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सरकारी जमीन के अधिग्रहण मामले में हाईकोर्ट सख्त, LDA वीसी से मांगा हलफनामा - lucknow

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक नजूल जमीन के अधिग्रहण के मामले में एलडीए के वीसी को हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने वीसी को अगली सुनवाई तक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है. इस मामले में अगली सुनवाई 16 जनवरी को होनी है.

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हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच.
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Published : Dec 12, 2019, 10:19 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक नजूल जमीन के अधिग्रहण के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए लखनऊ विकास प्राधिकरण के वीसी को अगली सुनवाई तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है. न्यायालय ने वीसी को चेतावनी भी दी है कि यदि अगली सुनवाई तक हलफनामा नहीं दाखिल होता है, तो उन्हें स्वयं कोर्ट के समक्ष हाजिर होना होगा. मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति अनिल कुमार और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने सैयद मोहम्मद हुसैन की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर दिया है.

न्यायालय पिछली सुनवाई के दौरान ही याचिका को सुओ मोटो याचिका के तौर पर दर्ज करने का निर्देश दे चुकी है. याचिका में शहर स्थित नजूल की एक जमीन के अधिग्रहण के करोड़ों रुपये का मुआवजा एक प्राइवेट बिल्डर को देने का आरोप लगाया गया है. सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया था कि लखनऊ के रामतीर्थ रोड पर गाटा संख्या- 57 की जमीन को अधिग्रहित करने की कार्रवाई वर्ष 1999-2000 में शुरू की गई. यह जमीन एक नजूल लैंड थी, जिसका क्षेत्रफल 86 हजार 483 वर्ग फिट था. इस जमीन को अधिग्रहित करने के बदले में ढाई करोड़ का मुआवजा एक प्राइवेट बिल्डर को 30 अप्रैल 2005 को दे दिया गया. कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश देते हुए पिछली सुनवाई के दौरान ही कहा था कि इस सम्बंध में स्पष्ट नियम हैं कि राज्य सरकार नजूल लैंड का अधिग्रहण नहीं कर सकती है.

इसे भी पढ़ें- अयोध्या भूमि विवाद : SC ने खारिज कीं सभी 18 पुनर्विचार याचिकाएं

कोर्ट ने कहा है कि सरकार अपनी ही जमीनों के लिए न तो अधिग्रहण प्रक्रिया कर सकती है और न ही इसके लिए किसी को मुआवजा दे सकती है. नजूल लैंड के लिए एक प्राइवेट पार्टी को मुआवजा देकर राज्य सरकार और इसके विकास प्राधिकरण ने गैर कानूनी कार्य किया है. सुनवाई के दौरान दलील दी गई कि प्राइवेट बिल्डर को लखनऊ विकास प्राधिकरण के वीसी की अनुमति से ट्रांसफर की गई थी. इस पर कोर्ट ने कहा कि नजूल की जमीन को ट्रांसफर करने का अधिकार विकास प्राधिकरण को नहीं है, बल्कि यह सिर्फ सरकार या कलेक्टर ही कर सकते हैं.

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक नजूल जमीन के अधिग्रहण के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए लखनऊ विकास प्राधिकरण के वीसी को अगली सुनवाई तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है. न्यायालय ने वीसी को चेतावनी भी दी है कि यदि अगली सुनवाई तक हलफनामा नहीं दाखिल होता है, तो उन्हें स्वयं कोर्ट के समक्ष हाजिर होना होगा. मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति अनिल कुमार और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने सैयद मोहम्मद हुसैन की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर दिया है.

न्यायालय पिछली सुनवाई के दौरान ही याचिका को सुओ मोटो याचिका के तौर पर दर्ज करने का निर्देश दे चुकी है. याचिका में शहर स्थित नजूल की एक जमीन के अधिग्रहण के करोड़ों रुपये का मुआवजा एक प्राइवेट बिल्डर को देने का आरोप लगाया गया है. सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया था कि लखनऊ के रामतीर्थ रोड पर गाटा संख्या- 57 की जमीन को अधिग्रहित करने की कार्रवाई वर्ष 1999-2000 में शुरू की गई. यह जमीन एक नजूल लैंड थी, जिसका क्षेत्रफल 86 हजार 483 वर्ग फिट था. इस जमीन को अधिग्रहित करने के बदले में ढाई करोड़ का मुआवजा एक प्राइवेट बिल्डर को 30 अप्रैल 2005 को दे दिया गया. कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश देते हुए पिछली सुनवाई के दौरान ही कहा था कि इस सम्बंध में स्पष्ट नियम हैं कि राज्य सरकार नजूल लैंड का अधिग्रहण नहीं कर सकती है.

