लखनऊः लखनऊ विकास प्राधिकरण(LDA) में तमाम तरह के भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामले साल भर आते रहे. हालांकि यह जरूर रहा कि लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधिकारी कुछ गिने-चुने अवैध निर्माण के खिलाफ बुलडोजर चलाने में सफल रहे, लेकिन शहर में तीस हजार से अधिक अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई के लिए एक्शन प्लान नहीं बना पाए.
अफसरों की लापरवाही से आवासीय कालोनियों का बदल गया स्वरूप
अफसरों की लापरवाही और अभियंताओं के संरक्षण में राजधानी लखनऊ की आवासीय कॉलोनियों का स्वरूप बदलता चला गया. इस तरफ किसी का ध्यान नहीं गया. रेजिडेंशियल कॉलोनी में कमर्शियल एक्टिविटीज वाले संस्थान खुलते चले गए और कॉलोनीवासियों का जीना दूभर हो गया, लेकिन लखनऊ विकास प्राधिकरण ऐसे संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सिर्फ नोटिस देता रहा और कोई बड़ी कार्रवाई नहीं कर पाया.
एलडीए का लैंड बैंक हुआ शून्य, नहीं आई कोई नई आवासीय योजना
वहीं दूसरी तरफ लखनऊ विकास प्राधिकरण लखनऊवासियों के लिए कोई नई आवासीय योजना लाने में सफल नहीं हुआ तो अपना लैंड बैंक भी नहीं बना पाया. एलडीए का लैंड बैंक इस समय शून्य है. मोहान रोड योजना और प्रबंध नगर योजना को आगे बढ़ाने के लगातार दावे होते रहे, लेकिन अधिकारियों की सुस्ती इन योजनाओं को आगे नहीं बढ़ा पाई. सुलतानपुर रोड पर 2075 एकड़ की नई टाउनशिप विकसित करने के दावे तो खूब हुए, लेकिन यह काम सिर्फ फाइलों तक सीमित रहा. यही नहीं किसी भी टाउनशिप का काम आगे नहीं बढ़ सका, जिससे लखनऊवासियों को कुछ राहत मिल सके.
बिना डिमांड के बना डाले हजारों फ्लैट, अब नहीं रहे बिक
वहीं दूसरी तरफ लखनऊ विकास प्राधिकरण ने हजारों की संख्या में कमीशनबाजी के लिए अपार्टमेंट में फ्लैट बनाकर छोड़ दिए, लेकिन इन फ्लैट को बेचने में अफसरों को पसीना छूट रहा है. राजधानी लखनऊ में एलडीए द्वारा करीब 3000 फ्लैट बनाए गए हैं, लेकिन इन्हें अधिकारी बेचने में पूरी तरह से असफल साबित होते रहे हैं.
अपार्टमेंट में समस्याओं का अंबार
वहीं दूसरी तरफ पिछले कुछ वर्षों में जिन अपार्टमेंट्स के फ्लैट की बिक्री हुई जिनमें सरयु अपार्टमेंट, गंगा यमुना अपार्टमेंट, भागीरथ अपार्टमेंट सहित कई अन्य अपार्टमेंट में आवंटियों को सहूलियत भी नहीं मिल पाई. तमाम तरह की शिकायतों का अंबार लेकर आवंटी लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष कार्यालय पहुंचते रहे, लेकिन उनका निस्तारण भी अधिकारी नहीं करा पाए.
आवास विकास परिषद का हाल भी रहा बेहाल
आवास विकास परिषद का भी यही हाल रहा. राजधानी लखनऊ में परिषद की तरफ से करीब ढाई हजार फ्लैट्स बनाए गए, लेकिन इन्हें भी बेचने में अधिकारी फेल साबित हो रहे हैं. आवास विकास परिषद लखनऊ विकास प्राधिकरण की तरफ से फ्लैट को बेचने के लिए कीमत कम करने के दावे किए गए, लेकिन इनकी कीमतें कम न होने से लोग इन्हें खरीदने का मन नहीं बना पाए. ऐसी स्थिति में लखनऊ विकास प्राधिकरण आवास विकास परिषद की तरफ से पहले आओ पहले पाओ योजना भी शुरू की गई, जिस को भेजा जा सके अभी भी दोनों विभागों के स्तर पर करीब 4000 फ्लैट खाली पड़े हुए हैं और इन्हें खरीदने के लिए लोग नहीं मिल रहे.
