ETV Bharat / state

मूसा बाग: आखिरी जंग की दास्तां बयां करतीं हैं दरो-दीवारें

'माना कि सिर पर तेरे छत मयस्सर नहीं, पर दरो-दीवारें बयां करतीं हैं तेरी दिलेरी की दास्तां', ये लाइनें 'मूसा बाग' (musa bagh) के लिए ठीग बैठती हैं. यह बेजोड़ इमारत देश के खातिर न्योछावर हो गई. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के दौरान गोला-बारूद से इस महल के वजूद पर हमला हुआ, लेकिन इसकी आन-बान-शान नहीं मिटी. आगे जानिए मूसा बाग की ऐतिहासिक गाथा...

ऐतिहासिक 'मूसा बाग' की अमर कहानी.
ऐतिहासिक 'मूसा बाग' की अमर कहानी.
author img

By

Published : Aug 18, 2021, 8:53 AM IST

लखनऊ: देश और दुनिया में लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतें बहुत प्रसिद्ध हैं, लेकिन, जंग-ए-आजादी के दौर में 'मूसा बाग' (musa bagh) की इस बेजोड़ इमारत पर गोला-बारूद ने कई घाव दिए, जो आज तक न भरे. मूसा बाग (musa bagh) राजधानी लखनऊ में हरि नगर चौराहे से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. ईटीवी भारत की टीम ने इस ऐतिहासिक इमारत के बारे में जानने की कोशिश की, तो कई रोचक तथ्य सामने आए, जिसे कई लोग आज भी नहीं जानते हैं.

ऐतिहासिक 'मूसा बाग' की अमर कहानी.
यहां मौजूद है मूसा बाग का किला
बालागंज चौराहे से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है हरी नगर. हरि नगर चौराहे से 1 किलोमीटर की दूरी पर मूसा बाग (musa bagh) का किला है. ईटीवी भारत की टीम जंगल के रास्ते से मूसा बाग किला पहुंची. पहुंचने पर देखा की अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत के दौरान इस किले पर गोला बारूद से किए गए हमले के बावजूद इसकी आन-बान-शान अभी मिटी नहीं है. खंडहर इमारत आज भी अपनी दिलेरी की दास्तां बयां कर रही है. क्षतिग्रस्त किले के अंदर बड़ी-बड़ी झाड़ियां उगी हैं. गुंबदों पर एक अलग तरह की नक्काशी आज भी मौजूद है.
इस दौर में हुआ था इसका निर्माण
जानकार बताते हैं साल 1803 से 1804 के बीच इसका निर्माण आजमुद्दौला ने नवाब सआदत अली खान के लिए करवाया था. इसके नाम को लेकर जानकार बताते हैं कि अलग-अलग कहानियां है. कहा यह भी जाता है कि इसका निर्माण फ्रेंच आर्किटेक्ट क्लाउड मार्टीन की ओर से बनाए गए लामार्ट कॉलेज की बिल्डिंग कांस्टेंशिया और छतर मंजिल की वास्तुकला से प्रभावित होकर कराया गया था. इस महल की चहारदीवारी कमाल की थी. चौड़ी-चौड़ी दीवारें आज भी मौजूद हैं. महल के चारों ओर खूबसूरत बाग बगीचे थे. नवाब अपने विदेशी मेहमानों का दिल बहलाने के लिए यहां लेकर आते थे.
