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लव जिहाद और क्रूर हत्याएं समाज के पतन की ओर इशारा

एक बार फिर लव जिहाद का मुद्दा गर्म है. हाल ही में हुईं कुछ घटनाएं यह सोचने के लिए विवश करती हैं कि आखिर ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं? क्रूरता की हदें पार करतीं यह घटनाएं बताती हैं कि हमारे समाज का किस तरह पतन हो रहा है. इस तरह की घटनाओं को चाहे जो भी नाम दे दिया जाए, लेकिन इन के कारणों की विवेचना आसान नहीं है. पढ़ें उत्तर प्रदेश के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी की यह विशेष स्टोरी...

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Published : Nov 18, 2022, 11:01 PM IST

लखनऊ : एक बार फिर लव जिहाद का मुद्दा गर्म है. हाल ही में हुईं कुछ घटनाएं यह सोचने के लिए विवश करती हैं कि आखिर ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं? क्रूरता की हदें पार करतीं यह घटनाएं बताती हैं कि हमारे समाज का किस तरह पतन हो रहा है. इस तरह की घटनाओं को चाहे जो भी नाम दे दिया जाए, लेकिन इन के कारणों की विवेचना आसान नहीं है. कोई एक कारण नहीं है, जिससे यह घटनाएं होती हैं. इसके लिए कोई एक ही व्यक्ति जिम्मेदार भी नहीं माना जा सकता. समय आ गया है कि हम गंभीरता से चिंतन करें और उन कारणों को खोजें जो ऐसी घटनाओं को जन्म देते हैं.



दिल्ली का आफताब पूनावाला (Aftab Poonawala of Delhi) द्वारा किया गया कृत्य हो अथवा लखनऊ के सूफियान का मामला. घटनाओं में जिस तरह वहशीपन और निर्ममता (savagery and ruthlessness) दिखाई दी है, वह बताती है कि दोनों ही युवक मानसिक विकृति और समाज पर कलंक हैं. सभ्य समाज और इंसानियत से इनका कोई नाता नहीं. अन्यथा जिसके साथ जीने-मरने की कसमें खाई गई हों, अपने जीवन का कीमती वक्त गुजारा हो, उसे कोई कैसे टुकड़ों में काटकर जंगल में फेंक सकता है. कैसे अपनी बात मनवाने के लिए कोई किसी लड़की को चार मंजिल से नीचे धकेल सकता है. इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले युवक निश्चितरूप से मानसिक रोगी तो थे ही, उन्हें अपने परिवारों से संस्कार भी नहीं मिले.

मोबाइल (Mobile) के इस दौर में प्रायः लोग अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं. वह क्या करते हैं, कैसे लोगों से मिलते जुलते हैं, उनकी दिनचर्या क्या है, पैसे कहां से आ रहे हैं. इन सब बातों को जानने के लिए परिवार के पास फुर्सत ही नहीं है या उन्होंने बच्चों को ऐसे ही छोड़ दिया है. यही बच्चे धीरे-धीरे परिवार के संस्कारों और समाज से दूर हो रहे हैं. फिल्मों और इंटरनेट के जरिए इनमें यौन कुंठाएं भर रही हैं. ऐसे बिगड़े युवक फिर वही करते हैं, जो आफताब या सूफियान ने किया. इतना सब कुछ होता रहा और इनके माता-पिता और परिवारीजनों को कोई भनक क्यों नहीं लगी. माता-पिता कोई भी हों, किसी भी जाति वर्ग के हों, नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चे गलत राह पर चले जाएं. हालांकि उन्हीं की लापरवाही और अनदेखी बच्चों का जीवन बिगाड़ रही है.


लव जिहाद (Love jihad) अथवा इस तरह की क्रूर घटनाओं में लड़कियों को भी कम दोषी नहीं माना जा सकता. लड़कियां किसी भी संबंध में पड़ने के बाद अपने घरवालों को विश्वास में नहीं लेतीं. एक व्यक्ति, जिसे वह बहुत थोड़े समय से जानती हैं, के लिए अपने माता-पिता और भाई बहन को एक क्षण में छोड़ कर कैसे चल देती हैं. उन्हें भी तो अपनी मर्यादा का मान रखना चाहिए. इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज के दौर में लड़कियों को अधिक अधिकार और स्वच्छंदता मिली है, लेकिन इसका उन्हें फायदा उठाना चाहिए न कि दुरुपयोग करना चाहिए. अभिभावकों को भी यह जान लेना चाहिए कि एक उम्र ऐसी होती है, जब बच्चे अपने निर्णय सही तरीके से नहीं ले सकते. वही समय होता है जब उन पर कड़ी निगाह रखनी चाहिए. कहीं न कहीं माता-पिता की ओर से भी त्रुटि हो जाती है. जिसका खामियाजा उन्हें बाद में भुगतना पड़ता है. इसलिए युवा होती अपनी बेटियों पर अनुशासित नजर जरूर रखें, ताकि वह भटकने ना पाएं. उनसे दोस्ताना व्यवहार रखें, ताकि वह अपने मन की बात परिवारीजनों से साझा कर सकें. यदि उनसे अधिक कठोर व्यवहार रखा गया, तो इस तरह के मसलों में वह कभी खुलकर बात नहीं करेंगी. ऐसे में गलत कदम उठ जाएं तो हैरानी की बात नहीं.


