लखनऊ : पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से भारतीय जनता पार्टी में कई ऐसे मौके आए हैं, जब यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या पार्टी अनिर्णय की स्थिति में पहुंच गई है. कभी हर विषय में बेबाक और त्वरित फैसले के लिए पहचानी जाने वाली पार्टी में यदि किसी भी निर्णय में देर होती है, तो सवाल उठेंगे ही. मार्च 2022 में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के 25 मार्च को मंत्रिपरिषद का गठन हुआ, जिसमें तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को मंत्री बनाया गया था. वह अपना कार्यकाल भी पूरा कर चुके थे, इसलिए नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति होनी थी. इस काम में काफी विलंब हुआ और ठीक पांच माह बाद 25 अगस्त 2022 को भूपेंद्र सिंह चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद शुरू हुई संगठन में बदलाव की कवायद एक साल से भी लंबी चली. 15 सितंबर 2023 को जिला अध्यक्षों के नामों की घोषणा हुई तब भी देरी के लिए तमाम सवाल उठे. अब चर्चा इस बात की है कि संगठन के अन्य पद कब भरे जाएंगे, इसका कोई पता नहीं. मंत्रिपरिषद विस्तार का भी यही हाल है. कई बार चर्चा-परिचर्चा हुई पर नतीजा नहीं निकला. यही कारण है कि लोगों में पार्टी और सरकार में फैसले लेने में हो रही देरी पर लोग खुलकर बात करने लगे हैं.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं 'इस समस्या को दो आधार पर देखा जाना चाहिए. एक तो पार्टी के स्तर पर और दूसरा सरकार के स्तर पर. जहां तक पार्टी के स्तर की बात है, तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति में काफी विलंब हुआ. वहीं अब संगठन का विस्तार भी नहीं हो पा रहा है. वहीं मंत्रिमंडल विस्तार में भी विलंब की बात सभी देख रहे हैं. जहां तक पार्टी का मामला है, तो सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश जनसंख्या और लोकसभा सीटों के आधार पर देश का सबसे बड़ा राज्य है. सबसे ज्यादा सांसद यहां से चुने जाते हैं. सबसे ज्यादा विधायक भी हमारे राज्य से ही चुने जाते हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति बहुत उलझी हुई और जटिल है. इसमें निर्णय लेने वाले कई केंद्र हैं. केंद्रीय नेतृत्व की बात करें तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ ही गृहमंत्री अमित शाह की भी निर्णयों में अहम भागीदारी होती है. इसलिए पार्टी के स्तर पर संगठन के विस्तार में जो विलंब हो रहा है, वह अच्छा तो नहीं है, क्योंकि इससे कहीं न कहीं गलत संकेत ही जाता है. इसके पीछे का कारण यही है कि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व इसमें निर्णायक भूमिका में है और जब वह समय निकाल कर चर्चा कर पाएंगे, तभी फैसले होंगे. सब जगह सामंजस्य बिठाना वाकई समस्या वाली बात है.'
प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं 'यदि सरकार की बात करें, तो मंत्रिपरिषद विस्तार में देरी पार्टी और सरकार दोनों को ही नुकसान पहुंचा सकता है. सरकार सीधे जनता के प्रति जवाबदेह होती है. जहां तक सरकार की बात हो तो उसे जनता के सामने अपने काम दिखाने होते हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मुख्य ध्यान कानून व्यवस्था पर है. इसके अलावा भी कुछ विषय हैं, जहां पर प्रदेश सरकार कोई समझौता नहीं करती है. हां पार्टी के स्तर पर जो विलंब है, वह अलग बात है. सरकार और प्रशासनिक दृष्टिकोण से कोई कमजोरी नहीं है. यदि आम जनता से जुड़े मुद्दों की सुनवाई होती रहे, तो कोई समस्या नहीं है. पार्टी में क्या हो रहा है, यह आम आदमी का विषय नहीं है. हां, सरकार का हर कदम आम जनता के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है. इसलिए नेतृत्व को प्रदेश के मंत्रिमंडल में विस्तार को नहीं टालना चाहिए. इससे सरकार का कामकाज और भी अच्छा होगा.'