लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (lucknow bench of allahabad high court ) ने अतिक्रमण के खिलाफ दाखिल एक जनहित याचिका (pil filed against encroachment) को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि इस बारे में जब उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता में प्रावधान है तो याची को उसी के तहत उपचार प्राप्त करना चाहिए. न्यायालय ने जनहित याचिका दाखिल करने के लिए याची की प्रमाणिकता पर भी टिप्पणी की है.
यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने लवकुश यादव की जनहित याचिका पर पारित किया. याची लवकुश यादव का कहना था कि अम्बेडकरनगर जनपद के टांडा तहसील अंतर्गत ग्राम इल्तिफातगंज में नाले पर कुछ लोग अवैध निर्माण कर रहे हैं. अतिक्रमण की वजह से नाले के बहाव में रुकावट आएगी और इलाके में पानी भरने की सम्भावना रहेगी. याचिका में यह भी दलील दी गई कि नाला जिस जमीन पर है, वह किसी की व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं है, बल्कि सरकारी जमीन है.
याची ने आरोप लगाया कि अतिक्रमण करने वाला व्यक्ति नगर पंचायत का चेयरमैन है, इसीलिए कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. सुनवाई के दौरान याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील ने दलील दी कि वर्तमान याचिका जनहित याचिका के तौर पर दाखिल की गई है, जबकि इसमें उठाए गए मुद्दे से वंचित समाज प्रभावित नहीं है. कहा गया कि याची यूपी राजस्व संहिता की धारा 67 के तहत सक्षम प्राधिकारी के समक्ष इस मामले को उठा सकता है.
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न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात अपने आदेश में कहा कि इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं है कि धारा 67 के तहत याची के पास वर्तमान मामले में उपचार प्राप्त करने का विकल्प है. इसके अलावा याची ने खुद को समाजसेवी बताया है, जबकि उसने इस सम्बंध में कोई विवरण उपलब्ध नहीं कराया है. ऐसे में एक जनहित याचिका दाखिल करने के लिए याची ने अपनी प्रमाणिकता का उल्लेख नहीं किया है.