परिवारों में मोबाइल क्रांति का गहरा दुष्प्रभाव भी पड़ा है. तमाम ऐसे परिवार हैं, जहां अभिभावक, बच्चे और बुजुर्ग, सब एक दूसरे से बातचीत करने के बजाए मोबाइल पर ज्यादा वक्त गुजारते हैं. अपने परिवार का वक्त मोबाइल को देना, कतई गलत है. इससे आपस में संवाद घटता है और एक दूसरे के विषयों में कोई रुचि नहीं लेता. मोबाइल पर सोशल मीडिया और इंटरनेट कई बुरी आदतें भी लेकर आता है. जिसका सर्वाधिक कुप्रभाव युवाओं पर ही पड़ता है. इसलिए परिवार में एक अनुशासन बनाना चाहिए कि कैसे घर में मोबाइल का कम से कम उपयोग किया जाए. जहां सब लोग इकट्ठे हों वहां बिना जरूरत के कोई फोन का उपयोग न करें. एक दूसरे के विषय में जानने के लिए समय निकालें और उत्सुक भी रहें. इससे भी स्थितियां बेहतर होंगी. प्रदेश में लगभग दो वर्ष में में लव जिहाद और धर्मांतरण के 268 मुकदमे दर्ज किए जाना इस ओर इशारा करता है कि सब कुछ सामान्य तो नहीं है. निश्चितरूप से कुछ लोग साजिश कर समाज में दरार डालना चाहते हैं. ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरूरत है. यही नहीं इन लोगों को शिक्षित करना भी जरूरी है, क्योंकि बड़ी संख्या में ऐसे लोग किसी के बहकावे में आकर घटनाओं को अंजाम देते हैं. जो भी हो देश, प्रदेश और समाज के लिए यह घटनाएं चिंता का सबब हैं.

यह भी पढ़ें : बरेली जोन में धर्मांतरण कराने वालों पर पुलिस सख्त, अब तक 115 आरोपी भेजे गए जेल

लखनऊ : एक बार फिर लव जिहाद का मुद्दा गर्म है. हाल ही में हुईं कुछ घटनाएं यह सोचने के लिए विवश करती हैं कि आखिर ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं? क्रूरता की हदें पार करतीं यह घटनाएं बताती हैं कि हमारे समाज का किस तरह पतन हो रहा है. इस तरह की घटनाओं को चाहे जो भी नाम दे दिया जाए, लेकिन इन के कारणों की विवेचना आसान नहीं है. कोई एक कारण नहीं है, जिससे यह घटनाएं होती हैं. इसके लिए कोई एक ही व्यक्ति जिम्मेदार भी नहीं माना जा सकता. समय आ गया है कि हम गंभीरता से चिंतन करें और उन कारणों को खोजें जो ऐसी घटनाओं को जन्म देते हैं.



दिल्ली का आफताब पूनावाला (Aftab Poonawala of Delhi) द्वारा किया गया कृत्य हो अथवा लखनऊ के सूफियान का मामला. घटनाओं में जिस तरह वहशीपन और निर्ममता (savagery and ruthlessness) दिखाई दी है, वह बताती है कि दोनों ही युवक मानसिक विकृति और समाज पर कलंक हैं. सभ्य समाज और इंसानियत से इनका कोई नाता नहीं. अन्यथा जिसके साथ जीने-मरने की कसमें खाई गई हों, अपने जीवन का कीमती वक्त गुजारा हो, उसे कोई कैसे टुकड़ों में काटकर जंगल में फेंक सकता है. कैसे अपनी बात मनवाने के लिए कोई किसी लड़की को चार मंजिल से नीचे धकेल सकता है. इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले युवक निश्चितरूप से मानसिक रोगी तो थे ही, उन्हें अपने परिवारों से संस्कार भी नहीं मिले.

