों के बच्चे तैयार कर रहे हैं क्योंकि इन किस्मों का बाजार इन हालातों में बेहतर दिखाई दे रहा है. वहीं ब्रायलर प्रजाति की मुर्गी पालने में ज्यादा खर्च नहीं आता है और कुछ ही दिनों में बिक्री भी शुरू हो जाती है. हालांकि इस प्रजाति की उम्र बेहद सीमित होती है, इसलिए इनकी दवाइयों का खर्च अन्य प्रजातियों के मुकाबले अधिक आता है, लेकिन लॉकडाउन के चलते ज्यादातर किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

देसी मुर्गियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा

वैज्ञानिकों के अनुसार देसी मुर्गियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है. साथ ही पोषण पर कम खर्च आता है. आपदा की इस हालत में किसानों के लिए यह बेहद लाभप्रद साबित हो रहा है. महामारी के इस दौर में अन्य व्यवसाय से जुड़े बाकी किसान भयभीत हैं.

हैचरी को किसान कर रहे लगातार सैनेटाइज

सहभागिता के सदस्य किसानों को कोरोना वायरस से बचाने के लिए परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. मनीष मिश्र ने कार्य के समय सोशल डिस्टेंसिंग के लिए प्रेरित किया. साथ ही किसानों को मास्क एवं सैनेटाइजर दिए. हैचरी प्रबंधन हेतु किसानों की एक टीम पंक्षी अनुसंधान बरेली में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी है. .

सहभागिता का अपना बैंक खाता है, जिसके माध्यम से सदस्य किसान अपना व्यापार कर रहे हैं. डॉ. राजन बताते हैं कि आने वाले समय में स्वयं सहायता समूहों और एफपीओ की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. आपदा के समय खेती में किसानों को समूह में जुड़ना बेहद महत्वपूर्ण होगा.

लखनऊ: देश इस समय कोरोना वायरस (कोविड19) महामारी से जूझ रहा है. लॉकडाउन के बाद किसानों की आजीविका बुरी तरह से प्रभावित हुई है. ऐसे में किसानों के स्वयं सहायता समूह वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में मुर्गी पालन कर आजीविका कमा रहे हैं. साथ ही समूह कोविड19 से जुड़े निर्देशों का पालन भी कर रहा है.

मुर्गियों की दुर्लभ प्रजातियों को किसान दे रहे तवज्जो

स्वयं सहायता समूह से जुड़े डॉ. राजन ने बताया कि आम बागवानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से मलिहाबाद में दो वर्ष पूर्व आम आधारित मुर्गी पालन की शुरुआत फार्मर फर्स्ट परियोजना के अंतर्गत की गई थी. इसके जरिए किसानों को भारतीय पक्षी अनुसंधान संस्थान बरेली से निर्भीक, अशील, कारी देवेन्द्र, कड़कनाथ इत्यादि दुर्लभ एवं विलुप्त हो रही मुर्गियों की प्रजातियां लाकर दी गईं थी.

lockdown in lucknow
मुर्गी पालन से किसानों को हो रहा फायदा.

किसानों ने स्वयं सहायता समूह में की भागेदारी

किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये संस्थान ने एक स्वयं सहायता समूह सहभागिता बनाया, जिसमें 25 किसानों ने भागीदारी की. संस्थान की ओर से उन्हें एक सामुदायिक हैचरी दी गई. जहां एक ओर ब्रायलर चिकन उद्योग लॉकडाउन में बुरी तरह प्रभावित हो चुका है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में देसी मुर्गियों का व्यवसाय ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है. वैज्ञानिकों के अनुसार देसी मुर्गी का वजन धीरे-धीरे बढ़ता है. यह प्रजाति अपना भोजन कीटों, खरपतवार के बीजों, एवं सड़े गले अनाज एवं सब्जियों से प्राप्त करते हैं, जिससे किसानों पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ रहा है.

संकट में है ब्रायलर प्रजाति के मुर्गियों का व्यवसाय

लॉकडाउन के दौरान किसान कडकनाथ और निर्भीक जैसी किस्मों के बच्चे तैयार कर रहे हैं क्योंकि इन किस्मों का बाजार इन हालातों में बेहतर दिखाई दे रहा है. वहीं ब्रायलर प्रजाति की मुर्गी पालने में ज्यादा खर्च नहीं आता है और कुछ ही दिनों में बिक्री भी शुरू हो जाती है. हालांकि इस प्रजाति की उम्र बेहद सीमित होती है, इसलिए इनकी दवाइयों का खर्च अन्य प्रजातियों के मुकाबले अधिक आता है, लेकिन लॉकडाउन के चलते ज्यादातर किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

देसी मुर्गियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा

वैज्ञानिकों के अनुसार देसी मुर्गियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है. साथ ही पोषण पर कम खर्च आता है. आपदा की इस हालत में किसानों के लिए यह बेहद लाभप्रद साबित हो रहा है. महामारी के इस दौर में अन्य व्यवसाय से जुड़े बाकी किसान भयभीत हैं.

हैचरी को किसान कर रहे लगातार सैनेटाइज

सहभागिता के सदस्य किसानों को कोरोना वायरस से बचाने के लिए परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. मनीष मिश्र ने कार्य के समय सोशल डिस्टेंसिंग के लिए प्रेरित किया. साथ ही किसानों को मास्क एवं सैनेटाइजर दिए. हैचरी प्रबंधन हेतु किसानों की एक टीम पंक्षी अनुसंधान बरेली में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी है. .

सहभागिता का अपना बैंक खाता है, जिसके माध्यम से सदस्य किसान अपना व्यापार कर रहे हैं. डॉ. राजन बताते हैं कि आने वाले समय में स्वयं सहायता समूहों और एफपीओ की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. आपदा के समय खेती में किसानों को समूह में जुड़ना बेहद महत्वपूर्ण होगा.

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