लखनऊ : लंबे अंतराल के बाद पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के पहले चरण का समापन हुआ. पार्टी जल्द ही इस यात्रा का दूसरा चरण भी उत्तर प्रदेश से आरंभ होने वाला है, हालांकि इससे पहले भी कई बड़ी यात्राएं देश के जनमानस ने देखी हैं. आज से ठीक चालीस साल पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी कन्याकुमारी से दिल्ली तक ऐसी ही पद यात्रा की थी, जिसका नाम था 'समाज परिवर्तन यात्रा'. इस पदयात्रा में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के निकट सहयोगी रहे लोहिया-जेपी के आंदोलनों से जुड़े रहे लोहियावादी नेता सुधींद्र भदौरिया भी शामिल थे. चार दशक पहले हुई इस यात्रा को संजोते हुए उन्होंने एक कॉफी टेबल बुक के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की है, जिसमें उन्होंने बताया है कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पदयात्रा से क्या हासिल हुआ, क्या बड़े काम हुए? इस कॉफी टेबल बुक में यात्रा की समीक्षा के साथ ही कुछ बहुत सुंदर तस्वीरें भी देखने को मिलती हैं. हमने इस संदर्भ में उनसे विस्तार से बात की.
'देश में यात्राओं की परंपरा बहुत पुरानी' : सुधींद्र भदौरिया बताते हैं 'देश में यात्राओं की परंपरा बहुत पुरानी है. महात्मा बुद्ध से लेकर अभी तक तमाम समाज सुधारकों ने देश और दुनिया में नए संदेश देने के लिए इस माध्यम का उपयोग किया है. इस माध्यम से राजनीति में भी बड़े बदलाव लाए गए हैं. आजादी की लड़ाई के दौरान पदयात्राओं का इस्तेमाल महात्मा गांधी ने किया. दांडी मार्च ने भारतीय जनमानस में एक बड़ी चेतना पैदा की थी. पहले अगर देखें तो गुरुनानक देव ने, संत कबीर दास ने और भी तमाम संतों ने इस माध्यम का उपयोग किया. हालांकि आजाद भारत में विनोबा भावे अथवा आज से ठीक चालीस साल पहले 1983 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी इसी तरह की एक पद यात्रा का शुभारंभ किया था. तब की यात्रा कन्याकुमारी से शुरू हुई और हम लोग उस यात्रा में दिल्ली तक आए. फिर हमने पूरे देश में जनसंपर्क किया. साथ ही वहां की समस्याओं को समझने की कोशिश की. हम देख रहे हैं कि कुछ समय पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी ऐसी ही यात्रा निकाली, जिसका दूसरा चरण अभी शेष हैं. वहीं कांशीराम ने देश के दलित, पिछड़ों को जगाने के लिए साइकिल यात्रा के माध्यम से एक बड़ी अलख जगाने की कोशिश की थी. उससे बड़े राजनीतिक बदलाव भी हुए. बहुत सारे समीक्षक इस पर अपनी टिप्पणी कर रहे हैं.'
'यात्रा को व्यापक जनसमर्थन मिला' : वह बताते हैं '1983 हुई पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की यात्रा को व्यापक जनसमर्थन मिला था. बावजूद इसके वह 1984 का चुनाव हार गए थे. हाल के दिनों में राहुल गांधी की पदयात्रा से वह पद यात्रा सर्वथा भिन्न भी थी. हर प्रकार यात्रा के साधन और साध्य की शुचिता थी. हमारा साधन एक सामान्य वैन थी. आज वातानुकूलित बसों के काफिले हैं. मैनेजमेंट कंपनियां और बड़ा प्रचार तंत्र भी सक्रिय रहता है. तब हम गांवों में लोगों के यहां रहते थे और आज होटलों में रुकने के लिए शानदार प्रबंध होते हैं.उस समय सोशल मीडिया का व्यापक संचार तंत्र भी नहीं था. बस अखबार आदि में खबरें छप जाया करती थीं. हमारी यात्रा का संचार आम जन की आपसी चर्चा से होता था. हमारी यात्रा का कोई रूट प्लान नहीं होता था, जहां रात हुई वहीं गांव के पंचायत भवन में रैन बसेरा हो जाता था. सड़कों पर भव्य प्रदर्शन नहीं, गांव के जीवन का प्रत्यक्ष दर्शन था हमारा साध्य. विगत चालीस वर्ष में दुनिया जरूर बदली है, लेकिन मेरा मानना है कि 1983 की भारत यात्रा का चुनाव पर कोई बड़ा असर नहीं हुआ था. न ही हाल की राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' का चुनाव की दुनिया पर बड़ा असर होगा.'
'नई दिशा देने के लिए दी बड़ी जिम्मेदारी' : सुधींद्र भदौरिया बताते हैं '1981 में हम सभी साथी जनता पार्टी के त्रासद अंत से आहत थे और एक नई दिशा के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से उम्मीद कर रहे थे. पूरी जनता पार्टी ने एकमत होकर हमारी पदयात्रा का विरोध किया, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री ने हम सभी युवाओं को नई दिशा देने के लिए मुझे बड़ी जिम्मेदारी दी. उन्हें सफलता को लेकर संशय भी था और सभी का विरोध भी, लेकिन मेरे और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के मन में स्पष्ट था कि पूर्व में महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद यात्रा की थी, महात्मा गांधी की दांडी यात्रा से लेकर विनोबा भावे ने भूदान यात्रा तक, सभी बड़े उद्देश्यों से प्रेरित थीं और सफल भी हुईं. हमारी यात्रा छह माह तक चली और व्यापक रूप से सफल रही. कन्या कुमारी से छह जनवरी को हमारी यात्रा शुरू हुई और दिल्ली 25 जून को पहुंची, जिस दिन देश में इमरजेंसी लगी थी. तब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इसे 'समाज परिवर्तन यात्रा' का नाम दिया था. हमारी पदयात्रा में उठाया गया जल का मुद्दा आज तक यानी चार दशक से जारी है. हमारा प्रयास है कि देश के सभी नागरिकों को स्वच्छ पेयजल मिले.'
'राष्ट्र का मुद्दा रहेगा अहम' : वह कहते हैं 'हमारी यात्रा एक विकसित और विश्व समाज के अग्रणी राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य के लिए जारी है. चुनाव के गुणा-गणित में यात्राओं का बहुत असर नहीं होता है. मेरा मानना है कि बदलती दुनिया में संचार क्रांति का बहुत असर होगा. जनमानस को जोड़ने में यह बड़ी भूमिका निभाएगा. तरीके बदलने पड़ेंगे, अन्यथा हम अप्रासंगिक हो जाएंगे. राष्ट्र का मुद्दा अहम रहेगा. जनसहभाग के तौर-तरीके बदलेंगे. मुद्दों में भटकाव न हो तो जन सहयोग बढ़ेगा. जनसंचार माध्यमों का महत्व आने वाले युग में बहुत बढ़ेगा. इस माध्यम से नेतृत्व उन्हें और नए-पुराने सभी को जोड़कर लोकतंत्र की एक नई तस्वीर बनेगी. मेरा मानना है कि यह नया दौर उम्मीदों से कही आगे बढ़ने का आएगा.'