लखनऊ : भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू. ये नाम भारतीय इतिहास के सबसे बड़े योद्धा और शहीदों में शुमार हैं. योद्धा क्यों? जनाब भारत के लिए लड़ने वाला हर वीर योद्धा ही कहलाएगा. भगत सिंह की बात करें तो उन्होंने अपने जीवन में गरीबी और दुख देखा. 27 सितंबर 1907 में जन्में भगत सिंह के जन्म के कुछ ही दिन के अंदर उनके पिता और चाचा को जेल से छुड़वा लिया गया. उनके पिता किशन सिंह और चाचा दोनों ही अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे.
क्या हुआ था आखिरी 12 घंटों में...
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फांसी पहले 24 मार्च को होनी थी और बाद में फांसी की तारीख बदलकर 23 मार्च कर दी गई. उनकी मौत के पहले सभी कैदियों को उनके बैरक में भेज दिया गया. शाम 7 बजे फांसी का समय निर्धारित किया गया. भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से कहा था कि वो फांसी से पहले उनके लिए अपने घर से खाना लेकर आएं, लेकिन बेबे जेल तक पहुंच ही नहीं पाए और उससे पहले ही भगत सिंह को फांसी दे दी गई.
पंजाब सफाई मजदूर फेडरेशन ने 2016 में एक फोटो रिलीज की थी. इस फोटो में भगत सिंह और सफाई मजदूर बेबे थे जिनसे भगत सिंह ने खाना लाने को कहा था. चित्र में भगत सिंह को फांसी से पहले बैरक की सफाई करने वाली सफाई सेविका बेबे के हाथ से रोटी खाने की इच्छा प्रकट करते दिखाया गया है.
भगत सिंह ने अपने वकील प्राण नाथ मेहता द्वारा दी गई किताब पढ़ रहे थे, लेकिन कभी उसे खत्म नहीं कर पाए. भगत सिंह के लिए मेहता जी रिवॉल्यूशनरी लेनिन लेकर आए थे. इस किताब को भगत सिंह कितना पढ़ पाए ये तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन यकीनन वो इस किताब को खत्म करना चाहते थे.
भगत सिंह लेनिन से काफी प्रेरित थे. उनका मानना था कि भारत को सिर्फ आजादी दिलाना ही नहीं बल्कि मानव को हर तरह के अभिषाप जैसे धर्म, बेरोजगारी, भूख से मुक्ति दिलाना ही उनका मकसद था. मार्क्सवाद के आइकन लेनिन ने वर्किंग क्लास और बाकी दबी कुचली जातियों के उद्धार का बीड़ा उठाया था. अगर देखा जाए तो भगत सिंह अपने आप में भारत के लेनिन थे.
आर. के. कौशिक (IAS) के द्वारा लिखे गए आर्टिकल (After hanging, rewards) में एक और जानकारी दी गई है. भगतसिंह ने मरने से पहले चार आर्टिकल लिखे थे जो उनके वकील प्राण नाथ मेहता ने चोरी से जेल से बाहर निकाले थे. ये आर्टिकल बाद में भगत सिंह के दोस्त बिजॉय कुमार को दिए गए थे. बिजय कुमार क्योंकि देश में नहीं थे तो उन्होंने ये आर्टिकल अपने किसी दोस्त को जालंधर में दे दिए थे. उस दोस्त के घर पर भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के दौरान रेड पड़ने की आशंका थी और इसी हड़बड़ी में उन आर्टिकल्स को जला दिया गया था.
भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू को 23 मार्च 1931 शाम के करीब 7.30 बजे फांसी दे दी गई. अपनी किताब 'मैं नास्तिक क्यों हूं' में भगत सिंह ने लिखा, 'जिंदगी तो अपने दम पर ही जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं.' वाकई भगत सिंह ने जिंदगी अपने दम पर जी और इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गए.