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20 वर्षों तक अनुकम्पा नियुक्ति के विवादों का निपटारा नहीं करने पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी - माल एवेन्यू लखनऊ

हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अनुकंपा नियुक्ति मामले में बड़ा आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के आवेदनों पर सुस्त तरीके से नहीं बल्कि उचित समय के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए.

अनुकंपा नियुक्ति पर हाईकोर्ट की टिप्पणी,
अनुकंपा नियुक्ति पर हाईकोर्ट की टिप्पणी,
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Published : Jul 27, 2023, 10:29 PM IST


लखनऊ: हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अनुकंपा नियुक्ति के मामलों को वर्षों तक लंबित रखने व अप्रासंगिक कारणों से मृतक कर्मचारियों के आश्रितों के दावों को अस्वीकार करने की प्रथा पर तीखी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के आवेदनों पर सुस्त तरीके से नहीं बल्कि उचित समय के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए. कोर्ट ने इन टिप्पणियों के साथ ही यूपी सहकारी ग्राम्य विकास बैंक लिमिटेड के एक कर्मचारी जिसकी सिविल डेथ 15 वर्ष पूर्व घोषित की जा चुकी थी. उसके पुत्र की अनुकंपा नियुक्ति पर 8 सप्ताह में निर्णय लेने का आदेश दिया है.

यह आदेश जस्टिस इरशाद अली की एकल पीठ ने अनुराग कुमार गुप्ता की याचिका पर पारित किया. याची का कहना था कि याची के पिता वर्ष 1971 से यूपी सहकारी ग्राम्य विकास बैंक में लेखा लिपिक के पद पर कार्यरत थे. बाद में वह माल एवेन्यू लखनऊ शाखा में हेड एकाउंटेंट के पद पर प्रोन्नत हुए. वर्ष 1990 में उनका निलंबन हुआ और वर्ष 1995 में उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. बर्खास्तगी के वक्त आदेश को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया और बैंक पर एक हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया. 27 जनवरी 1997 को याची के पिता अपना निर्वाह भत्ता लेने माल एवेन्यू स्थित मुख्यालय गए. लेकिन घर वापस नहीं आए. उनके लापता होने के सम्बंध में कोर्ट के आदेश से एफआईआर भी दर्ज हुई. लेकिन बहुत प्रयासों के बाद भी उनका पता नहीं चला. 14 मई 2008 को गाजीपुर के सिविल जज ने उनकी सिविल डेथ घोषित कर दी.

जिसमें याचिका का विरोध करते हुए कहा गया था कि 1997 से कोई जानकारी न दिए जाने के कारण याची के पिता को वर्ष 2004 में ही बर्खास्त कर दिया गया था. लिहाजा याची को अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती है. कोर्ट ने मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मृतक आश्रितों के आवेदनों पर समय रहते विचार तक नहीं किया जाता और वे वर्षों तक ऐसे ही पड़े रहते हैं. ऐसे में आवेदकों को हाईकोर्ट का रुख करना पड़ता है और इस कोर्ट के निर्देश के बाद आवेदनों को तुच्छ और अप्रासंगिक आधारों पर अस्वीकार कर दिया जाता है. जिसके बाद पुनः मृतक कर्मचारी के आश्रित को हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करनी पड़ती है.

न्यायमूर्ति इरशाद अली ने अपने आदेश में कहा कि मैनें देखा है कि दो-दो दशकों तक अनुकंपा नियुक्ति से सम्बंधित विवादों का निपटारा ही नहीं किया जाता है. न्यायालय ने कहा कि यदि अनुकंपा नियुक्ति से सम्बंधित नीति का पालन करना है तो यह आवश्यक है कि आवेदनों पर उचित समय में विचार करना होगा.

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लखनऊ: हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अनुकंपा नियुक्ति के मामलों को वर्षों तक लंबित रखने व अप्रासंगिक कारणों से मृतक कर्मचारियों के आश्रितों के दावों को अस्वीकार करने की प्रथा पर तीखी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के आवेदनों पर सुस्त तरीके से नहीं बल्कि उचित समय के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए. कोर्ट ने इन टिप्पणियों के साथ ही यूपी सहकारी ग्राम्य विकास बैंक लिमिटेड के एक कर्मचारी जिसकी सिविल डेथ 15 वर्ष पूर्व घोषित की जा चुकी थी. उसके पुत्र की अनुकंपा नियुक्ति पर 8 सप्ताह में निर्णय लेने का आदेश दिया है.

यह आदेश जस्टिस इरशाद अली की एकल पीठ ने अनुराग कुमार गुप्ता की याचिका पर पारित किया. याची का कहना था कि याची के पिता वर्ष 1971 से यूपी सहकारी ग्राम्य विकास बैंक में लेखा लिपिक के पद पर कार्यरत थे. बाद में वह माल एवेन्यू लखनऊ शाखा में हेड एकाउंटेंट के पद पर प्रोन्नत हुए. वर्ष 1990 में उनका निलंबन हुआ और वर्ष 1995 में उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. बर्खास्तगी के वक्त आदेश को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया और बैंक पर एक हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया. 27 जनवरी 1997 को याची के पिता अपना निर्वाह भत्ता लेने माल एवेन्यू स्थित मुख्यालय गए. लेकिन घर वापस नहीं आए. उनके लापता होने के सम्बंध में कोर्ट के आदेश से एफआईआर भी दर्ज हुई. लेकिन बहुत प्रयासों के बाद भी उनका पता नहीं चला. 14 मई 2008 को गाजीपुर के सिविल जज ने उनकी सिविल डेथ घोषित कर दी.

जिसमें याचिका का विरोध करते हुए कहा गया था कि 1997 से कोई जानकारी न दिए जाने के कारण याची के पिता को वर्ष 2004 में ही बर्खास्त कर दिया गया था. लिहाजा याची को अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती है. कोर्ट ने मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मृतक आश्रितों के आवेदनों पर समय रहते विचार तक नहीं किया जाता और वे वर्षों तक ऐसे ही पड़े रहते हैं. ऐसे में आवेदकों को हाईकोर्ट का रुख करना पड़ता है और इस कोर्ट के निर्देश के बाद आवेदनों को तुच्छ और अप्रासंगिक आधारों पर अस्वीकार कर दिया जाता है. जिसके बाद पुनः मृतक कर्मचारी के आश्रित को हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करनी पड़ती है.

न्यायमूर्ति इरशाद अली ने अपने आदेश में कहा कि मैनें देखा है कि दो-दो दशकों तक अनुकंपा नियुक्ति से सम्बंधित विवादों का निपटारा ही नहीं किया जाता है. न्यायालय ने कहा कि यदि अनुकंपा नियुक्ति से सम्बंधित नीति का पालन करना है तो यह आवश्यक है कि आवेदनों पर उचित समय में विचार करना होगा.

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