रिवर फ्रंट में जांच के बावजूद 100 करोड़ से अधिक हुए खर्च
यही नहीं लखनऊ विकास प्राधिकरण के अफसरों की लापरवाही के चलते गोमती रिवरफ्रंट का काम पूरी तरह से ठंडे बस्ते में पड़ा है. समाजवादी पार्टी की सरकार में बनाए गए. इस प्रोजेक्ट में जांच के बावजूद करीब 100 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए, लेकिन इसका लाभ राजधानी के लोगों को नहीं मिला है. आधा अधूरा काम अभी भी पड़ा है, जिससे लोगों को तमाम तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है.
नगर निगम भी सुविधाएं देने में फेल, हर तरफ समस्याओं का अंबार
वहीं दूसरी तरफ राजधानी लखनऊ में नगर निगम प्रशासन के अफसरों की लापरवाही पूरे शहर में पूरे साल देखने को मिली. अमृत योजना और स्मार्ट सिटी योजना को धरातल पर उतारने के बीच में पूरे शहर में जगह-जगह खुदाई ही नजर आए. सड़कें खुदी होने की वजह से आए दिन जाम की समस्या से लोगों को जूझना पड़ रहा है. सड़कों पर पानी धूल की समस्या भी लोगों को लगातार परेशान करती रही.
अतिक्रमण नहीं हटा पाए अफसर
यही नहीं अतिक्रमण की समस्या से भी नगर निगम के अधिकारी लोगों को निजात नहीं दिला पाए. शहर के तमाम इलाकों में पटरी दुकानदारों को व्यवस्थित करने के दावे किए गए. स्ट्रीट वेंडर्स को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए 10 हजार रुपये के लोन की व्यवस्था कराई गई. बावजूद इसके हर तरफ तरीके से दुकानें लग रही है. जाम की समस्या लगातार बनी रहती है. सड़कों के किनारे बड़ी बड़ी कार पार्क होती हैं और कमर्शियल पार्किंग भी लगाई जाती है. जिससे लोगों को परेशान होना स्वाभाविक है. फुटपाथ पर चलने में लोगों को दिक्कत होती है, क्योंकि फुटपाथ खाली नहीं बचे. जहां पर फुटपाथ बचे हैं वहां पर दुकानें लग रही हैं और गाड़ियां खड़ी होती हैं, जिससे लोगों को निकलने में समस्या होती है.
भ्रष्टाचार के मामले रहे चर्चा में
एलडीए कर्मचारियों कि भ्रष्टाचार के मामले भी खूब सामने आए और चर्चा होती रही. प्लाट समायोजन के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई. एलडीए उपाध्यक्ष अभिषेक प्रकाश ने फाइलों के फर्जीवाड़े में और फाइलों के गायब होने के मामले में सिर्फ दो कर्मचारियों को निलंबित किया था. बड़े अधिकारियों की भूमिका तय नहीं की जा सकी. इसके अलावा फाइलों को स्कैन करने के मामले में गायब हुई फाइलों को अभी तक अधिकारी खोज नहीं पाए. कुल मिलाकर लखनऊ विकास प्राधिकरण में समस्याएं लगातार बनी रहीं.