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कोर्ट ने कहा है कि सरकार अपनी ही जमीनों के लिए न तो अधिग्रहण प्रक्रिया कर सकती है और न ही इसके लिए किसी को मुआवजा दे सकती है. नजूल लैंड के लिए एक प्राइवेट पार्टी को मुआवजा देकर राज्य सरकार और इसके विकास प्राधिकरण ने गैर कानूनी कार्य किया है. सुनवाई के दौरान दलील दी गई कि प्राइवेट बिल्डर को लखनऊ विकास प्राधिकरण के वीसी की अनुमति से ट्रांसफर की गई थी. इस पर कोर्ट ने कहा कि नजूल की जमीन को ट्रांसफर करने का अधिकार विकास प्राधिकरण को नहीं है, बल्कि यह सिर्फ सरकार या कलेक्टर ही कर सकते हैं.

सरकारी जमीन का अधिग्रहण कर प्राइवेट बिल्डर को दे दिया गया मुआवजा  
हाईकोर्ट सख्त, स्वतः संज्ञान याचिका पर एलडीए वीसी से मांगा जवाब
विधि संवाददाता 
लखनऊ
। हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक नजूल जमीन के अधिग्रहण के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए, लखनऊ विकास प्राधिकरण के वीसी को अगली सुनवाई तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है न्यायालय ने वीसी को चेतावनी भी दी है कि यदि अगली सुनवाई तक हलफनामा नहीं दाखिल होता तो उन्हें को स्वयं कोर्ट के समक्ष हाजिर होना होगा मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी  
    यह आदेश न्यायमूर्ति अनिल कुमार और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने सैयद मोहम्मद हुसैन की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर पारित किया
न्यायालय पिछली सुनवाई के दौरान ही याचिका को सुओ मोटो याचिका के तौर पर दर्ज करने का निर्देश दे चुकी है याचिका में शहर में स्थित नजूल की एक जमीन का अधिग्रहण करवा के, करोड़ों रुपये का मुआवजा एक प्राइवेट बिल्डर को देने का आरोप लगाया गया है सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया था कि लखनऊ के रामतीर्थ रोड पर गाटा संख्या- 57 की जमीन को अधिग्रहित करने की कार्यवाही वर्ष 1999-2000 में शुरू की गई। यह जमीन एक नजूल लैंड थी व इसका क्षेत्रफल 86 हजार 483 वर्ग फुट था। इस जमीन को अधिग्रहित करने के बदले में ढाई करोड़ का मुआवजा एक प्राइवेट बिल्डर को 30 अप्रैल 2005 को दे दिया गया। कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश देते हुए, पिछली सुनवाई के दौरान ही कहा था कि इस सम्बंध में स्पष्ट नियम हैं कि राज्य सरकार नजूल लैंड का अधिग्रहण सरकार नहीं कर सकती।
   
कोर्ट ने कहा कि सरकार अपनी ही जमीनों के लिए न तो अधिग्रहण प्रक्रिया कर सकती है और न ही इसके लिए किसी को मुआवजा दे सकती है। नजूल लैंड के लिए एक प्राइवेट पार्टी को मुआवजा देकर राज्य सरकार और इसके विकास प्राधिकरण ने गैर कानूनी कार्य किया है। सुनवाई के दौरान दलील दी गई कि प्राइवेट बिल्डर को लखनऊ विकास प्राधिकरण के वीसी की अनुमति से ट्रांसफर की गई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि नजूल की जमीन को ट्रांसफर करने का अधिकार विकास प्राधिकरण को नहीं है, यह सिर्फ सरकार या कलक्टर कर सकते हैं


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Chandan Srivastava
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