वाराणसीः भाद्रपद शुक्ल षष्ठी को लोलार्क षष्ठी के नाम से जाना जाता है. जो इस वर्ष बुधवार 4 सितम्बर को पड़ रही है. मान्यता है कि काशी स्थित लोलार्क कुंड पर स्नान करने से निसंतान दंपति को पुत्र की प्राप्ति होती है. संतान प्राप्ति की मान्यता के चलते हर साल लोलार्क छठ पर इस कुंड में डुबकी लगाने वालों की भारी भीड़ होती है.
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स्नान मात्र से मिलता है पुत्र प्राप्ति का वरदान
पूरे देश से निसंतान दंपति इस कुंड में स्नान करने आते हैं और पुत्र प्राप्ति का वरदान लेकर जाते हैं. इस कुंड में स्नान करने वाले निसंतान दंपति स्नान के बाद कपड़े कुंड में ही छोड़ देते हैं. लोलार्क षष्ठी पर लाखों की संख्या में होने वाली भीड़ के मद्देनजर जिला प्रशासन ने तैयारी पूरी कर ली है. जगह-जगह पर बैरिकेडिंग कर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम प्रशासन की तरफ से किए गए हैं.
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भगवान सूर्य देव शिवलिंग स्वरूप में हैं विराजमान
मान्यता है कि शिव भक्त विद्युन्माली दैत्य को जब सूर्य ने हरा दिया तब सूर्य पर क्रोधित हो भगवान रुद्र त्रिशूल हाथ में लेकर उनकी ओर दौड़े. उस समय सूर्य भागते-भागते पृथ्वी पर काशी में आकर गिरे. इसी से वहां उनका नाम लोलार्क पड़ा. कुंड के ऊपर भगवान सूर्य देव शिवलिंग स्वरूप में विराजमान हैं. मान्यता यह भी है कि यहीं पर सूर्य की पहली किरण पड़ती है और यहां स्नान करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति के साथ रोगों से मुक्ति मिलती है.
लोलार्क छठ महापर्व पर देश सहित विदेशों से भी भक्त यहां स्नान करने आते हैं. पुत्र रत्न की प्राप्ति की मनोकामना करते हैं और पुत्र रत्न प्राप्त होने पर यहां पर उसका मुंडन संस्कार भी कराया जाता है.
-विजय मिश्र, पंडित