मोबाइल (Mobile) के इस दौर में प्रायः लोग अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं. वह क्या करते हैं, कैसे लोगों से मिलते जुलते हैं, उनकी दिनचर्या क्या है, पैसे कहां से आ रहे हैं. इन सब बातों को जानने के लिए परिवार के पास फुर्सत ही नहीं है या उन्होंने बच्चों को ऐसे ही छोड़ दिया है. यही बच्चे धीरे-धीरे परिवार के संस्कारों और समाज से दूर हो रहे हैं. फिल्मों और इंटरनेट के जरिए इनमें यौन कुंठाएं भर रही हैं. ऐसे बिगड़े युवक फिर वही करते हैं, जो आफताब या सूफियान ने किया. इतना सब कुछ होता रहा और इनके माता-पिता और परिवारीजनों को कोई भनक क्यों नहीं लगी. माता-पिता कोई भी हों, किसी भी जाति वर्ग के हों, नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चे गलत राह पर चले जाएं. हालांकि उन्हीं की लापरवाही और अनदेखी बच्चों का जीवन बिगाड़ रही है.


लव जिहाद (Love jihad) अथवा इस तरह की क्रूर घटनाओं में लड़कियों को भी कम दोषी नहीं माना जा सकता. लड़कियां किसी भी संबंध में पड़ने के बाद अपने घरवालों को विश्वास में नहीं लेतीं. एक व्यक्ति, जिसे वह बहुत थोड़े समय से जानती हैं, के लिए अपने माता-पिता और भाई बहन को एक क्षण में छोड़ कर कैसे चल देती हैं. उन्हें भी तो अपनी मर्यादा का मान रखना चाहिए. इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज के दौर में लड़कियों को अधिक अधिकार और स्वच्छंदता मिली है, लेकिन इसका उन्हें फायदा उठाना चाहिए न कि दुरुपयोग करना चाहिए. अभिभावकों को भी यह जान लेना चाहिए कि एक उम्र ऐसी होती है, जब बच्चे अपने निर्णय सही तरीके से नहीं ले सकते. वही समय होता है जब उन पर कड़ी निगाह रखनी चाहिए. कहीं न कहीं माता-पिता की ओर से भी त्रुटि हो जाती है. जिसका खामियाजा उन्हें बाद में भुगतना पड़ता है. इसलिए युवा होती अपनी बेटियों पर अनुशासित नजर जरूर रखें, ताकि वह भटकने ना पाएं. उनसे दोस्ताना व्यवहार रखें, ताकि वह अपने मन की बात परिवारीजनों से साझा कर सकें. यदि उनसे अधिक कठोर व्यवहार रखा गया, तो इस तरह के मसलों में वह कभी खुलकर बात नहीं करेंगी. ऐसे में गलत कदम उठ जाएं तो हैरानी की बात नहीं.


परिवारों में मोबाइल क्रांति का गहरा दुष्प्रभाव भी पड़ा है. तमाम ऐसे परिवार हैं, जहां अभिभावक, बच्चे और बुजुर्ग, सब एक दूसरे से बातचीत करने के बजाए मोबाइल पर ज्यादा वक्त गुजारते हैं. अपने परिवार का वक्त मोबाइल को देना, कतई गलत है. इससे आपस में संवाद घटता है और एक दूसरे के विषयों में कोई रुचि नहीं लेता. मोबाइल पर सोशल मीडिया और इंटरनेट कई बुरी आदतें भी लेकर आता है. जिसका सर्वाधिक कुप्रभाव युवाओं पर ही पड़ता है. इसलिए परिवार में एक अनुशासन बनाना चाहिए कि कैसे घर में मोबाइल का कम से कम उपयोग किया जाए. जहां सब लोग इकट्ठे हों वहां बिना जरूरत के कोई फोन का उपयोग न करें. एक दूसरे के विषय में जानने के लिए समय निकालें और उत्सुक भी रहें. इससे भी स्थितियां बेहतर होंगी. प्रदेश में लगभग दो वर्ष में में लव जिहाद और धर्मांतरण के 268 मुकदमे दर्ज किए जाना इस ओर इशारा करता है कि सब कुछ सामान्य तो नहीं है. निश्चितरूप से कुछ लोग साजिश कर समाज में दरार डालना चाहते हैं. ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरूरत है. यही नहीं इन लोगों को शिक्षित करना भी जरूरी है, क्योंकि बड़ी संख्या में ऐसे लोग किसी के बहकावे में आकर घटनाओं को अंजाम देते हैं. जो भी हो देश, प्रदेश और समाज के लिए यह घटनाएं चिंता का सबब हैं.

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