16 मार्च को हुई थी भयंकर लड़ाई
जानकार बताते हैं कि लगातार युद्ध के बाद भी बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) ने साहस नहीं छोड़ा था. अंग्रेजी सेना लगातार हावी हो रही थी, जिसके बाद वह पेश बंदी करने में लग गईं. इसी दौरान वह अपने महल से निकलकर शहर में दूसरी जगह रुककर सेनाओं को एकत्र करने लगीं और एक बार फिर आलमबाग में मोर्चा संभाला. बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) की यह लड़ाई 16 मार्च को हुई थी, जो बहुत भयंकर थी, लेकिन भाग्य ने बेगम का साथ नहीं दिया और वह पराजित हो गईं. इस लड़ाई में नेपाल के राजा जंग बहादुर की गोरखा सेना ने बहुत बढ़ चढ़कर भाग लिया था.
बेगम ने नहीं स्वीकार की पराजय
जानकार बताते हैं कि आलमबाग में हार के बाद भी बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) ने पराजय स्वीकार नहीं की. उन्होंने अंग्रेजों को लखनऊ में पराजित कर भगाने का अंतिम प्रयास 19 मार्च 1858 को फिर किया. 19 मार्च को बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) व मौलवी अहमदुल्लाह शाह ने मूसा बाग (musa bagh) का अंतिम मोर्चा संभाला, जहां भयंकर युद्ध लड़ा गया, मगर अवध की सेनाएं हार गईं. मूसा बाग (musa bagh) की लड़ाई ही लखनऊ की अंतिम लड़ाई थी, जिसमें पराजित होने के बाद बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) बिरजीस कदर को लेकर लखनऊ को छोड़कर सीतापुर की ओर चली गईं. 6 मार्च से 15 मार्च तक घमासान युद्ध चला. 21 मार्च 1858 को ब्रिटिश सेनाओं ने लखनऊ को अपने अधीन कर लिया. मौलवी अहमदुल्लाह शाह अंत तक बहादुरी के साथ लड़ते रहे. बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) लखनऊ छोड़ने को मजबूर हो गईं. जानकार बताते हैं कि इस महल की खूबी इसके अंदर बना तहखाना है. तहखाने के अंदर किसी जमाने में खजाने का भंडार था.
कैप्टन बाबा की दरगाह
मूसा बाग (musa bagh) के किले को लेकर अफवाहों का भी बाजार गर्म रहता है. कोई इसको भूतिया किला कहता है, तो कोई कहता है कि रात में अलग-अलग तरीके की आवाजें आती हैं. कई लोग इसे अफवाह भी बताते हैं. मूसा बाग महल के ठीक पीछे कैप्टन बाबा व सिगरेट वाले बाबा की एक मजार है. बताया जाता है कि इस मजार पर लोग अगरबत्ती धूप के अलावा सिगरेट भी चढ़ाते हैं. जानकार बताते हैं कि लड़ाई के दौरान अंग्रेज कैप्टन वेल्स की मौत हो गई थी, जिसके बाद उनको यही दफनाया गया था. यह मजार कैप्टन वेल्स की है. लोग आज भी यहां मन्नतें मांगने आते हैं.