गिने चुने अवैध निर्माण पर ही कार्रवाई
लखनऊ विकास प्राधिकरण माफिया मुख्तार अंसारी के अवैध निर्माण के खिलाफ बुलडोजर चलाने में सफल रहा. सरकार के स्तर पर जब निर्देश मिले तो अधिकारी सड़क पर उतर आए और मुख्तार के करीबियों और उनके बेटों के अवैध निर्माण को धराशाई कर दिया, लेकिन शहर में 30 हजार से अधिक अवैध निर्माण के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करने की हिम्मत प्राधिकरण के अधिकारी नहीं जुटा पाए.
सीमा विस्तार में जुड़े गांवों का नहीं कर सके विकास
यही नहीं लखनऊ विकास प्राधिकरण ने अपनी सीमा का विस्तार करते हुए लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण क्षेत्र के 45 गांवों को एलडीए में शामिल करने की मंजूरी दी थी, लेकिन गांव में आधारभूत सुविधाएं पहुंचाने में प्राधिकरण के अधिकारी फेल साबित हुए.
पाइप लाइन डालने से सड़कों पर खुदाई से हो रही हैं दिक्कत
स्थानीय निवासी पंकज तिवारी ने बताया कि हमारे आसपास पिछले काफी समय से पाइप लाइन का काम चल रहा है, लाल बाग एरिया में, इसमें आए दिन लोगों को काफी परेशानी होती है. यहां पर लोग खुदाई करके चले गए हैं, लेकिन उसके बाद उसे ठीक नहीं करते और सड़क काफी ज्यादा खराब हो चुकी है. यहां पर बाकी अन्य तरह की समस्याएं भी लगातार बनी रहती है.
जनता के हित मे कोई काम नहीं हुआ
एलडीए कर्मचारी संघ के अध्यक्ष एसपी सिंह ने बताया कि 2020 में लखनऊ विकास प्राधिकरण की जो सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी. लैंड बैंक बढ़ाने की, तो उस पर कोई काम नहीं हुआ. एलडीए का लैंड बैंक लगभग शून्य हो चुका है. जितने भी फ्लैट बनाये गए थे. बिना किसी डिमांड सर्वे के बनाए गए थे. उससे लखनऊ विकास प्राधिकरण को आर्थिक क्षति हुई. 2020 में हमने जो पार्कों में पैसे का निवेश किया उसमें भी विकास प्राधिकरण को आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा. रिवर फ्रंट पर हमने मनमानी तरीके से काम किया और पैसा खर्च कर दिया. जबकि वह पूरा प्रोजेक्ट जांच के दायरे में चल रहा था. उसके बाद भी हमने करीब 100 करोड़ से ज्यादा की धनराशि खर्च करके आर्थिक आर्थिक क्षति पहुंचाने का काम किया. इस 2020 में लखनऊ विकास प्राधिकरण के प्रशासनिक स्तर से कोई ऐसा कार्य नहीं हुआ जिससे जनता को या अन्य लोगों को या लखनऊ विकास प्राधिकरण के कर्मचारियों को किसी भी क्षेत्र में फायदा हुआ हो. भ्रष्टाचार समायोजन तमाम सारे घोटाले इस 2020 में जरूर चर्चा में बने रहे. उसमें तमाम लोग लिप्त रहे हैं. इसको बड़ी पारदर्शी तरीके से एलडीए उपाध्यक्ष को सोचना चाहिए. क्योंकि यह विभाग मुख्यमंत्री का सीधा विभाग है. इससे बड़ी खराब छवि बनती है.
अवैध निर्माण पर कठोर कार्रवाई और जिम्मेदारी तय करके कसे शिकंजा
अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई के सवाल पर कहते हैं कि लखनऊ विकास प्राधिकरण के स्तर पर प्राथमिक स्तर पर निर्माण जो शुरू होता है तो उस में लिप्त रहे दोषी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है. निर्माण लगातार बढ़ते चले जाते हैं. उसके बाद जब कंपाउंडिंग की बात आती है, जहां पर प्राधिकरण के आय बढ़ाने की बात होती है. वहां पर कंपाउंडिंग सरकार बंद कर देती है. कोई भी अभियंता कंपाउंडिंग जमा कराने में रुचि नहीं लेते उसे हमारी आर्थिक क्षति होती है. उसकी जगह अधिकारी कर्मचारी अभियंता भ्रष्टाचार करते हैं.
