लखनऊ : उत्तर प्रदेश भाषा विभाग की ओर से भाषा उत्सव का बड़े ही धूमधाम से आयोजन किया गया. इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव भाषा विभाग जितेन्द्र कुमार ने कहा कि तमिल के प्रख्यात कवि सुब्रमण्यम भारती के जन्म दिवस 11 दिसंबर को भारत सरकार ने भारतीय भाषा दिवस घोषित करते हुए भारतीय भाषा उत्सव के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने बताया कि इस वर्ष 75 दिवसीय भारतीय भाषा उत्सव 28 सितंबर से 11 दिसंबर तक मनाया जा रहा है. इसकी शुरुआत आज से हुई है. उन्होंने कहा कि चिन्नास्वामी सुब्रमण्यम भारती एक भारतीय लेखक, कवि और पत्रकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और तमिलनाडु के समाज सुधारक थे. जो महाकवि भारती के रूप में लोकप्रिय हुए. चिन्नास्वामी सुब्रमण्यम भारती ने भारतीय भाषाओं को उनकी अपनी अमिट पहचान दिलाने में काफी अहम भूमिका निभाई है.
उत्तर प्रदेश भाषा विभाग की ओर से उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम में आयोजित भारतीय भाषा उत्सव में बहुभाषीय राष्ट्रीय विविधता में एकता विषय पर संगोष्ठी में वक्ताओं ने भाषा के महत्व पर चर्चा की. साथ ही बहुभाषीय कवि सम्मेलन में हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, उड़िया, भोजपुरी, अवधी पंजाबी, सिंधी और बुन्देली कवियों ने रचनाएं सुनाईं. कवि सम्मेलन में आकर्षण का केन्द्र वरिष्ठ कवि पदमश्री डाॅ. अशोक चक्रधर रहे. डाॅ. अशोक चक्रधर ने कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए अपनी लोकप्रिय कविता डरते झिझकते सहमते सकुचाते हम अपने होने वाले ससुर जी के पास आए, बहुत कुछ कहना चाहते थे पर कुछ बोल ही नहीं पाए...रचना सुनाई तो सभागार तालियों से गूंज उठा.
हास्य कवि डॉ. सर्वेश अस्थाना ने एक दस्तक दे गई वो सांझ की बेला द्वार खोला तो हवा थी और मैं बिल्कुल अकेला कविता का पाठ किया. अजहर इकबाल उर्दू शायरी का से रू-ब-रू कराते हुए घुटन सी होने लगी उस के पास जाते हुए मैं खुद से रूठ गया हूं. डॉ. अशोक अज्ञानी ने अवधी में आपनि भाषा आपनि बानी अम्मा हैं भूली बिसरी कथा किहानी अम्मा हैं पूरे घर का भारु उठाए खोपड़ी पर जस ट्राली मा परी कमानी अम्मा हैं का काव्य पाठ किया. समारोह के दूसरे सत्र में आमंत्रित वक्ता प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि विविध भाषाओं को भारतीय सांस्कृतिक चेतना के रूप में जानने समझने व अपनाने की जरुरत है. पद्मश्री डॉ. विद्याबिन्दु सिंह ने कहा कि भारतीय भाषाओं के परस्पर प्रचार की स्तरीय व श्रेष्ठ पुस्तकों को अनुवाद से सम्प्रेषणीय बनाया जाए. प्रो आजाद मिश्र, संस्कृत ने कहा कि संस्कृत को प्रतिनिधित्व उनके अनुसार जितनी भारतीय भाषाएंरएँ हैं, उनका स्वरूप अलग है. लेकिन संस्कृत से अनुप्रणित हैं, विभिन्नता में एकता है धर्म का उद्देश्य सबमें समान है.
गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय विवि. में संस्कृत नाटक प्रशांत राघवम का किया गया मंचन