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जानिए क्यों खरीदे जाते हैं धनतेरस पर बर्तन...

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Published : Nov 13, 2020, 5:55 AM IST

धनतेरस के पर्व पर बाजारों में खूब रौनक रहती है. इस दिन लोग कुछ न कुछ जरूर खरीदते हैं. ईटीवी भारत के संवाददाता ने आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा से बात कर धनतेरस के पर्व के वैज्ञानिक आधार को जाना.

धनतेरस के पर्व पर बाजारों में रौनक
धनतेरस के पर्व पर बाजारों में रौनक

लखनऊ: हिंदू धर्म में पर्व और त्योहारों का आयोजन यूं ही नहीं किया जाता. उनके पीछे वैज्ञानिक आधार भी हैं. जैसे धनतेरस पर्व व्यक्ति के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है, लेकिन समय बदलने के साथ-साथ लोगों ने इसे अर्थ से जोड़ दिया. सही मायने में असली पूंजी तो व्यक्ति का स्वास्थ्य ही है फिर भी अब लोगों का झुकाव स्वास्थ्य को भुलाकर अर्थ के प्रति हो गया है. धनतेरस के वैज्ञानिक आधार को जानने के लिए ईटीवी भारत के संवाददाता ने आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा से बात की.

जानकारी देते आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा.
आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा कहते हैं कि केवल धनतेरस ही नहीं बल्कि पूरा पांच दिवसीय दिवाली का पर्व दुनिया के लिए स्वास्थ्य के संबंध में आयोजित किया जाता है. इसमें स्वच्छता की बात होती है. इस पर्व में आने वाले जाड़े से निपटने के लिए तैयारी की जाती है. गर्म चीजें खाने के लिए सलाह दी जाती है. पहले घरों में गोबर से सफाई की जाती थी, अब पक्के फर्श होने की वजह से धुलाई की जाती है, कुल मिलाकर स्वच्छता की बात को प्रमुखता से शामिल किया गया है.
धनतेरस के दिन घर आते थे वैद्य
डॉ अजय दत्त शर्मा ने कहा कि सारे वैद्य धनवंतरी का स्वरूप हैं. लोग उनके पास लोक स्वास्थ्य की कामना के साथ जाते थे. उनसे परामर्श लेते थे. उनसे अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराते थे. वैद्य नाड़ी परीक्षण के बाद वात, पित्त और कफ के आधार पर स्वास्थ्य की समीक्षा करके इलाज करते हैं. कुछ ऐसी बीमारियां जो जल्द ठीक होने वाली नहीं होतीं. इसके लिए उन्हें रसायन चीजें भी दी जाती थी। यह सब करने के बाद मरीजों और उनके परिवार के लिए घर जाकर अगले छह माह के लिए खाका तैयार किया जाता था.
मिट्टी के बर्तन बदलने की थी प्रथा
आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा ने बताया कि पहले मिट्टी के बर्तनों में भोजन बनता था. मेटलिक चीजें नहीं के बराबर उपयोग में लाई जाती थीं. उपयोग में लाए जाने वाले मेटलिक बर्तन गंदे हो जाते थे. पूरे साल भोजन पकाने की वजह से उनमें गंदगी भर जाती थी. इसलिए स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए साल में एक बार धनतेरस को बर्तन बदले जाने की व्यवस्था शुरू की गई थी. इस दिन मिट्टी के बर्तन बदल जाते और समृद्ध परिवारों में मेटलिक बर्तन बदले जाते थे.
अब तो खरीदारी करना स्टेटस सिंबल बन गया
आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा वे कहा कि स्वच्छता और स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर हमारे यहां जो बर्तन बदले जाने की प्रथा थी, अब वह धीरे-धीरे स्टेटस सिंबल बन गया है. कोई चांदी के बर्तन तो कोई सोने के बर्तन खरीद रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि धनतेरस के दिन बर्तन सिर्फ स्वच्छता के लिहाज से ही खरीदे जाते थे. क्योंकि यह कहीं ना कहीं हमारे स्वास्थ्य के लिए हितकर थे. बाजार के चलते धनतेरस पर्व ने और आगे का रूप ले लिया है .लोग गहने खरीदने लगे हैं और आज के दिन सोने-चांदी जैसी धातुएं खरीदने लगे हैं.