लखनऊ: देश और दुनिया में लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतें बहुत प्रसिद्ध हैं, लेकिन, जंग-ए-आजादी के दौर में 'मूसा बाग' (musa bagh) की इस बेजोड़ इमारत पर गोला-बारूद ने कई घाव दिए, जो आज तक न भरे. मूसा बाग (musa bagh) राजधानी लखनऊ में हरि नगर चौराहे से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. ईटीवी भारत की टीम ने इस ऐतिहासिक इमारत के बारे में जानने की कोशिश की, तो कई रोचक तथ्य सामने आए, जिसे कई लोग आज भी नहीं जानते हैं.

ऐतिहासिक 'मूसा बाग' की अमर कहानी.
यहां मौजूद है मूसा बाग का किला
बालागंज चौराहे से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है हरी नगर. हरि नगर चौराहे से 1 किलोमीटर की दूरी पर मूसा बाग (musa bagh) का किला है. ईटीवी भारत की टीम जंगल के रास्ते से मूसा बाग किला पहुंची. पहुंचने पर देखा की अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत के दौरान इस किले पर गोला बारूद से किए गए हमले के बावजूद इसकी आन-बान-शान अभी मिटी नहीं है. खंडहर इमारत आज भी अपनी दिलेरी की दास्तां बयां कर रही है. क्षतिग्रस्त किले के अंदर बड़ी-बड़ी झाड़ियां उगी हैं. गुंबदों पर एक अलग तरह की नक्काशी आज भी मौजूद है.
इस दौर में हुआ था इसका निर्माण
जानकार बताते हैं साल 1803 से 1804 के बीच इसका निर्माण आजमुद्दौला ने नवाब सआदत अली खान के लिए करवाया था. इसके नाम को लेकर जानकार बताते हैं कि अलग-अलग कहानियां है. कहा यह भी जाता है कि इसका निर्माण फ्रेंच आर्किटेक्ट क्लाउड मार्टीन की ओर से बनाए गए लामार्ट कॉलेज की बिल्डिंग कांस्टेंशिया और छतर मंजिल की वास्तुकला से प्रभावित होकर कराया गया था. इस महल की चहारदीवारी कमाल की थी. चौड़ी-चौड़ी दीवारें आज भी मौजूद हैं. महल के चारों ओर खूबसूरत बाग बगीचे थे. नवाब अपने विदेशी मेहमानों का दिल बहलाने के लिए यहां लेकर आते थे.
16 मार्च को हुई थी भयंकर लड़ाई
जानकार बताते हैं कि लगातार युद्ध के बाद भी बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) ने साहस नहीं छोड़ा था. अंग्रेजी सेना लगातार हावी हो रही थी, जिसके बाद वह पेश बंदी करने में लग गईं. इसी दौरान वह अपने महल से निकलकर शहर में दूसरी जगह रुककर सेनाओं को एकत्र करने लगीं और एक बार फिर आलमबाग में मोर्चा संभाला. बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) की यह लड़ाई 16 मार्च को हुई थी, जो बहुत भयंकर थी, लेकिन भाग्य ने बेगम का साथ नहीं दिया और वह पराजित हो गईं. इस लड़ाई में नेपाल के राजा जंग बहादुर की गोरखा सेना ने बहुत बढ़ चढ़कर भाग लिया था.
बेगम ने नहीं स्वीकार की पराजय
जानकार बताते हैं कि आलमबाग में हार के बाद भी बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) ने पराजय स्वीकार नहीं की. उन्होंने अंग्रेजों को लखनऊ में पराजित कर भगाने का अंतिम प्रयास 19 मार्च 1858 को फिर किया. 19 मार्च को बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) व मौलवी अहमदुल्लाह शाह ने मूसा बाग (musa bagh) का अंतिम मोर्चा संभाला, जहां भयंकर युद्ध लड़ा गया, मगर अवध की सेनाएं हार गईं. मूसा बाग (musa bagh) की लड़ाई ही लखनऊ की अंतिम लड़ाई थी, जिसमें पराजित होने के बाद बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) बिरजीस कदर को लेकर लखनऊ को छोड़कर सीतापुर की ओर चली गईं. 6 मार्च से 15 मार्च तक घमासान युद्ध चला. 21 मार्च 1858 को ब्रिटिश सेनाओं ने लखनऊ को अपने अधीन कर लिया. मौलवी अहमदुल्लाह शाह अंत तक बहादुरी के साथ लड़ते रहे. बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) लखनऊ छोड़ने को मजबूर हो गईं. जानकार बताते हैं कि इस महल की खूबी इसके अंदर बना तहखाना है. तहखाने के अंदर किसी जमाने में खजाने का भंडार था.
कैप्टन बाबा की दरगाह
मूसा बाग (musa bagh) के किले को लेकर अफवाहों का भी बाजार गर्म रहता है. कोई इसको भूतिया किला कहता है, तो कोई कहता है कि रात में अलग-अलग तरीके की आवाजें आती हैं. कई लोग इसे अफवाह भी बताते हैं. मूसा बाग महल के ठीक पीछे कैप्टन बाबा व सिगरेट वाले बाबा की एक मजार है. बताया जाता है कि इस मजार पर लोग अगरबत्ती धूप के अलावा सिगरेट भी चढ़ाते हैं. जानकार बताते हैं कि लड़ाई के दौरान अंग्रेज कैप्टन वेल्स की मौत हो गई थी, जिसके बाद उनको यही दफनाया गया था. यह मजार कैप्टन वेल्स की है. लोग आज भी यहां मन्नतें मांगने आते हैं.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.