लखनऊ : 'कितना है बदनसीब ज़फर दफ्न के लिए, दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में.' भारत के आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने जब ये शेर लिखा था, तब किसी ने सोचा ना होगा कि कभी ये शेर नबाबों की नगरी लखनऊ में ये हकीकत बन जाएगा. लखनऊ में कोरोना संक्रमण की स्थिति भयावह होती जा रही है. गुरुवार 15 अप्रैल को लखनऊ में 5183 शहरवासी कोरोना की चपेट में आए. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 15 अप्रैल को लखनऊ में रहने वाले सिर्फ 26 लोगों की मौत हो गई. मगर, गुरुवार रात को लखनऊ में दो श्मशान घाटों पर लगातार चिताएं जलती रहीं. 108 लाशों का अंतिम संस्कार किया गया. इसके अलावा शहर के कब्रिस्तानों में करीब 60 शवों को दफन किया गया. यानी उत्तर प्रदेश की राजधानी में आंकड़ों में दर्ज मौतों से करीब सात गुणा अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. श्मशानों और कब्रिस्तानों में शवों की अंतिम विधि के लिए लगी लाइन लोगों में शक पैदा कर रही है कि क्या सरकारी महकमे कोरोना से हो रही मौतों के आंकड़े सही नहीं बता रहे. या फिर क्या कोरोना के मरीज अस्पतालों तक नहीं पहुंच पा रहे. या फिर मरीजों की सही तरीके से जांच नहीं हो रही है. इस कारण मौतों का सरकारी आंकड़ा असल हालात से बहुत कम हैं.
लखनऊ के नगर आयुक्त अजय द्विवेदी के अनुसार, गुरुवार रात लखनऊ के भैसा कुंड और गुलाला घाट पर 108 शवों का अंतिम संस्कार किया गया. श्मशानों से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि इन दिनों श्मशान घाटों पर जगह नहीं मिलने के कारण चबूतरे और खाली पड़े जगहों पर भी शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ श्मशानों में शवों की संख्या अचानक बढ़ गई है, बल्कि कब्रिस्तानों में भी सुपुर्द-ए-खाक के लिए लाइन लगी हुईं है. कब्रिस्तान कमेटी के इमाम अब्दुल मतीन इमाम ने बताया कि लखनऊ में छोटे-बड़े मिलाकर कुल 100 कब्रिस्तान हैं, इन कब्रिस्तानों में आम दिनों में अमूमन कुल 5 से 6 लोगों को दफनाया जाता था. इस समय औसतन 60 से 70 लोगों को प्रतिदिन सुपुर्द-ए-खाक किया जा रहा है. दफन के लिए ज्यादा शव ऐशबाग स्थित सुन्नी समाज के कब्रिस्तान और तालकटोरा स्थित शिया समुदाय के कर्बला में लाए जा रहे है.
इतनी लाशें आ रही हैं कि कब्र खोदने के रेट बढ़ गए हैं
गुरुवार को लखनऊ निवासी अदनान दानिश के पिता की मौत हो गई. वह अपने पिता के शव को दफनाने के लिए ऐशबाग के कब्रिस्तान पहुंचे थे. अदनान दानिश ने बताया कि अचानक इतनी तादाद में हो रही मौतों के कारण इंतजार करना पड़ रहा है. कब्र खोदने वाले पहले एक कब्र खोदने के लिए 800 लेते थे, अब कब्र खोदने वाले 1500 से 2500 रुपये की मांग कर रहे हैं. दुख इसका है कि जो लोग ज्यादा पैसे दे रहे हैं, उनके परिजनों की लाश के लिए कब्र सबसे पहले खोदी जा रही है.
शव वाहन के लिए वसूले जा मनमाने पैसे
अदनान दानिश ने बताया कि उनके पिता की मौत मेडिकल कॉलेज में हुई थी. वहां से ऐशबाग का कब्रिस्तान महज एक किलोमीटर दूर है. जब उन्होंने मेडिकल कॉलेज के पास शव ढोने वाले वाहन की बुकिंग की तो उनसे कब्रिस्तान तक जाने के लिए 2200 रुपये की डिमांड की. मजबूरी में उन्हें यह राशि देनी भी पड़ी.
मौतों के बावजूद कब्रिस्तानों में जगह की कमी नहीं
कब्रिस्तान कमेटी के इमाम अब्दुल मतीन इमाम के अनुसार, इतनी तादाद में शव दफनाने के बाद भी लखनऊ के कब्रिस्तानों में जगह की कमी नहीं है, क्योंकि कब्रिस्तान में कई कब्र पुरानी हो चुकी है तो जगहें खाली हैं और दूसरे शवों को दफनाया जा सकता है.
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ईसाई कब्रिस्तान का हाल, 15 दिन में 15 दफन
राजधानी लखनऊ में पिछले 15 दिनों के भीतर ईसाई समाज के 15 लोगों की कोरोना संक्रमण से मौत हुई. फादर जॉन डिसूजा का कहना है कि कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ रहा है. जब संक्रमित मरीज की मौत हो रही हैं, उसे दफनाने के लिए सिर्फ पांच लोग कब्रिस्तान जा रहे हैं.