लखनऊ: हिंदू धर्म में पर्व और त्योहारों का आयोजन यूं ही नहीं किया जाता. उनके पीछे वैज्ञानिक आधार भी हैं. जैसे धनतेरस पर्व व्यक्ति के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है, लेकिन समय बदलने के साथ-साथ लोगों ने इसे अर्थ से जोड़ दिया. सही मायने में असली पूंजी तो व्यक्ति का स्वास्थ्य ही है फिर भी अब लोगों का झुकाव स्वास्थ्य को भुलाकर अर्थ के प्रति हो गया है. धनतेरस के वैज्ञानिक आधार को जानने के लिए ईटीवी भारत के संवाददाता ने आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा से बात की.

जानकारी देते आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा.
आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा कहते हैं कि केवल धनतेरस ही नहीं बल्कि पूरा पांच दिवसीय दिवाली का पर्व दुनिया के लिए स्वास्थ्य के संबंध में आयोजित किया जाता है. इसमें स्वच्छता की बात होती है. इस पर्व में आने वाले जाड़े से निपटने के लिए तैयारी की जाती है. गर्म चीजें खाने के लिए सलाह दी जाती है. पहले घरों में गोबर से सफाई की जाती थी, अब पक्के फर्श होने की वजह से धुलाई की जाती है, कुल मिलाकर स्वच्छता की बात को प्रमुखता से शामिल किया गया है.
धनतेरस के दिन घर आते थे वैद्य
डॉ अजय दत्त शर्मा ने कहा कि सारे वैद्य धनवंतरी का स्वरूप हैं. लोग उनके पास लोक स्वास्थ्य की कामना के साथ जाते थे. उनसे परामर्श लेते थे. उनसे अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराते थे. वैद्य नाड़ी परीक्षण के बाद वात, पित्त और कफ के आधार पर स्वास्थ्य की समीक्षा करके इलाज करते हैं. कुछ ऐसी बीमारियां जो जल्द ठीक होने वाली नहीं होतीं. इसके लिए उन्हें रसायन चीजें भी दी जाती थी। यह सब करने के बाद मरीजों और उनके परिवार के लिए घर जाकर अगले छह माह के लिए खाका तैयार किया जाता था.
मिट्टी के बर्तन बदलने की थी प्रथा
आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा ने बताया कि पहले मिट्टी के बर्तनों में भोजन बनता था. मेटलिक चीजें नहीं के बराबर उपयोग में लाई जाती थीं. उपयोग में लाए जाने वाले मेटलिक बर्तन गंदे हो जाते थे. पूरे साल भोजन पकाने की वजह से उनमें गंदगी भर जाती थी. इसलिए स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए साल में एक बार धनतेरस को बर्तन बदले जाने की व्यवस्था शुरू की गई थी. इस दिन मिट्टी के बर्तन बदल जाते और समृद्ध परिवारों में मेटलिक बर्तन बदले जाते थे.
अब तो खरीदारी करना स्टेटस सिंबल बन गया
आयुर्वेद के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ अजय दत्त शर्मा वे कहा कि स्वच्छता और स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर हमारे यहां जो बर्तन बदले जाने की प्रथा थी, अब वह धीरे-धीरे स्टेटस सिंबल बन गया है. कोई चांदी के बर्तन तो कोई सोने के बर्तन खरीद रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि धनतेरस के दिन बर्तन सिर्फ स्वच्छता के लिहाज से ही खरीदे जाते थे. क्योंकि यह कहीं ना कहीं हमारे स्वास्थ्य के लिए हितकर थे. बाजार के चलते धनतेरस पर्व ने और आगे का रूप ले लिया है .लोग गहने खरीदने लगे हैं और आज के दिन सोने-चांदी जैसी धातुएं खरीदने लगे हैं.
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