लखनऊ: भारत के पांचवें प्रधानमंत्री रहे चरण सिंह को आज भी उनके सरकारी पदों से ज्यादा किसान नेता के तौर पर याद किया जाता है. किसानों में उनकी पकड़ का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में आज के नेता भी उनके नाम की कमाई खा रहे हैं.
चरण सिंह के जन्मदिन को किसान दिवस के रूप में मनाता है देश
पेशे से वकील और राजनीतिक कार्यकर्ता रहे चौधरी साहब की शान इतनी है कि 23 दिसंबर यानी चौधरी साहब जन्मदिन को किसान दिवस के तौर पर मनाया जाता है. यह किसान दिवस सरकारी बाद में हुआ, पहले जनता ने ही इस दिन को खास बनाने का ऐलान कर दिया था. करे भी क्यों न, शेर का जिगरा रखने वाला नेता, जो अंग्रेजी शासन में भी किसानों की कर्जमाफी करवा दे. आखिर उसके लिए यह एक दिन तो बनता ही है.
चौधरी चरण सिंह का जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था. उन्होंने 1923 में विज्ञान से स्नातक की एवं 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की. कानून में प्रशिक्षित चौधरी साहब ने गाजियाबाद से अपने पेशे की शुरुआत की. वे 1929 में मेरठ आ गए और जब गांधी जी ने स्वाधीनता के लिए बिगुल फूंका तो चरण सिंह भी कांग्रेस में शामिल हो गए. गांधी जब दांडी में नमक बना रहे थे, तो युवा चरण सिंह ने भी हिंडन में नमक बनाकर अंग्रेजों को चुनौती दी. वहीं 1940 में अंग्रेजी राज की नीतियों का विरोध करने पर एक साल की जेल की सजा भी भुगती.
पं. नेहरू से मतभेद के बाद छोड़ी कांग्रेस
देश आजाद हुआ तो चौधरी चरण सिंह की राजनीति भी रंग लाने लगी. यूनाइटेड प्रोविंस से लेकर उत्तर प्रदेश की विधानसभा चुनावों में लगातार चुने गए. उस दौर के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों की परिषद में उनका पद और कद भी बढ़ता गया. मगर 1967 के आते-आते उनका पंडित नेहरू से मतभेद हो गया और उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भारतीय क्रांति दल का गठन किया. जनाधार का आलम यह था कि भारतीय क्रांति दल गठन किया और कुछ दिन के अंदर ही यूपी पहली गैर कांग्रेसी सरकार गठित की. इसके बाद जब यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए, तो जनता ने अभूतपूर्व समर्थन के साथ विजयी बनाकर लखनऊ की कुर्सी पर बिठा दिया.
जनता सरकार में पहले गृहमंत्री फिर प्रधानमंत्री बने
लंबे वक्त तक यूपी सीएम के रूप में किसान व गरीब हितैषी कामों से चौधरी साहब, यूपी ही नहीं देश भर के किसानों के दिलों में बसने वाले नेता बन गए. 1975 आते-आते इंदिरा गांधी ने पीएम की कुर्सी पर खतरा देख देश पर इमरजेंसी थोप दी. चौधरी साहब को इस तानाशाही के विरोधी होने के नाते लोकनायक जयप्रकाश नारायण और सभी लोकतंत्र सेनानियों के साथ जेल में डाल दिया. दो साल संघर्ष के बाद जब देश में लोकसभा चुनाव हुए इंदिरा गांधी की गद्दी चली गई और कई दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी ने सरकार गठित की. इस सरकार में चौधरी साहब देश के गृहमंत्री बने. लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था. भानुमति के कुनबे में कलह पैदा हो गई. इसी दौरान कांग्रेस चौधरी साहब को पीएम पद के लिए समर्थन के लिए राजी हो गई.
अंतत: देश के इतिहास में पहली बार किसानों का कोई नेता पीएम की गद्दी पर बैठा. उनका कार्यकाल कांग्रेस की धोखाधड़ी की वजह से कुछ महीने का ही रहा. अब तक उनकी उम्र 80 के करीब पहुंच चुकी थी. उसके बाद राजनीतिक गतिविधियां कम होने लगीं. इसी बीच 1987 के मई महीने की 29 तारीख को वह दिन आया जब इस किसान नेता ने अपने प्राण त्याग दिए. भले ही आज वे हमारे बीच न हों लेकिन उनका राजनीतिक सफर देश की आने वाली सरकारों को किसान और गरीब हितैषी नीति के लिए प्रेरित करता है. ऐसी राजनीतिक हस्ती को ईटीवी भारत नमन करता है.