लखनऊ: राजधानी में जरूरतमंदों को ठहरने के लिए अभी फुटपाथ और पुल ही सहारा लेना पड़ेगा. बारिश आने को है, जिसके चलते प्रवासी श्रमिकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. इसका सबसे बड़ा कारण बहुमंजिला रेन बसेरा न बन पाना माना जा रहा है. दरअसल, राजधानी में बहुमंजिला रैन बसेरा बनाने के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण को जगह नहीं मिल रही है. बीते साल इसके बनाने के लिए कार्ययोजना बनाई गई. बोर्ड बैठक से प्रस्ताव भी पास हो गया, लेकिन जगह फाइनल न होने से काम ही नहीं शुरू हो सका.
बनना है बहुमंजिला रैन बसेरा
मिली जानकारी के अनुसार, राजधानी में करीब पच्चीस हजार वर्ग फीट की जमीन पर बहुमंज़िला रैन बसेरा बनना है. इस जमीन की कीमत बीस करोड़ से अधिक बताई जा रही है. इसके तैयार होने से जरूरतमंदों को काफी सहूलियत भी मिल सकेगी. अपने तरह का यह पहला रैन बसेरा होगा. यहां ठहरने वाले लोगों को जरूरतमंद की चीजें खरीदने के लिए बाहर नहीं जाना होगा. सब कुछ वहीं उपलब्ध कराया जाएगा. इसके लिए दुकानें भी रहेंगी.
एलडीए ने ऐशबाग में नजूल की जमीन पर रैन बसेरा बनाने के लिए प्रस्ताव तैयार किया था. बाद में चारबाग के पास दुर्गापुरी में नगर निगम की जमीन चिह्नित की गई, लेकिन नगर निगम ने जमीन देने से इनकार कर दिया. रैन बसेरा बनने से पहले ही लटक गया. अब एक बार फिर ऐशबाग स्थित नजूल की जमीन को चिह्नित किया गया है. हालांकि, प्राधिकरण को यहां रैन बसेरा बनाने के लिए पहले शासन से अनुमति लेनी होगी.
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एलडीए के पास नहीं है जमीनों का मालिकाना हक
बताया जा रहा है कि नजूल जमीनों का मालिकाना हक एलडीए के पास नहीं है. मात्र केयर टेकर होने के नाते प्राधिकरण यहां निर्माण की अनुमति नहीं ले सकता है. ऐसे में शासन से अनुमति मिलने के बाद ही काम शुरू हो सकेगा. नजूल की कई लाख वर्ग फीट जमीन से कब्जा हटाया जा चुका है. ऐशबाग में ही कई हजार वर्ग फीट जमीन है. इसी तरह चौक, हनुमान सेतु, सीतापुर रोड पर जमीने हैं. इन जमीनों का इस्तेमाल नहीं होने पर अधिकारियों को फिर कब्जा होने की आंशका है. जमीनों का क्षेत्रफल सहित ब्योरा तैयार कराया गया है. इनके सदुपयोग के लिए शासन को अवगत कराया गया है. यहां दोबारा कब्जे न हो, इसके लिए संबंधित जोन के इंजीनियरों को निर्देश दिए गए हैं.