अतिक्रमण अवैध निर्माण से शहर नक्शा विहीन हो गया
पूरा शहर पूरी तरह से नक्शा विहीन हुआ जा रहा है. हर गली- सड़क सकरी होती जा रही हैं और अवैध निर्माण लगातार बढ़ता चला जा रहा है. आवागमन की समस्या लगातार बनी हुई है. इस पर कोई विशेष काम नहीं हो रहा है. सिर्फ कुछ लोगों को प्रताड़ित करके अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की गई और इसकी आड़ में मोटी रकम वसूलने का काम किया गया.
उद्यमियों को लुभाने में सफल रही सरकार तो खूब हुए निवेश
यह जरूर रहा कि साल 2020 में औद्योगिक विकास विभाग ने सरकार की छवि को बेहतर करने का काम किया सरकार के स्तर पर उद्यमियों को दी गई. सहूलियत से बड़े पैमाने पर निवेश के प्रस्ताव आए. उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना के अनुसार अब तक उत्तर प्रदेश में दो लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव पर काम शुरू हो चुका है तो कोविड-19 काल में भी 45 हजार करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव मिले हैं. जिन पर अब काम किया जाना है. राज्य सरकार की तरफ से निवेशकों को लुभाने के लिए तमाम तरह की सहूलियत दी गई, उन्हें सुविधाएं दी गई हैं. बेहतर कानून व्यवस्था के दावे किए गए और बड़े पैमाने पर उद्योग लगाने के लिए निवेश के प्रस्ताव सरकार को दिए गए.
दो लाख करोड़ के निवेश पर काम शुरू
औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने कहा कि उत्तर प्रदेश में पहला इन्वेस्टर समिट हुआ था जो मुझे लगता है कि पूरे देश में ऐसा इन्वेस्टर समिट नहीं हुआ था. हम लोगों ने इन्वेस्टर सम्मिट करके उसे छोड़ नहीं दिया था और हमने उसके बाद ग्राउंड़ ब्रेकिंग सेरेमनी भी की थी. ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी का मतलब मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि जिन इंडस्ट्रीज ने एमओयू साइन किए थे, उनके द्वारा अपनी फैक्ट्री का शिलान्यास जमीन के ऊपर काम किया गया है. उन एमओयू में लगभग 2 लाख करोड़ रुपये की इंडस्ट्रीज के प्रस्ताव हुए थे. उस पर आज की तारीख में काम शुरू हो चुके हैं. उनके ऊपर या तो काम कमर्शियल प्रोडक्शन शुरू हो गया है या फिर कमर्शियल प्रोडक्शन शुरू होने की स्थिति में है.
कोविड के संकट काल में भी मिले 45 हजार करोड़ के निवेश प्रस्ताव
औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने कहा कि इधर कोविड-19 कारण थोड़ी देरी हुई है, लेकिन 2 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव धरातल पर उतरे हैं और इस पर लगातार काम हो रहा है. इसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा कोविड-19 कंट्रोल करने का काम किया गया और उस पर बेहतर तरीके से काम किया गया.
उद्यमियों में को मिला है संदेश यूपी में अच्छे एडमिनिस्ट्रेशन की सरकार
मंत्री महाना दावा करते हैं कि उद्यमियों में यह संदेश गया है कि पूरे देश में उत्तर प्रदेश में एक अच्छे एडमिनिस्ट्रेशन की सरकार है. जहां पर व्यक्ति को सहयोग और उसे संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं. सुरक्षा भी उसे उपलब्ध कराई जाएगी. इन सब बातों को लेकर इसी कोविड काल में करीब 45 हजार करोड रुपये के निवेश के प्रस्ताव हमको मिले हैं.