लखनऊ: ऐसे तो एलडीए में हजारों की संख्या में अवैध निर्माण के मामले में हैं. लेकिन चुनिंदा बिल्डरों को टारगेट बनाकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. पूरे शहर में हर ओर रिहायशी इमारतों के साथ ही बड़े अपार्टमेंट और बाजार बनाए जा रहे हैं. मगर प्राधिकरण केवल नोटिस देने के अलावा और कुछ नहीं कर रहा है. दूसरी ओर एलडीए से उन निवेशकों की भी शिकायत है जो खड़ी हो रही इमारतों में फ्लैट खरीद लेते हैं, लेकिन बाद में उन्हें इमारत के अवैध होने की सूचना मिलती है और आखिरकार प्राधिकरण की ओर से इमारत को ध्वस्त किए जाने से उनकी गाढ़ी कमाई बर्बाद हो जाती है. वहीं, कुछ बिल्डरों को बचाने के लिए रिश्वत का गंदा खेल खेला जाता है.
विकास प्राधिकरण की ओर से वैसे तो इस तरह के करीब 5000 आदेश दिए जा चुके हैं. जिनमें से अधिकांश अब भी फाइलों में दबे हुए हैं. एलडीए में ध्वस्तीकरण के आदेश जरूर होते हैं, मगर कार्रवाई नहीं की जाती है. इसी तरह से अब पिछले करीब 20 दिनों में 15 और अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने के आदेश दिए गए हैं. इनमें से अधिकतर बिल्डरों पर आरोप है कि उन्होंने जो नक्शा पास करवाया था, उसके हिसाब से निर्माण नहीं किया गया है. इसलिए अवैध निर्माणों को पहले सील किया गया और अब नगर विकास अधिनियम के तहत ध्वस्तीकरण का आदेश दिया गया है.
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इन इलाकों में अवैध निर्माणों की भरमार: अलीगंज कालोनी,गोमतीनगर, जानकीपुरम, कानपुर रोड,त्रिवेणी नगर, नक्खास, चौक, अमीनाबाद, कैसरबाग, सीतापुर रोड, कुर्सी रोड, महानगर, सुल्तानपुर रोड, फैजाबाद रोड, हरदोई रोड और शहर के अधिकांश इलाकों में बिल्डर छोटे-छोटे प्लॉट पर कमर्शियल कॉम्प्लेक्स और अपार्टमेंट का निर्माण करवाते जा रहे हैं. मगर एलडीए के अफसर यहां आंख मूंदे हुए हैं. हालांकि, हो-हल्ला की सूरत में केवल अवैध निर्माण से संबंधित नोटिस काट दिए जाते हैं.
ऐसे चलता है घूस का खेल: अवैध निर्माण को लेकर घूस का एक पूरा मकड़जाल है, जो बिल्डिंग की साइट पर पिलर खड़े होने के साथ ही शुरू हो जाता है. प्राधिकरण का सुपरवाइजर जिसकी जिम्मेदारी अवैध निर्माण की जानकारी जेई तक पहुंचाने की होती है वह सबसे अहम भूमिका निभाता है. वह यहां जेई और बिल्डर के बीच घूस की डीलिंग के लिए पुल का काम करता है. इसके बाद फ्लोर के हिसाब से घूस तय होती है. जितने अधिक माले का निर्माण किया जाता है, उतनी अधिक रिश्वत होती है. वहीं, हर माह की घूस राशि तय होती है. इसके अलावा जब-जब एक फ्लोर की स्लैब पड़ती है, उसका रेट अलग से फिक्स होता है. इस तरह से एक साल तक एक हजार वर्ग फीट पर होने वाले चार मंजिल के अवैध निर्माण के लिए करीब 15 से 20 लाख रुपये की रिश्वत ली जाती है. जिसका हिस्सा सुपरवाइजर से लेकर जेई और एई तक को जाता है. इसके अलावा ऊपर के अफसर को जेई और एई के स्तर से अलग से मासिक पेशकश की जाती है.
लखनऊ विकास प्राधिकरण में बिल्डिंग गिराने के आदेश तो बहुत होते हैं. मगर जिन अभियंताओं के रहते हुए ये अवैध निर्माण पनपते रहे, उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जाता है. अवैध निर्माणों को लेकर सालों से इंजीनियरों के खिलाफ कोई भी एक्शन नहीं लिया जाता है. अवैध निर्माणों को लेकर एलडीए उपाध्यक्ष अक्षय त्रिपाठी का स्पष्ट आदेश है कि इंजीनियर अपनी-अपनी जोन निर्माणों को देखकर अवैध होने की दशा में उनको रोकें. वहीं, शहर में निर्माण को लेकर उपाध्यक्ष अक्षय कुमार त्रिपाठी ने कहा कि हमने करीब 480 अवैध इमारतों की सूची बना ली है. जिनको हम डिमोलिश करेंगे. यह सूची बनाने का काम हमने आचार संहिता के दौरान किया था. आचार संहिता के लागू होने के कारण हम यह कार्यवाही नहीं कर पा रहे थे. मगर अब इसमें कोई रोक नहीं है और लगातार एक्शन लिया जाएगा. अवैध निर्माण करने वालों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा.
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